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जानिए क्यों सोशल मीडिया की निगरानी को ज़रूरी मानता है भारत

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता साथ-साथ सोशल मीडिया पर सावधानी से बरतना और उसकी निगरानी करना भी ज़रूरी है. क्योंकि आतंकवादी अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे इस प्लेटफार्म से युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं.

आतंकी सोशल मीडिया को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं आतंकी सोशल मीडिया को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं
परवेज़ सागर/BHASHA
  • नई दिल्ली,
  • 20 मई 2016,
  • अपडेटेड 12:16 PM IST

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता साथ-साथ सोशल मीडिया पर सावधानी से बरतना और उसकी निगरानी करना भी ज़रूरी है. क्योंकि आतंकवादी अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे इस प्लेटफार्म से युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं.

संयुक्त राष्ट्र में भारत ने सोशल मीडिया के बेजा इस्तेमाल पर अपनी चिंता जाहिर की. भारत में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें युवाओं को उकसाने या आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया गया. पुलिस और साइबर सेल ने इस तरह के मामले दर्ज किए हैं.

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संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने नफरत फैलाने के लिए सोशल मीडिया जैसे मंच के इस्तेमाल पर चिंता जताई. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली चर्चा में कहा कि आतंकवादी समूहों के हाथों सोशल मीडिया के दुरूपयोग के मद्देनजर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के साथ ही सोशल मीडिया पर सावधानी से निगरानी करने की जरूरत है.

उनके मुताबिक महाद्वीपों के विकासशील और विकसित देशों में एक समान आतंकवाद के हाइड्रा जैसे राक्षस का फैलाव जारी है. जिसमें सोशल मीडिया का बड़ा हाथ है.

कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआईएस में विदेशी आतंकवादी लड़ाके शामिल हो रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर 15 से 25 साल के युवक हैं. वो सभी विविधता वाले जातीय समूहों और आर्थिक श्रेणियों से आते हैं. इस आतंकी संगठन का फैलाव इसके पुश ऐंड पुल फैक्टर की जबरदस्त जटिलता का प्रतीक है.

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पुश फैक्टर में जंग, अकाल, राजनीति असहिष्णुता और चरमपंथी धार्मिक गतिविधियां जैसे कारक शामिल होते हैं, जिसके चलते कोई उस जगह से विस्थापित होता है. पुल फैक्टर में बेहतर आर्थिक अवसर, ज्यादा रोजगार, बेहतर जीवन की आशा जैसे कारक हैं, जो लोगों को आकर्षित करते हैं.

युवाओं को आतंकवाद की तरफ जाने से तभी रोका जा सकता है, जब वे मुख्यधारा के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक परिवेश से अपना जुड़ाव विकसित कर सकें. आतंकवाद के रास्ते से लौटे लोगों की दीर्घकालीन देख-भाल भी आतंकवाद के संभावित रंगरूटों को यह एहसास दिलाने के लिए एक अहम पहलू है कि उनके लिए विकल्प मौजूद हैं.

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