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जब लोकमान्य तिलक की प्रतिमा के लिए लड़ गए थे सरदार पटेल!

लोकमान्य तिलक ने मराठी में 'मराठा दर्पण' और केसरी नाम से दो दैनिक अखबार शुरू किए, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया. तिलक अखबार में अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की खूब आलोचना करते थे.

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मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 11:53 AM IST

'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है' का नारा देने वाले लोकमान्य तिलक की आज पुण्यतिथि है. तिलक ने अनेक भारतीयों के मन में अपनी गहरी छाप छोड़ी है. लोकमान्य तिलक साहस और आत्मविश्वास से भरे हुए थे. उनमें ब्रिटिश शासकों को उनकी गलतियों का आईना दिखाने की शक्ति और बुद्धिमत्ता थी. अंग्रेज लोकमान्य तिलक से इतना अधिक डरे हुए थे कि उन्होंने 20 वर्षों में उन पर तीन बार राजद्रोह लगाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने स्वराज की आवाज उठाई.

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अक्टूबर, 1916 में लोकमान्य तिलक जी अहमदाबाद गए थे, उस वक्त यानी करीब सौ साल पहले 40,000 से अधिक लोगों ने उनका अहमदाबाद में स्वागत किया था. इस दौरान यात्रा के दौरान सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनसे बातचीत करने का अवसर मिला था और सरदार वल्लभ भाई पटेल लोकमान्य तिलक जी से अत्यधिक प्रभावित थे.

जब 01 अगस्त, 1920 को लोकमान्य तिलक जी का देहांत हुआ तभी सरदार पटेल ने फैसला कर लिया था कि वे अहमदाबाद में उनका स्मारक बनाएंगे. सरदार वल्लभ भाई पटेल अहमदाबाद नगर पालिका के मेयर चुने गए और तुरंत ही उन्होंने लोकमान्य तिलक के स्मारक के लिए विक्टोरिया गार्डन को चुना और यह विक्टोरिया गार्डन जो ब्रिटेन की महारानी के नाम पर था. सरदार पटेल के इस फैसले से ब्रिटिश नाराज हुए उन्हें प्रतिमा लगाने की इजाजत नहीं दी और उन्हें कई बार मना किया गया.

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हालांकि सरदार पटेल के प्रयास की वजह से तिलक की प्रतिमा बनी और सरदार साहब ने वहां लगवाई. उसके बाद उन्होंने 28 फरवरी, 1929 को इसका उद्घाटन महात्मा गांधी से कराया. उसके बाद बापू ने कहा कि सरदार पटेल के आने के बाद अहमदाबाद नगर पालिका को न केवल एक व्यक्ति मिला है बल्कि उसे वह हिम्मत भी मिली है जिसके चलते तिलक जी की प्रतिमा का निर्माण संभव हो पाया है.

बता दें कि इस प्रतिमा की खास बात ये है कि यह तिलक की ऐसी दुर्लभ मूर्ति है जिसमें वह एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं, इसमें तिलक के ठीक नीचे लिखा है ‘स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है'. लोकमान्य तिलक जी के प्रयासों से ही सार्वजनिक गणेश उत्सव की परंपरा शुरू हुई. सार्वजनिक गणेश उत्सव परम्परागत श्रद्धा और उत्सव के साथ-साथ समाज-जागरण, सामूहिकता, लोगों में समरसता और समानता के भाव को आगे बढ़ाने का एक प्रभावी माध्यम बन गया था.

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23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक ब्राह्मण परिवार में जन्में तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी. ये आधुनिक कॉलेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में थे. बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता के कार्यकर्ता थे. आधुनिक भारत के प्रधान आर्किटेक्ट में से एक थे. उनके अनुयायियों ने उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि दी जिसका अर्थ है जो लोगों द्वारा प्रतिष्ठित है.

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अखबार से जलाई आजादी की अलख

अखबार केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया. भारत के लोगों की हालात में सुधार करने और उन्होंने पत्रिकाओं का प्रकाशन किया. वह चाहते थे कि लोग जागरुक हो. देशवासियों को शिक्षित करने के लिये शिक्षा केंद्रों की स्थापना की.

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