
नोटबंदी और जीएसटी के चलते इकोनॉमी की रफ्तार सुस्त पड़ी है. इसका असर ज्यादातर कंपनियों के कारोबार पर पड़ा है, लेकिन खादी पर नहीं. अप्रैल से सितंबर के दौरान खादी की बिक्री 89 फीसदी बढ़ी है. दिवाली के दौरान भी जब अन्य कारोबारी बिक्री न होने की शिकायत कर रहे थे, तब भी खादी की बिक्री काफी अच्छी रही.
814 करोड़ रुपये की हुई बिक्री
अप्रैल से सितंबर के बीच खादी के कपड़े और अन्य सामानों की बिक्री काफी ज्यादा बढ़ी है. इस दौरान खादी उत्पादों की बिक्री 814 करोड़ रुपये के पार रही. पिछले साल इसी दौरान बिक्री का आंकड़ा 430 करोड़ रुपये रहा था.
दिवाली भी हुई रोशन
दिवाली के दौरान भी खादी की बिक्री काफी अच्छी रही. इस दौरान जहां ज्यादातर कारोबारियों की बिक्री घटी है, लेकिन खादी ने बेहतर प्रदर्शन किया है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 17 अक्टूबर को धनतेरस के मौके पर दिल्ली के कनोट प्लेस में खादी ने बिक्री का नया रिकॉर्ड छुआ.
पीएम मोदी को श्रेय
यहां 1.2 करोड़ रुपये के खादी के उत्पाद बिके. पिछले साल यह आंकड़ा 1.11 करोड़ पर रहा था. पिछले कुछ सालों में खादी की बिक्री काफी ज्यादा बढ़ी है. इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जा सकता है. वह खादी के ब्रांड एंबेसडर के तौर पर उभरे हैं. उनके पहनावे ने और स्वदेशी को बढ़ावे के संदेश ने खादी की बिक्री बढ़ाने में मदद की है.
छू सकता है 50 हजार करोड़ का आंकड़ा
माना जा रहा है कि इस वित्त वर्ष में खादी और ग्रामीण इंडस्ट्री का कारोबार 50 हजार करोड़ का आंकड़ा छू सकता है. इसके लिए गिफ्ट कूपन समेत कई कंपनियों के साथ टाईअप करना वजह बनेगा. इससे खादी की पहुंच बढ़ेगी और बिक्री में भी इजाफा होगा.
गिफ्ट कूपन की भी बढ़ी बिक्री
अप्रैल से सितंबर के बीच खादी के गिफ्ट कूपन की बिक्री भी काफी ज्यादा बढ़ी है. पिछले साल इसी दौरान यह बिक्री सिर्फ 86 लाख रुपये की रही थी ,लेकिन इस साल गिफ्ट कूपन की बिक्री का आंकड़ा 5.85 करोड़ को पार कर गया है.
जीएसटी का असर
इस वित्त वर्ष के पहली छमाही के दौरान ज्यादातर कारोबारियों की बिक्री घटी है. दिवाली में भी फेस्टिव सेल पर भी काफी असर पड़ा है. इसके लिए सीधे तौर पर जीएसटी और नोटबंदी को जिम्मेदार माना जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्ट में जीएसटी को ही अर्थव्यवस्था की सुस्ती के लिए जिम्मेदार माना गया है.