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लॉ कमीशन की सलाह, बरी होने वाले निर्दोषों को मिले सही मुआवजा

विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि जो निर्दोष लोग जेल में बिना किसी जुर्म के कैद रहते हैं और बाद में बरी हो जाते हैं, उन्हें उचित मुआवजा मिलना चाहिए.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
संजय शर्मा/राहुल विश्वकर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 31 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

विधि आयोग ने हाल ही में जारी अपनी मसौदा रिपोर्ट में तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय जाहिर की है. आयोग ने बेवजह जेल में रहने वालों को उचित मुआवजा देने की पैरवी की है. इसके अलावा आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर संविधान में संशोधन करने की सलाह दी है. आयोग ने इसके अलावा देशद्रोह कानून का दुरुपयोग रोकने पर भी जोर दिया.

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जब मुलजिम पर दोष न हो साबित

विधि आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में उन लोगों के लिए मुआवजे की सिफारिश की है, जिनको पुलिस या जांच एजेंसी मनमाने तरीके से फंसाकर वर्षों जेल में सड़ा देती है. सालों बाद अदालत गवाहों के बयानात और सबूतों की रोशनी में इस नतीजे पर पहुंचती है कि मुलजिम पर जुर्म साबित नहीं हो पाया. अदालत मुलजिम को बरी कर देती है. इसका मतलब ये कि मुलजिम अपनी दुनिया में लौट जाए. लेकिन दरअसल अपनी दुनिया में लौटने के बाद भी उसकी दुनिया लुट जाती है.

समुचित मुआवजा देकर कम करें संताप

शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना, इज्जत का कबाड़ा, पीछे से परिवार का दुर्दशा, संपत्ति का नुकसान जैसी चीजें उसे दुनिया में सिर उठाकर जीने नहीं देती. ऐसे में वो चाहकर भी अपनी पिछले जीवन, पिछली दुनिया में नहीं लौट सकता. विधि आयोग का कहना है कि ये सिर्फ कहने की बातें हैं. कोई भी गुजरे हुए दिन, इज्जत और मानसिक शांति नहीं लौटा सकता. हां, समुचित मुआवजा देकर उसके संताप को जरूर कम किया जा सकता है. आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक तो भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में मुलजिम को रिहा कर देने की तजवीज थी. लेकिन हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने ये कानूनी और संवैधानिक अधिकारों का सवाल उठाया था.

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समय रहते मिले मुआवजा

विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आईसीसीपीआर के अनुच्छेद 14 (6) और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणापत्र की धारा 32 के मुताबिक भी मुआवजा तो बनता ही है. सवाल ये भी है कि मुआवजा समय रहते मिले, क्योंकि गैरकानूनी हिरासत या कैद अदालत में गलत और गैरकानूनी साबित होती है तो मुलजिम के लिए भारतीय न्यायिक व्यवस्था में फिलहाल मुआवजे का ना तो कोई प्रावधान है ना ही अधिकार  और ना ही इसके लिए किसी तरह के मुकदमे की गुंजाइश. किसी निर्दोष के जीवन को नरक बनाने की इस घोर लापरवाही के लिए मुआवजा अदा करना अब तक सरकार, राज्य या शासन के लिए वैधानिक अनिवार्यता नहीं है. इसे सुनिश्चित करने की सिफारिश आयोग ने की है.

गैरकानूनी हिरासत बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन

विधि आयोग ने सिफारिश की है कि ऐसी दशा में  ना केवल स्पेशल कोर्ट बनाकर ऐसे मामलों में फौरन सुनवाई कर फैसला दे. इसमें कोई दिक्कत हो तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का भी प्रावधान हो. आयोग की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मुआवजा तय करने और भुगतान करने का नियम सरल और पारदर्शी हो, क्योंकि किसी को भी गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखना बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है और ये तभी मुमकिन होता है जब अभियोजन और जांच एजेंसियां अपने काम में लापरवाही या मनमाना रवैया अपनाती हैं.

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स्पेशल कोर्ट बनाने पर भी आयोग का जोर

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पेशल कोर्ट बनाने और निश्चित समय सीमा में ऐसे दावे निपटाने, मुआवजा तय करने की सिफारिश की है. इसके अलावा जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने, मुआवजे का दावा करने और ये तय करने की जिम्मेदारी सरकार पर डाली है कि कौन लोग, किस परिस्थितियों में और कैसे मुआवजे का दावा कर सकते हैं.

एक साथ चुनाव पर संविधान में संशोधन करें

देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर विधि आयोग ने सरकार को अपनी मसौदा रिपोर्ट में एक साथ कराने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए संविधान में संशोधन करने की सलाह दी है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में  कहा है कि आधे राज्यों में एक साथ चुनाव कराने लिए संवैधानिक संशोधन जरूरी नहीं है. 12 राज्यों और एक केंद्र शाषित प्रदेश का चुनाव 2019 के आम चुनावों के साथ किए जा सकते हैं. वहीं 2021 के अंत तक 16 राज्यों और पुडुचेरी के चुनाव आयोजित किए जा सकते हैं. जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में पांच साल की अवधि में केवल दो बार  चुनाव होगा.

देश की आलोचना करना देशद्रोह नहीं

विधि आयोग ने देशद्रोह पर भी अपनी राय जाहिर की है. आयोग का मानना है कि देश की आलोचना या गाली देने या फिर इसके एक खास पहलू को देशद्रोह नहीं माना जा सकता. यह आरोप केवल तभी थोपा जा सकता है जब सरकार को हिंसा और गैरकानूनी तरीकों से उखाड़ फेंकने का इरादा हो. यह टिप्पणी विधि आयोग ने इस मुद्दे पर एक परामर्श पत्र में की.

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राजद्रोह की आईपीसी की धारा 124 ए के पुनरीक्षण पर आयोग ने कहा कि आईपीसी में इसे शामिल करने वाला ब्रिटेन इस कानून को दस साल पहले ही खत्म कर चुका है. ऐसे में इस पर विचार किया जाना चाहिए.

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