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झारखंड चुनाव: झरिया में जीती वासेपुर की देवरानी, 'रघुकुल' से हार गई बीजेपी

झारखंड चुनाव के परिणाम कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) गठबंधन के पक्ष में आ चुका है. जेठानी और देवरानी के बीच मुकाबले के कारण दिलचस्प झरिया विधानसभा सीट की चुनावी जंग में कांग्रेस की उम्मीदवार पूर्णिमा सिंह ने जीत दर्ज की है. ये वही पूर्णिमा सिंह हैं जिन्हें 'वासेपुर की देवरानी' के नाम से भी जाना जाता है.

कांग्रेस उम्मीदवार पूर्णिमा सिंह, झरिया विधानसभासीट से चुनाव जीतीं कांग्रेस उम्मीदवार पूर्णिमा सिंह, झरिया विधानसभासीट से चुनाव जीतीं
aajtak.in
  • रांची,
  • 23 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST

  • एक ही परिवार की बहुओं में था चुनावी मुकाबला
  • कोयलांचल की झरिया सीट पर थी सबकी नजर

झारखंड चुनाव के परिणाम कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) गठबंधन के पक्ष में आ चुका है. जेठानी और देवरानी के बीच मुकाबले के कारण दिलचस्प झरिया विधानसभा सीट की चुनावी जंग में कांग्रेस की उम्मीदवार पूर्णिमा सिंह ने जीत दर्ज की है. ये वही पूर्णिमा सिंह हैं जिन्हें 'वासेपुर की देवरानी' के नाम से भी जाना जाता है.

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जी हां, फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' वाला वासेपुर, जिसमें कोयला को लेकर माफिया वार दिखाया गया था. इस क्षेत्र को कोयलांचल के नाम से भी जाना जाता है. यह धनबाद-झरिया और गिरिडीह के आसपास का इलाका है, जहां इस बार भी सूर्यदेव सिंह के परिवार की दो बहुएं आमने- सामने थीं.

सूर्यदेव सिंह की बहू और पूर्व विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया था, वहीं कांग्रेस ने सूर्यदेव सिंह के छोटे भाई राजनारायण सिंह की बहू और पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था. कांग्रेस उम्मीदवार पूर्णिमा ने बीजेपी उम्मीदवार रागिनी सिंह को हरा कर चुनाव जीत लिया है.

गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म और इस परिवार का कनेक्शन

गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म में निभाया गया रामाधीर सिंह का किरदार 'सिंह मेंशन परिवार' के मुखिया सूर्यदेव सिंह के परिवार से ही प्रेरित था. हालांकि वासेपुर झरिया विधानसभा क्षेत्र में आता है, जबकि वासेपुर धनबाद का इलाका है. मात्र 10 किलोमीटर की दूरी होने की वजह से लोग इस सीट को फिल्म वासेपुर से जोड़ कर देख रहे थे. इस फिल्म में फिल्माया गया गाना 'ओ-ओ वुमनिया' ने खूब लोकप्रियता बटोरी थी.

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पिछली बार आमने- सामने थे दो भाई

कोयलांचल की सबसे चर्चित सीटों में गिनी जाने वाली झरिया विधानसभा सीट पर सूर्यदेव सिंह के परिवार के सदस्यों के बीच ही सियासी घमासान पहले भी देखने को मिला था. साल 2014 के चुनाव में इस सीट से बीजेपी के टिकट पर सूर्यदेव सिंह के पुत्र संजीव सिंह और कांग्रेस के टिकट पर उनके भतीजे नीरज सिंह ने चुनाव लड़ा था. तब चुनावी बाजी संजीव के हाथ लगी थी.

इसके बाद साल 2017 में नीरज सिंह की हत्या हो गई, जिसका आरोप संजीव सिंह पर लगा और वह फिलहाल जेल में हैं. इसबार बीजेपी ने संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को उतारा, जिनके मुकाबले कांग्रेस ने नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह को उतारकर एक बार फिर यहां की सियासी जंग को सिंह परिवार में ही समेट दिया.

झारखंड सरकार में मंत्री रह चुके हैं सूर्यदेव सिंह के भाई

'सिंह मेंशन' की नींव संजीव सिंह के पिता सूर्यदेव सिंह ने रखी थी. सूर्यदेव सिंह का परिवार कोयला के कारोबार का बेताज बादशाह माना जाता है. सूर्यदेव सिंह पांच भाइयों में सबसे बड़े और परिवार के मुखिया थे. उनके चार भाई राजनारायण सिंह, बच्चा सिंह, विक्रम सिंह और रामाधीर सिंह हैं. सूर्यदेव सिंह और राजन सिंह की मौत हो चुकी हैं, जबकि बच्चा सिंह झारखंड सरकार में मंत्री रह चुके हैं. रामाधीर सिंह उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. विक्रम सिंह का परिवार बलिया में ही रहता है.

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सूर्यदेव सिंह की मौत के बाद परिवार संपत्ति और अन्य कारणों से बिखरता चला गया. सूर्यदेव सिंह और रामाधीर सिंह के परिवार 'सिंह मेंशन' में बने रहे, जबकि बच्चा सिंह ने 'सूर्योदय' बना लिया तो राजन सिंह के परिवार ने 'रघुकुल'. बच्चा सिंह रहते तो 'सूर्योदय' में हैं, लेकिन उनकी हमदर्दी राजन सिंह के बेटों नीरज सिंह, एकलव्य सिंह और गुड्डू के प्रति ज्यादा है.

यूपी के बलिया से थे सूर्यदेव सिंह

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गोन्हिया छपरा से साल 1960 में रोजी- रोटी की तलाश में सूर्यदेव सिंह धनबाद पहुंचे थे. यहां छोटे-मोटे काम के दौरान एक दिन उन्होंने अखाड़े में पंजाब के किसी नामी पहलवान को कुछ मिनटों में ही चित कर दिया. इसके बाद कोयलांचल में उनका नाम चमकने लगा. देखते ही देखते वह मजदूरों के नेता भी बन गए. इसके बाद 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर झरिया सीट से विधानभा चुनाव लड़ा और उस वक्त के बड़े श्रमिक नेता एसके राय को हराकर विधायक बनने में कामयाब रहे. इसके बाद से लगातार वो जीतते रहे. साल 1991 में उनका निधन हो गया था.

छोटे भाई ने संभाली थी राजनीतिक विरासत

झरिया में सूर्यदेव सिंह की राजनीतिक विरासत उनके छोटे भाई बच्चा सिंह ने संभाली. फरवरी 2000 में बच्चा सिंह ने झरिया विधानसभा सीट से चुनाव जीता और बाबूलाल मरांडी की सरकार में नगर विकास मंत्री बने. इसके बाद परिवार में दरार पड़ी तो सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती सिंह ने विरासत को संभाला. कुंती देवी 2005 और 2009 में विधायक बनीं. इसके बाद 2014 में सूर्यदेव सिंह के बेटे संजीव सिंह झरिया के विधायक बने.

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दिनदहाड़े हुई थी नीरज सिंह की हत्या

नीरज और संजीव के बीच की सियासी अदावत शुरू हो गई. 21 मार्च 2017 को पूर्व डिप्टी मेयर और कांग्रेस के नेता नीरज सिंह की हत्या कर दी गई. भाड़े के शूटरों ने दिनदहाड़े एके-47 से नीरज सिंह की गाड़ी पर हमला किया था, जिसमें नीरज समेत 4 लोगों की मौत हो गई थी. कहा जाता है कि कुल 67 गोलियां उनकी कार पर फायर की गई थीं. रिपोर्ट के मुताबिक नीरज को 25 गोलियां लगी थीं. इस हत्या का आरोप झरिया के बीजेपी विधायक संजीव सिंह पर लगा. इस हत्याकांड में संजीव सिंह 11 अप्रैल 2017 से धनबाद जेल में बंद हैं.

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