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ITBP के जवान मना रहे हैं गुब्बारा फोड़ दिवाली, पटाखे को कहा बाय-बाय

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरहद पर ITBP के जवान नक्सलियों से लोहा लेने के लिए जुटे हैं. ये जवान अपने अंदाज में दीपावली मना रहे हैं. ITBP ने पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदूषणमुक्त दीपावली का संदेश दिया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
सुनील नामदेव
  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 6:59 PM IST

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरहद पर ITBP के जवान नक्सलियों से लोहा लेने के लिए जुटे हैं. ये जवान अपने अंदाज में दीपावली मना रहे हैं. ITBP ने पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदूषणमुक्त दीपावली का संदेश दिया है. गुब्बारे फोड़ कर जवान दीपावली की खुशियां बांट रहे है.

छत्तीसगढ़ से सटी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सीमा पर राजनांदगांव के घने जंगलों में दीपावली की स्वर लहरियां फ़ैल रही हैं. ITBP के कैम्प में जवानों के अलावा आस-पड़ोस के गांव के सैकड़ों लोग दीपावली की खुशियां मना रहे हैं, लेकिन अपने अंदाज में. ना कोई पटाखा, फुलझड़ी और न ही शोरगुल वाले बम. पारम्परिक गीत-संगीत की धुनों के बीच गुब्बारे फुट रहे हैं और लोगों के चेहरे ख़ुशी से खिल उठे हैं. इस बार ITBP ने दीपावली पर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया है. उसके जवान अपने इसी संदेश को आसपास के गांव-कस्बों में फैला रहे हैं.

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ITBP के DIG अशोक नेगी ने बताया कि जंगलों के भीतर के गांव आज भी प्रदुषण मुक्त हैं. इसका कारण यह है कि उन्होंने खुद को प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं से बचाया हुआ है. उनके मुताबिक शहरी बाशिंदों की तुलना में ग्रामीण व्यक्ति ज्यादा बलशाली और मेहनतकश हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि प्रदुषण मुक्त वातावरण में रहने से वो कई बीमारियों से बचे हुए हैं, उनका रेजिस्टेंस पावर भी बेहतर है. अशोक नेगी बताते हैं कि जब भी वो शहरों से गांव की ओर का रुख करते हैं, तो पाते हैं कि वहां प्रदूषण लेवल काफी कम है. इसे बचाने की जरूरत है. लिहाजा प्रदूषणमुक्त दीपावली और त्योहारों पर फैलने वाले प्रदूषण से कैसे बचा जा सकता है, उसके उपाय ITBP के जवान लोगों को बता रहे हैं.

ITBP में ज्यादातर जवान पहाड़ी इलाकों के रहवासी हैं. उत्तर-पूर्व के इलाके हों, गढ़वाल की पहाड़ियां हों या फिर कुमाऊं और हिमालयन माउंटेन के इलाके. ऐसा कोई भी पहाड़ी क्षेत्र नहीं है, जहां के जवान भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में न हों. ये जवान अपनी पारम्परिक और सांस्कृतिक विरासत को भी लेकर चल रहे हैं. त्योहार के मौके पर इनकी खुशियां दुगनी हो जाती हैं. घर-परिवार से सैकड़ों किलोमीटर दूर दुश्मन से लोहा लेने के लिए यही सांस्कृतिक धरोहर इनके भीतर साहस पैदा करती है.

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ITBP के कमांडेंट नरेंद्र सिंह बताते हैं कि जंगलों के भीतर उनके जवानों को कड़ी मशक्क्त करनी पड़ती है.

खूब मेहनत होती है. बावजूद इसके उनके जवान बहुत खुश हैं. इसका मुख्य कारण प्राकृतिक वातावरण में उनका रहन-सहन है. हालांकि अब ग्रामीण इलाकों में भी प्रदूषण फैलने की गुंजाइश इसलिए बढ़ गई है कि यहां भी शहरी संस्कृति हावी होने लगी है. ग्रामीण शहरी क्षेत्रों से प्रदुषण फैलाने वाले सामान लाने लगे हैं. पहले वो तेज आवाज वाले पटाखे, बमों से बचते थे, लेकिन अब देखा जा रहा है कि कुछ लोगों ने इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया है. ऐसे समय ITBP के जवान महत्वपूर्ण भूमिका में हैं. वे ग्रामीणों को बता रहे है कि इसके इस्तेमाल से प्रदूषण किस तरह से तरह से फ़ैल रहा है और इसे कैसे रोका जा सकता है. नरेंद्र सिंह ने ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा कि इनकी पहल का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है, लोग प्रदूषण फैलाने के मामलों से बच रहे हैं.

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