
उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उतारने की कांग्रेसियों की मांग लगातार जोर पकड़ रही है. कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर तो पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी प्रियंका को मैदान में उतारने की सलाह दे चुके हैं.
यूपी के नए पार्टी प्रभारी गुलाम नबी आजाद भी प्रियंका कार्ड खेलने का तैयार हैं. हालांकि उनकी योजना फिलहाल प्रियंका को सीएम उम्मीदवार के तौर पर उतारने की नहीं है, बल्कि रायबरेली और अमेठी के बाहर भी उनसे चुनाव प्रचार करवाने की है. लेकिन क्या प्रियंका वाकई यूपी में कांग्रेस की डूबती नैय्या को पार लगा पाएंगी? फिलहाल कांग्रेस की जो हालत में है, उसमें शायद प्रियंका कार्ड भी यूपी में पार्टी के लिए बड़े फायदे का सौदा साबित न हो.
जानिए प्रियंका को सीएम उम्मीदवार के तौर पर उतारना क्यों साबित हो सकता है गलत फैसला...
1. ब्रह्मास्त्र चलाने के लिए सही वक्त की तलाश
कांग्रेस में बार-बार प्रियंका को लाने की मांग इसलिए जोर पकड़ती है क्योंकि उन्हें पार्टी के लिए ट्रंप कार्ड माना जाता है और कांग्रेसी उन्हें ब्रह्मास्त्र से कम नहीं मानते. लेकिन ये ब्रह्मास्त्र छोड़ने का सही वक्त नहीं है. कांग्रेसी भी अच्छी तरह जानते हैं कि प्रियंका के दम पर भी पार्टी सपा, बसपा और बीजेपी नहीं पछाड़ सकती.
इसलिए प्रियंका की लोकप्रियता को यूपी विधानसभा चुनाव की बजाय लोकसभा चुनाव में भुनाना कांग्रेस के लिए ज्यादा फायदे का सौदा साबित होगा.
2. अगर नहीं चला ट्रंप कार्ड तो क्या होगा?
कांग्रेस की कमान जल्द ही राहुल गांधी को मिलने की खबरें आ रही हैं. वैसे, राहुल अभी तक तो पार्टी का भला नहीं कर पाए हैं, लेकिन उनकी असली परीक्षा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद होगी. अगर राहुल के अध्यक्ष
बनने से पहले ही प्रियंका को यूपी चुनाव में उतारा गया और वे वहां पर कोई करिश्मा नहीं कर पाई तो कांग्रेस का सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड फुस्स साबित हो जाएगा. राजनीति के जानकार कहते हैं कि ऐसे में राहुल के भी असफल होने की स्थिति में कांग्रेस के
पास कोई विकल्प बाकी नहीं रह जाएगा और प्रियंका को फिलहाल विकल्प के तौर पर बचाकर रखना ही कांग्रेस के भविष्य के लिए सही होगा.
3. 44 की उम्र में भी राजनीतिक अनुभव नहीं
44 साल की उम्र में भी प्रियंका को राजनीति का कोई अनुभव नहीं है. कांग्रेसियों को सीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रियंका को उतारने से पहले ये नहीं भूलना नहीं कि नेहरू पीएम बनने से आजादी की लड़ाई में शामिल थे.
प्रियंका की दादी इंदिरा गांधी ने सालों नेहरू के अनौपचारिक तौर पर नेहरू के सहायक के तौर पर काम किया और प्रधानमंत्री बनने से पहले वे कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्य, पार्टी की अध्यक्ष, राज्यसभा सांसद और
सूचना प्रसारण मंत्री बनी थीं. प्रियंका के पिता राजीव गांधी ने भी पीएम बनने से पहले यूथ कांग्रेस के लिए राजनीति की. 1981 में वे सांसद बने और 1982 में उन्हें एशियन गेम्स के आयोजन की जिम्मेदारी दी गई थी.
यहां तक कि राहुल को भी सीधे कांग्रेस का उपाध्यक्ष नहीं बनाया गया. राजनीति में एंट्री करने के 9 साल बाद उन्हें कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया. प्रियंका ने तो कांग्रेस के लिए किसी भी पद पर काम नहीं किया.
इसलिए उन पर बड़ा दांव खेलना का फैसला लेना आसान नहीं है.
4. भाषणों में नहीं दिखाया दम
प्रियंका में लोग उनकी दादी की छवि देखते हैं, लेकिन पोती ने अपने भाषणों में कभी इंदिरा गांधी जैसा दमखम नहीं दिखाया. प्रियंका अपनी मां सोनिया गांधी के साथ सार्वजनिक मंच पर नजर आती रही हैं और उनके
लिए प्रचार भी करती रही हैं, लेकिन कभी भी वे अपने भाषणों और बयानों से मीडिया और आम लोगों को ध्यान नहीं खींच पाईं. अगर वे यूपी चुनाव में रायबरेली और अमेठी के बाहर प्रचार के लिए राजी हो भी जाती हैं
तो क्या गारंटी है कि वे अपने भाषणों से कांग्रेस के लिए वोट बटोर पाएंगी? सिर्फ चेहरे से तो वे पार्टी की नैय्या पार नहीं लगा सकतीं.
5. राहुल के लिए खतरा
कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा प्रियंका को कांग्रेस के भविष्य के लिए राहुल से ज्यादा बेहतर विकल्प के तौर पर देखता है. जानकार उन्हें राहुल के लिए खतरा भी मानते हैं. ऐसे में प्रियंका को कांग्रेस में बड़ा रोल मिलने पर
राहुल की भूमिका और अहमियत पर सवाल खड़े हो सकते हैं और सोनिया गांधी से बेहतर इस बात को कौन समझ सकता है.