
18 मार्च को कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने समिति की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र को लिंगायत समाज को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने की सिफारिश की है. इसे आने वाले विधानसभा चुनाव में लिंगायत वोटों को हासिल करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है.
लिंगायतों की संख्या पर राजनीति के जानकार एकमत नहीं है. अब से 87 साल पहले हुई जातीय जनगणना के मुताबिक, उनकी तादाद 17 प्रतिशत है, लेकिन तब भारत आजाद नहीं हुआ था और न ही राज्यों का पुनर्गठन हुआ था. 2013 में मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने कथित सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराया था, जिसमें राज्य में लिगायतों की संख्या मात्र 9.8 प्रतिशत बताई गई थी.
यह शिव के उपासक हैं. लिंगायत की स्थापना 12 वीं सदी समाज सुधारक और दर्शनशास्त्री बासवन्ना के द्वारा हुई थी. हालांकि यह बहस का विषय है कि उन्होंने इस समाज की नींव रखी या केवल उनके मार्गदर्शन में यह एक जन आंदोलन बना. कर्नाटक में राजा बिजल 2 के शासनकाल के दौरान ब्राह्मण हिन्दू मूल्यों का खासा प्रभाव था. उसी दौरान लिंगायत समाज का उद्गम हुआ जो जाति व्यवस्था और वेदों को नहीं मानते.
8 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में जो अनेक भक्ति आंदोलन हुए वही से इसका उद्भव माना जाता है. यह आंदोलन वर्तमान ब्राह्मणीय हिन्दू व्यवस्था का आलोचक था जबकि लिंगायत ने इसकी जड़ों को चुनौती दी. लिंगायत खुद को हिन्दू धर्म से अलग धर्म की मान्यता देने की मांग करते आये हैं.
उनकी अपनी अलग पहचान को परिभाषित करना मुश्किल बनाता है उनमें और वीरशैव में समानता. माना जाता है कि लिंगायत और वीरशैव एक हैं लेकिन ऐतिहासिक प्रमाण इस तथ्य को नकारते हैं. वीरशैव भी एक शैव समाज है जो हिन्दू धर्म का हिस्सा है. यह 16 वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ था और इसके अनुयायियों का मानना है कि बासवन्ना लिंगायत समाज के संथापक नहीं थे बल्कि वे एक समाज सुधारक थे जो वीरशैव का हिस्सा थे.
हालांकि तथ्यों के अनुसार लिंगायत और वीरशैव में पर्याप्त असमानताएं हैं. वीरशैव जहाँ वेद और जाति व्यवस्था में मानते थे वहीं लिंगायतों ने शुरू से ही वेदों और जाती व्यवस्था को केवल चुनौती दी, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदुरप्पा, दिवंगत पत्रकार गौरी लंकेश और एम एम कुलबर्गी लिंगायत में ही मानने वाले हैं,
लिंगायत समुदाय राजनितिक पार्टियों के लिए एक बड़ा वोट बैंक है. पिछले कुछ दशकों से लिंगायत समाज भाजपा का साथ देते आया है. 2008 में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 71 लिंगायत उम्मीदवार उतारे थे. क्योंकि भाजपा के सीएम उम्मीदवार येदियुरप्पा लिंगायत समाज से ही थे, यही कारण रहा कि लिंगायत उम्मीदवार राज्य में बड़े अंतर से जीते और राज्य में भाजपा की सरकार बनी.
2013 में जब येदियुरप्पा भाजपा से अलग हुए और उन्होंने अपनी अलग पार्टी के साथ चुनाव लड़ा तो लिंगायत के प्रभाव वाली सीटों में पार्टी को 20 सीटों का नुकसान हुआ. कांग्रेस ने इन लिंगायत प्रभाव वाली 56 सीटों में से 34 सीटें जीतीं. यह 2008 की तुलना में 20 सीटें ज़्यादा थीं जिसने उसकी जीत में महत्व्पूर्ण भूमिका निभायी.
2011 की जनगणना में कुछ लिंगायत सामाजिक संस्थाओं ने अपने को हिन्दू धर्म में दर्ज न करने के लिए प्रचार किया था. यह मांग लिंगायत समाज काफी समय से करता आया है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने 2017 कहा कि अगर लिंगायत समाज में इसे लेकर कोई असमंजस न हो तो वे केंद्र सरकार को इसके लिये प्रस्ताव भेजने को तैयार हैं. येदियुरप्पा ने पलटवार करते हुए इसे समाज को बांटने की कोशिश बताया.
उन्होंने कहा कि लिंगायत और वीरशैव एक ही हैं और लिंगायत हिन्दू धर्म का ही हिस्सा हैं. राहुल गांधी भी अपने कर्नाटक दौरे के दौरान लिंगायत समाज के मठ में गए थे. प्रधानमंत्री ने भी आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए संसद के बजट सत्र के अपने भाषण में बसावन्ना को लोकतंत्र का असली वास्तुकार कहा.
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ही कर्नाटक सरकार के 7 सदस्यीय पैनल ने कर्नाटक अल्पसंख्यक आयोग को अपनी रिपोर्ट दी है जिसमें सुझाव दिया गया है कि लिंगायतों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए.
यह बात ध्यान देने वाली है कि जनवरी में समिति ने सरकार के 4 सप्ताह का समय देने पर 6 महीने का समय माँगा था. समिति के सदस्यों का कहना था कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है और समिति के पास यह ज़िमेददारी है कि वह कानून और वैज्ञानिक तरीके से इस पर काम करे.
समिति ने समय से पहले अपनी रिपोर्ट सौंप दी, जिसे निश्चित रूप से सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, चूंकि राज्य में चुनाव की घोषणा अगले महीने हो सकती है, लिहाजा लिंगायतों की मांग पूरी करके सियासी फसल काटी जा सकती है.
राघव वधवा इंडिया टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट के छात्र हैं और इंडिया टुडे में प्रशिक्षु हैं.
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