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इंदिरा का वो दौर जब पूरी कैबिनेट में कहलाती थीं अकेली ‘मर्द’

सत्तर के दशक में कांग्रेस का मतलब इंदिरा हो गया था. उस दौर में कहा जाता था कि पूरी कैबिनेट में इंदिरा अकेली मर्द हैं. लेकिन यही वह दौर था, जब इंदिरा के बेटे संजय गांधी मनमाने हो गए थे. इंदिरा का भी उन पर जोर नहीं चलता था.

इंदिरा गांधी का अभिवादन करते कांग्रेसी कार्यकर्ता इंदिरा गांधी का अभिवादन करते कांग्रेसी कार्यकर्ता
कौशलेन्द्र बिक्रम सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 19 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 2:02 PM IST

सत्तर का दशक इंदिरा गांधी का दशक था. इसी दशक में पाकिस्तान को घुटने के बल ला देने के बाद इंदिरा ने बांग्लादेश नाम का अलग देश बनवा दिया. यही वो दशक था, जब इंदिरा गलतियों पर गलतियां भी करती गईं. सत्ता उनके हाथों से सरककर उनके मनमाने बेटे संजय गांधी के हाथों में जाने लगी. इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत हो गई. देश को पहली बार आपातकाल का सामना करना पड़ा. इंदिरा आज से ठीक 100 साल पहले 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में पैदा हुईं थीं. पढ़िए इस मौके पर इंदिरा की जिंदगी से जुड़ी यह खास पेशकश...

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कांग्रेस का मतलब इंदिरा

सत्तर के दशक में कांग्रेस का मतलब इंदिरा हो गया था. उस दौर में कहा जाता था कि पूरी कैबिनेट में इंदिरा अकेली मर्द हैं. लेकिन यही वह दौर था, जब इंदिरा के बेटे संजय गांधी मनमाने हो गए थे. इंदिरा का भी उन पर जोर नहीं चलता था.

इस फैसले से आया देश में राजनीतिक भूचाल

इंदिरा ने 1971 के चुनावों में राजनारायण को हराया था. राजनारायण ने इंदिरा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. राजनारायण ने आरोप लगाया था कि इंदिरा ने इस चुनाव में धांधली करवाई थी. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द करने का फैसला सुना दिया. हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने ये ऐतिहासिक फैसला सुनाया था.

देश को देखना पड़ा आपातकाल

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इंदिरा आसानी से सिंहासन खाली करने के मूड में नहीं थीं. संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए. उधर विपक्ष सरकार पर लगातार दबाव बना रहा था. नतीजा ये हुआ कि इंदिरा ने 25 जून की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लिया. आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिया.

आपातकाल का आतंक

आपातकाल में जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया. पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया. सरकारी मशीनरी विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी. अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में ठूंस दिए गए. संजय गांधी की मनमानियां सीमा पार कर गई थीं.  उनके इशारे पर जाने कितने पुरुषों की जबरन नसबंदी करवा दी गई थी.

एक खबर से मचा हंगामा

आपातकाल लागू होने के दौरान द वाशिंगटन पोस्ट में ये खबर छपी कि एक डिनर पार्टी के दौरान संजय गांधी ने अपनी मां इंदिरा पर थप्पड़ों की बरसात कर दी थी. ये खबर लिखने वाले द वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार लुईस एम सिमंस को सरकार ने पांच घंटे में देश छोड़ने का आदेश भेज दिया.

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जनता ने लिया आपातकाल का बदला

ढाई साल तक देश में आपातकाल चला. जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची. इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ. 1977 में फिर आम चुनाव हुए.

1977 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. 23  मार्च 1977 को इक्यासी वर्ष की उम्र में मोरार जी देशाई  प्रधानमंत्री बने. ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी. लेकिन, जो विपक्ष इंदिरा के खिलाफ एकजुट था. वो सत्ता पाने के बाद बिखर गया. दो साल में मोरार जी देसाई की सरकार गिर गई. इंदिरा ने एक और गेम खेला. उन्होंने चौधरी चरण सिंह की सरकार को बनवा कर उसे बाहर से समर्थन दे दिया. लेकिन, चौधरी चरण सिंह सरकार भी साढ़े पांच महीनों में ही गिर गई.

...और फिर इंदिरा ने की जोरदार वापसी

तीन साल के भीतर ही जनता पार्टी का रायता बिखर गया. 1980  में फिर लोकसभा चुनाव हुए. कांग्रेस ने नारा दिया 'इंदिरा लाओ देश बचाओ'. इंदिरा की अगुवाई में कांग्रेस को 374 सीटों पर जीत मिली. इंदिरा इस बार बिल्कुल बदली-बदली सी थीं. उन्होंने बदले की भावना से कोई काम नहीं किया. दिन-रात अपने काम में जुटी रहती थीं.

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संजय गांधी विमान हादसा...

इसी बीच 23 जून 1980 को एक विमान हादसे में संजय गांधी की मौत हो गई. इंदिरा गांधी जवान बेटे की मौत के बाद टूट गईं. मजबूरन उन्हें अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को राजनीति के मैदान में उतारना पड़ा.

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