
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के खिलाफ एजेंडा चलाने और घड़ियाली आंसू वालों को कश्मीर की एक बेटी ने मुंहतोड़ जवाब दिया. दुनियाभर के बुद्धिजीवियों का एक वर्ग कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने से छटपटा रहा है और कश्मीर के भविष्य की चिंता में बिना वजह डूबा जा रहा है. वो भी तब जब ना तो उन्हें कश्मीर के इतिहास का पता है और न वर्तमान की खबर है. ऐसे लोगों को तो बस वही नजर आ रहा है, जो पाकिस्तान उन्हें दिखा रहा है और वहीं समझ आ रहा है, जो पाकिस्तान उन्हें समझा रहा है.
अब कश्मीर के इन फर्जी हमदर्दों को हिंदुस्तान की एक बेटी ने ऐसा जवाब दिया, जो उनसे सहन नहीं हो पा रहा है. दरअसल अमेरिकी कांग्रेस में मानवाधिकारों पर एक सम्मेलन चल रहा है, जहां कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को कश्मीरी आवाम के मानवाधिकारों का उल्लंघन बता रहे हैं और भारत की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं. हालांकि जब भारतीय मूल की अमेरिकी स्तंभकार और कश्मीरी पंडित सुनंदा वशिष्ठ के बोलने की बारी आई, तो उन्होंने अनुच्छेद 370 के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को खामोश कर दिया.
सुनंदा वशिष्ठ ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की सुनाई दास्तां
सुनंदा वशिष्ठ ने 30 साल पहले कश्मीर के उन खूनी हालात को बयां किया, जिनकी वो खुद भुक्तभोगी हैं. उन्होंने कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार की वो कहानियां सुनाईं, जिसकी वो खुद चश्मदीद गवाह हैं. कश्मीर में मानवाधिकारों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों को हिंदुस्तान की बेटी का ये जवाब पसंद नहीं आएगा, क्योंकि सुनंदा वशिष्ठ ने कश्मीर और अनुच्छेद 370 को लेकर एजेंडा चलाने वाले पाकिस्तान का आतंकी सच दुनिया के सामने एक्सपोज़ कर दिया है.
कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर कहां थे मानवाधिकार के ठेकेदार
सुनंदा वशिष्ठ ने कहा, ’मैं कश्मीर घाटी के हिंदू समुदाय से आती हूं. मैंने खुद साल 1990 के कश्मीर का वो दर्द सहा है, जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने हजारों कश्मीरी पंडितों को अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर कर दिया था.’ मानवाधिकारों की आड़ लेकर कश्मीर की गलत छवि पेश करने वाले बुद्धिजीवियों से भारत की बेटी सुनंदा वशिष्ठ ने पूछा कि मानवाधिकारों के ठेकेदार उस समय कहां थे, जब 30 साल पहले आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को चुन-चुनकर मौत के घाट उतारा था. मानवाधिकारों के ठेकेदार उस वक्त कहां थे, जब कश्मीर में हिंदुओं का खुलेआम कत्ल किया जा रहा था, उनके घर जलाए जा रहे थे और हिंदू बहू बेटियों की इज्जत लूटी जा रही थी.
कश्मीरी पंडित और पेशे से कॉलमनिस्ट सुनंदा वशिष्ठ ने सवाल किया कि तब दुनियाभर के नेताओं की चुप्पी क्यों नहीं टूटी थी, जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की वजह से 4 लाख हिंदू परिवारों को जान बचाकर कश्मीर से भागना पड़ा था. आपको बता दें कि 1990 के दशक में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने कश्मीर में अपनी जड़े जमाना शुरू किया था और सबसे पहले हिंदुओं को निशाना बनाया गया था. लाखों हिंदुओं को जान बचाकर भागना पड़ा, जो आज भी अपने घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं, जिनमें सुनंदा वशिष्ठ भी शामिल हैं. वो खुद को खुशकिस्मत मानती हैं, लेकिन हर कोई उनके जितना खुशकिस्मत नहीं था.