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मथुरा हिंसा: पुलिस की योजना में थी खामियां, SP को पिटता देख भाग गए बाकी अधिकारी

जवाहरबाग पहुंचने से पहले पुलिस को वहां मौजूद कब्जाइयों के बारे में अच्छी तरह से इंटेलिजेंस इनपुट भी नहीं दी गई. पुलिस को यह तक ठीक से पता नहीं था कि वहां कितने लोग मौजूद हैं, उनके पास कौन-कौन से और कितने हथि‍यार हैं.

स्‍वपनल सोनल/शिवेंद्र श्रीवास्तव
  • लखनऊ,
  • 04 जून 2016,
  • अपडेटेड 8:38 AM IST

मथुरा कांड की शुरुआती जांच में गंभीर खुलासे हुए हैं, जिसको लेकर यूपी का पुलिस महकमा सीधे तौर पर सवालों के घेरे में आ सकता है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जांच अधि‍कारियों ने पाया है कि हिंसा भड़कने और इससे निपटने के क्रम में पुलिस की योजना में गंभीर कमियां थीं. यही नहीं, अधि‍कारी इस नतीजे पर भी पहुंचे हैं कि एसपी और एसओर पर जब हमला हुआ तो वहां मौजूद दूसरे अधि‍कारी अपनी जिम्मेदारी से भाग खड़े हुए.

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बताया जाता है कि जवाहरबाग पहुंचने से पहले पुलिस को वहां मौजूद कब्जाइयों के बारे में अच्छी तरह से इंटेलिजेंस इनपुट भी नहीं दी गई. पुलिस को यह तक ठीक से पता नहीं था कि वहां कितने लोग मौजूद हैं, उनके पास कौन-कौन से और कितने हथि‍यार हैं. हालांकि अलीगढ़ के पुलिस कमिश्नर की देखरेख में जांच अभी जारी है. वह कुछ दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे.

जब एसपी को पीटा जा रहा था, सिर्फ एसओ बचाने आए
बताया जाता है कि जब जवाहरबाग में हिंसा भड़की, तब वहां एसपी सिटी मुकुद द्व‍िवेदी के साथ आठ वरिष्ठ पुलिसकर्मी मौजूद थे. लेकिन जब उपद्रवियों ने एसपी की पिटाई शुरू की तो सिर्फ एसओ संतोष यादव ने उन्हें बचाने की कोशि‍श की. हालांकि इस क्रम में उपद्रवियों ने उनकी भी हत्या कर दी. जांच अधि‍कारी मामले में उन पुलिस अधि‍कारियों से भी सवाल-जवाब करने वाले हैं और बहुत संभव है कि उन पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी.

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गौरतलब है कि गुरुवार को पुलिस और आजाद भारत विधिक वैचारिक क्रांति सत्याग्रही नाम के संदिग्ध संगठन के करीब 3,000 अनुयायियों के बीच झड़प हो गई थी. इस संगठन ने 260 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा जमा लिया था. झड़प में मथुरा के सिटी एसपी और एक एसएचओ सहित 24 लोग मारे गए थे. यह झड़प उस वक्त हुई थी जब पुलिस जमीन से कब्जा हटाने के लिए गई थी.

'जवाहरबाग में थी उनकी अपनी अदालतें और जेल'
दूसरी ओर, पुलिस का कहना है कि जवाहरबाग पर कब्जा जमाने वालों ने आहते में अपनी अदालतें और जेल बैरक बनाकर प्रशासन की अपनी एक अलग व्यवस्था कायम कर ली थी. वे अपने नियमों को तोड़ने पर कैदियों को यातना और सजा भी देते थे. यही नहीं, इन अतिक्रमणकारियों ने भारत का संविधान और कानून मानने से इनकार कर दिया था.

उपद्रवियों ने बसा ली थी बस्ती, कम कीमत पर बेचते थे सामान
आगरा जोन के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) दुर्गा चरण मिश्रा ने बताया, 'उन्होंने अपनी बस्ती बसा ली थी और वहां खाने की चीजें बेहद कम कीमत पर मुहैया कराई जाती थीं. उन्होंने सरकार चलाना शुरू कर दिया था. उन्होंने लोगों को सजा देना और उन्हें यातना देना शुरू कर दिया था. उन्होंने जेल बैरकें, अदालतें बना ली थी और प्रवचन केंद्र व तख्त का भी निर्माण कर लिया था.'

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ये था सामान का रेट लिस्ट-
चीनी- 20 रुपये किलो
दाल- 50 रुपये किलो
सब्जी- 5 रुपये किलो
केरोसीन तेल- 1 रुपये लीटर
रिफाइन तेल- 30 रुपये लीटर
देसी घी- 100 रुपये लीटर
दूध- 10 रुपये किलो

बताया जाता है कि कब्जाइयों ने बिहार, छत्तीसगढ़, मिजोरम, असम, राजस्था, मध्य प्रदेश और यूपी के कई लोगों को बहला-फुसलाकर वहां बुलाया था. लोगों से वादा किया गया कि उन्हें वहां जमीन दी जाएगी और वह मेहनत कर के कम कीमत में अपना जीवन बसर कर पाएंगे. यही नहीं, कब्जा क्षेत्र में बिजली की उनकी खुद की व्यवस्था थी. कब्जाई खुद को सुभाष चंद्र बोस का अनुयायी बताते थे.

लोगों को रोकने के लिए बनाए थे बटालियन
आगरा संभाग के आयुक्त प्रदीप भटनागर ने कहा कि हथियारबंद गुंडों के तीन-चार समूह बना दिए गए थे, जिसे वे बटालियन कहते थे. आईजी ने कहा, 'जब भी कोई आम आदमी या अधिकारी अंदर जाता था तो वे उस पर हमला कर देते थे. वे अपने अनुयायियों को किसी भी हालत में बाहर कदम नहीं रखने देते थे. उन्हें बाहर जाने के लिए लिखित परमिट दिया जाता था और उन्हें बाहर जाने की इजाजत तभी दी जाती थी यदि बाहर से कोई वहां आता था. उन्हें सिर्फ एक-दो दिन के लिए जाने की अनुमति दी जाती थी.'

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नक्सल कनेक्शन से इनकार नहीं
यह पूछे जाने पर कि क्या वहां नक्सल इलाकों से भी लोग आते थे, इस पर आईजी ने कहा, 'हां, वहां छत्तीसगढ़ से लोग आते थे. उनका मकसद लोगों को धार्मिक कट्टरपंथ या धार्मिक आतंकवाद, आप इसे चाहे जो कह लें, की तरफ ले जाना था. वे अपनी मुद्रा शुरू करने की योजना बना रहे थे.'

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