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झारखंड विधानसभा में प्रोन्नति मामले में पूर्व स्पीकर को नोटिस

इस मामले की जांच कर रहे न्यायिक जांच आयोग ने इस प्रोन्नति को अवैध माना है और फैसले से पहले पूर्व स्पीकर को नोटिस जारी कर उनका पक्ष जानना चाहा है.

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सुरभि गुप्ता/धरमबीर सिन्हा
  • रांची,
  • 16 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST

झारखंड विधानसभा में 75 सहायकों की प्रोन्नति मामले में पूर्व स्पीकर को नोटिस जारी किया गया है. ये मामला 75 सहायकों को नियमों की अनदेखी कर प्रशाखा पदाधिकारी पद पर प्रोन्नत करने का है.

पूर्व स्पीकर को नोटिस

इस मामले की जांच कर रहे पूर्व न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद ने झारखंड विधानसभा के पूर्व स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. गौरतलब है कि विधानसभा ने नियमों की अनदेखी कर अपने सचिवालय के 75 सहायकों को प्रशाखा पदाधिकारी के पद पर प्रोन्नत कर दिया था. इसके लिए बिना अधिकार के प्रोन्नति नियम को बदला गया, फिर पूर्व सीएम, मंत्री और विधायकों के करीबियों को प्रोन्नत कर दिया गया.

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आयोग ने प्रोन्नति मामले को अवैध माना

इस मामले की जांच कर रहे न्यायिक जांच आयोग ने इस प्रोन्नति को अवैध माना है और फैसले से पहले पूर्व स्पीकर को नोटिस जारी कर उनका पक्ष जानना चाहा है.  बीते 10 अप्रैल को जारी नोटिस में आयोग ने भोक्ता से पूछा, 'यह क्यों नहीं माना जाए कि इन सभी गड़बड़ियों में आपकी संलिप्तता थी और स्थापित नियम के विरुद्ध फाइल आपके पास आई. आपने इस पर अनुमोदन कर दिया.'

24 जून तक अपना फैसला देगा आयोग

आयोग के अध्यक्ष के मुतबिक पूर्व स्पीकर का पक्ष नहीं आने पर आयोग अपना फैसला ले लेगा. पूर्व न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में गठित एक सदस्यीय आयोग ने अपनी जांच के दौरान पाया कि विधानसभा सचिवालय में नियुक्ति और प्रोन्नति विधानसभा नियमावली 2003 के तहत होती है और इसमें किसी तरह का बदलाव राज्यपाल की सहमति से ही हो सकता है. लेकिन साल 2014 में कुछ लोगों को प्रोन्नति देने के लिए एक आदेश जारी किया गया और परीक्षा लेकर प्रोन्नति दे दी गई. यह नियम के विरुद्ध था. साथ ही आयोग ने अपनी जांच के दौरान पाया कि प्रमोशन पाए लोगों में 15 लोग ऐसे हैं, जो किसी न किसी विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों के करीबी थे. आयोग 24 जून तक अपना फैसला राज्य सरकार को सौंप देगा.

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क्या कहता है नियम?

झारखंड विधानसभा में कर्मचारियों की प्रोन्नति विधानसभा नियमावली 2003 के प्रावधानों के तहत होती है. लेकिन साल 2014 मे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने इसमें अपने स्तर से ही संशोधन कर दिया. जबकि ऐसा करने का अधिकार केवल राज्यपाल को है. संशोधन के बाद 4 मार्च 2014 को यह नियम बनाया गया कि सहायक से प्रशाखा पदाधिकारी के पद पर 50 फीसदी वरीयता और 50 फीसदी सीमित प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से प्रोन्नति दी जाएगी.

क्या है आरोप?

प्रोन्नति मामले में आरोप है कि सीमित प्रतियोगिता के दौरान पूछे गए सभी प्रश्न बहु-वैकल्पिक थे. एक ही प्रश्न के दो उत्तर लिखने वालों को भी पूरे अंक दिए गए. मूल्यांकन के दौरान भी जमकर धांधली हुई. इतना ही नहीं मंत्री, नेता और सचिवालय में कार्यरत वरिष्ठ नौकरशाहों के लगभग 15 करीबियों को बिना मूल्यांकन ही अंक प्रदान कर दिए गए. आरोप यह भी है कि आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं हुआ, बिना प्रावधान के ओबीसी को आरक्षण का लाभ दे दिया गया.

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