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मुलायम के नेतृत्व में 'साइकिल' के निशान पर वोट मांगेगा जनता परिवार

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने पहले ही साफ कर दिया है कि जनता परिवार का विलय समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में होगा. अब खबर आ रही है कि जो नई पार्टी बनेगी उसे 'समाजवादी जनता पार्टी' के नाम से जाना जाएगा और सपा की 'साइकिल' ही इस पार्टी का चुनाव चिन्ह होगा.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 7:01 PM IST

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने पहले ही साफ कर दिया है कि जनता परिवार का विलय समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में होगा. अब खबर आ रही है कि जो नई पार्टी बनेगी उसे 'समाजवादी जनता पार्टी' के नाम से जाना जाएगा और सपा की 'साइकिल' ही इस पार्टी का चुनाव चिन्ह होगा. नई पार्टी के अध्यक्ष की भूमिका में नजर आएंगे मुलायम सिंह यादव. यह खबर अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया ने दी है. क्या नहीं होगा जनता परिवार का विलय?

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हालांकि, पार्टी का झंडा क्या होगा, यह अभी तय नहीं हो सका है. खबर है कि विलय को लेकर आने वाले रविवार को नीतीश कुमार दिल्ली आने वाले हैं. इससे पहले महागठबंधन को लेकर पिछले हफ्ते नीतीश कुमार, मुलायम सिंह और लालू प्रसाद की बैठक हुई थी. इसमें जेडीयू के अध्यक्ष शरद यादव और केसी त्यागी ने भी हिस्सा लिया था. इस मीटिंग में ही गतिरोध के कुछ मुद्दों का समाधान निकाला जा सका. 'जनता परिवार' में मुलायम को नहीं फायदा!

सपा का गेमप्लान
दरअसल, समाजवादी पार्टी के नेताओं को इस विलय से चुनावी तौर पर ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है. उन्हें लगता है कि जेडीयू और आरजेडी की ताकत बिहार तक सीमित है. इसलिए पार्टी विलय को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं रही है, पर पार्टी चिन्ह और नाम को लेकर आरजेडी व जेडीयू के समझौतावादी रवैये ने विलय के लिए राह आसान कर दी है. शायद यही वजह है कि मुलायम सिंह भी पार्टी की पहचान बरकरार रहने की दलील देकर सपा नेताओं को विलय पर मनाने में कामयाब रहे हैं.

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आरजेडी-जेडीयू गठबंधन की नजर बिहार चुनाव पर
विलय का सबसे बड़ा सियासी फायदा राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड को होगा. अब तक चुनाव में दोनों ही पार्टियों आपस में भिड़ती रहीं, कई बार एक दूसरे के वोट बैंक को नुकसान भी पहुंचाया. अगर विलय हो जाता है तो दोनों पार्टियों के वोटबैंक का साथ आना तय माना जा रहा है. ऐसे में यह गठबंधन राज्य में बीजेपी को मजबूत चुनौती देने की स्थिति रहेगा. और बीजेपी विधानसभा चुनाव में हार जाती है तो इसका असर उत्तर प्रदेश चुनावों में भी दिखेगा.

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