
नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बुधवार को अपना पुरस्कार देश को समर्पित कर दिया है और उसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सौंप दिया है.
राष्ट्रपति भवन में कैलाश सत्यार्थी ने यह पुरस्कार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दिया. प्रणब मुखर्जी ने सत्यार्थी के इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि इसको राष्ट्रपति भवन के म्यूजियम में लोगों को दिखाने के लिए रखा जाएगा.
मदर टेरेसा (1979) के बाद कैलाश सत्यार्थी सिर्फ दूसरे भारतीय हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है. कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो सालों से बाल अधिकार के लिए संघर्षरत हैं. सत्यार्थी भारत में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ चलाते हैं जो बच्चों को बंधुआ मजदूरी और तस्करी से बचाने के काम में लगी है.
कैलाश सत्यार्थी ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से बाल अधिकारों की रक्षा और उन्हें और मजबूती से लागू करवाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया, 80 हजार बाल श्रमिकों को मुक्त कराया और उन्हें जीवन में नयी उम्मीद दी. ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के रूप में उनकी संस्था लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय है. सत्यार्थी इस संस्था के जरिए उन बच्चों की मदद करते हैं जो अपने परिवार के कर्ज उतारने के लिए बेचे दिए जाते हैं. फिर उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है जिससे वो अपने समुदाय में जाकर ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए काम करें.
दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मजदूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया. उन्होंने बाल तस्करी एवं मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है.