
दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले ढाई महीने से नागरिकता कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है. इस बीच शनिवार को दिल्ली में पहली बार मुस्लिम संगठनों सहित तमाम सिविल सोसायटी संगठनों ने जमियत उलेमा-ए-हिंद के नेतृत्व में बैठक की.
इस बैठक में तय किया गया कि एनपीआर का विनम्रता से विरोध किया जाएगा. बैठक में लगभग चार घंटे तक लंबी चर्चा हुई और विभिन्न कानूनी मामलों पर विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से एक घोषणापत्र पारित किया गया.
इसे ‘दिल्ली घोषणापत्र’ नाम दिया गया है. घोषणापत्र में एनपीआर को अस्वीकार करने की घोषणा की गई है. बैठक में यह तय किया गया कि डाटा एकत्रित करने वाले घर-घर आएंगे, लेकिन हम विनम्रता के साथ उनसे सहयोग करने से इनकार करेंगे. उन्हें किसी तरह की जानकारी नहीं दी जाएगी.
बता दें पूरे देश में एक अप्रैल से 30 सितंबर 2020 तक एनपीआर कार्यक्रम चलेगा.
सात सूत्री घोषणापत्र पारित
1. हम स्पष्ट रूप से एनपीआर अस्वीकार करते हैं, क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का खुला उल्लंघन है. एनपीआर नागरिकता कानून 1955 और नागरिकता नियम 2003 के तहत एनआरसी तैयार करने की दिशा में डेटा जमा करने के लिए पहला कदम है. यह साफ तौर पर भेदभावपूर्ण, विभाजनकारी, बहिष्कारी और असंवैधानिक है और यह समुदायों को धर्म, जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर अलग करने वाला है.
2. एनपीआर की प्रक्रिया 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2020 तक चलेगी. डाटा जमा करने वाले घर-घर का दौरा करेंगे. हमें विनम्रतापूर्वक उन्हें सहयोग करने या किसी भी तरह की जानकारी उपलब्ध कराने से मना करना चाहिए.
3. हम सभी राज्य सरकारों से एनपीआर प्रक्रिया को तत्काल बंद करने की अपील करते हैं. इसके अलावा हम कानून-व्यवस्था से जुड़ी सभी एजेंसियों से अपील करते हैं कि वे भारतीय लोगों के विरोध-प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकार कर सम्मान करें.
4. हम विभिन्न राज्यों विशेषकर उत्तर प्रदेश में पुलिस फायरिंग में निशाना बनाकर मारे गए शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की कार्रवाई की कठोर शब्दों में निंदा करते हैं. उत्तर प्रदेश शांतिपूर्ण असहमति को सरकारी तंत्र द्वारा दमन किए जाने की प्रयोगशाला बन चुका है. हम पुलिस फायरिंग, संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने, बेकसूरों की गिरफ्तारी और प्रदर्शनकारी नागरिकों से पेनाल्टी की विचित्र वसूली की भी निंदा करते हैं.
5. हम देशभर के कई शाहीन बागों में चलने वाले बिना धर्म के किसी भेदभाव के युवाओं, छात्रों और महिलाओं के शांतिपूर्ण प्रदर्शनों की सराहना करते हैं.
6. हम देशद्रोह और ऐसे दूसरे काले कानूनों के तहत लोगों की पक्षपातपूर्ण की गई गिरफ्तारियों की निंदा करते हैं. इसके साथ ही हम उनकी तत्काल और बिना शर्त रिहाई और उनके विरुद्ध लगाए गए सभी तरह आरोपों को खारिज करने की मांग करते हैं. इन प्रदर्शनों के दौरान देशभर में हुई शारीरिक क्षति, मानसिक तनाव, संपत्तियों को हुए नुकसान और सामानों की क्षति के लिए उचित मुआवजा दिए जाने की मांग करते हैं.
7. हम लोगों से हर हाल में शांति बनाए रखने और किसी तरह के उकसावे, दुष्प्रचार और अभियान को खत्म करने की साजिशों में न आने की अपील करते हैं.
मसौदा समिति भी बनी
'जागरुक भारतीय नागरिकों के बीच चर्चा' नाम से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जिसकी अध्यक्षता जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना कारी सैय्यद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी ने की.
इस कार्यक्रम के संयोजक जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी और संयुक्त संयोजक कमाल फारूकी थे. कार्यक्रम में सभी धर्मों से संबंधित देश के बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, दलित नेताओं और सभी मुस्लिम संगठनों के लोग शामिल हुए.
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बता दें, चर्चा में एक मसौदा समिति भी बनाई गई थी जिसके अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री के रहमान खान थे. इस समिति में प्रसिद्ध टिप्पणीकार अबू सालेह शरीफ, ईसाई नेता जान दयाल, अनिल चमड़िया, एमएमआर अंसारी, कासिम रसूल इलियासी, धनराज वंजारी और ओवैस सुल्तान खां शामिल थे.
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