
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई में कपिल सिब्बल की पेशी पहेली बन कर रह गई है. कपिल सिब्बल ने उसे हल करने का दावा तो किया है. सफाई भी दी लेकिन पहेली के पेंच बरकरार हैं. आंखमिचौली चूंकि कानूनी है लिहाजा इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं. कपिल सिब्बल खुद घाघ वकील हैं. तो इतने सस्ते में इतने बड़े खेल में वॉकओवर कैसे दे सकते हैं. सुनवाई पर विवाद तो उसी शाम यानी पांच दिसंबर को ही शुरू हो गया. छह दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात की चुनावी रैलियों में कपिल सिब्बल के कंधे पर धर कर सियासी निशानेबाजी की. कांग्रेस भी तिलमिला गई. और सिब्बल ने जबान पर गोया ताला लगा रखा था. अब राम ही जाने की जान बूझकर या अनजाने में.
पूरे 48 घंटे बीतने के बाद सिब्बल ने चुप्पी तोड़ी. कोर्ट के 12 पन्ने के आदेश को ढाल बनाकर मीडिया के सामने आए. कहा वो यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील नहीं बने. उन्होंने कोर्ट में जो कुछ कहा वो पक्षकार हाशिम अंसारी और इकबाल अंसारी के वकील के रूप में कहा. अदालत ने भी आर्डर में इसका जिक्र किया है. इस मामले में जब वो बोल रहे हैं अदालत का आदेश बोल रहा है तो इधर-उधर बोलने वाले चुप क्यों नहीं होते. कोर्ट की बात कोर्ट तक ही रहे तो बेहतर है. बाहर उसकी बेवजह चर्चा क्यों है.
ये तो थी सिब्बल की सफाई. लेकिन क्या सफाई के इतने भर टीनोपाल से इल्जामों के दाग धुल जाएंगे. क्योंकि चार बूंदों वाला उजाला अब तक तो कानून की किताबों में नहीं आया है. क्योंकि शातिर चोर भी कहीं ना कहीं सबूत छोड़ ही जाता है और कानून के लंबे हाथ उस तक पहुंच ही जाते हैं.
अब कोर्ट के आदेश की पड़ताल करें तो पहले साढ़े छह पन्ने भी इस बात का साफ जिक्र करते हैं कि कपिल सिब्बल अयोध्या से जुड़े मुकदमा संख्या 4192 जिसमें यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड मुद्दई है उसके वकील हैं. वक्फ बोर्ड के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सैयद शाहिद रिजवी की ओर से मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में पांच दिसंबर को दाखिल वकीलों की पेशी की पर्ची पर भी पहले नंबर पर कपिल सिब्बल, सीनियर एडवोकेट का नाम दर्ज हैं. नीचे दस्तखत भी रिजवी के हैं. आजतक ने कोर्ट के रिकॉर्ड से पेशी की पर्ची निकलवाकर कर जब रिजवी से पूछा तो उन्होंने ये तो स्वीकार किया कि दस्तखत उन्हीं के हैं. लेकिन नाम को लेकर उनका टालमटोल बना रहा.
वो लगातार ये कहते रहे कि सिब्बल बोर्ड के वकील नहीं थे. इसकी तसदीक आर्डर के दूसरे पन्ने पर है. जिसमें कोर्ट ने उनके नाम के आगे मुकदमा संख्या 2894 और 7226 लिखा है जो हाशिम अंसारी की ओर से दर्ज है. अब दूसरे पहलू पर गौर करें तो अदालत ने सुनवाई की शुरुआत में ही कह दिया था कि वो मुख्य तीन पक्षकारों को ही सुनेगी. इसका जिक्र 11 अगस्त को दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश में भी है.
अब तीन मुख्य पक्षकारों मेंरामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड हैं. हैरानी की बात है कि करीब दो घंटे चली सुनवाई में मुस्लिम पक्ष की ओर से कपिल सिब्बल और राजीव धवन ही बोलते रहे. इनमें सिब्बल मुख्य तीनों पक्षकारों के वकील नहीं हैं. ऐसे में सवाल ये भी खड़ा होता है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की नुमाइंदगी इतने बड़े मामले में किसी ने नहीं की. जब सिब्बल अंसारी के वकील थे तो कोर्ट ने सिब्बल को किस तरह सुना. यानी सिब्बल ने तो रगड़-रगड़ कर सफाई दे दी. लेकिन दाग तो हैं ही. ये अलग बात है कि सिब्बल और बीजेपी दोनों को लगता है कि चलो दाग हैं तो क्या हुआ हैं तो अच्छे हैं.