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इंदिरा गांधी. इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी. भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री. फिरोज गांधी से शादी के बाद बापू ने जिन्हें अपना 'गांधी' उपनाम दिया. बापू से उनका कोई खून का रिश्ता नहीं था मगर जो भी था वह खून के रिश्ते से बढ़कर था.
उनका जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था और वह 31 अक्टूबर 1984 तक जीवित रहीं. इस वर्ष पूरा देश और खास तौर पर कांग्रेस पार्टी उनकी जन्मशती मनाने में लगा है. ऐसे में एक सामान्य नागरिक और खास तौर पर स्टूडेंट्स उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं...
1. छोटी उम्र से ही लक्ष्य प्राप्ति में लग जाना...
इंदिरा भले ही तब के मशहूर बैरिस्टर मोती लाल नेहरू की पोती और कांग्रेस के लोकप्रिय नेता जवाहर लाल नेहरू की बिटिया हों, मगर उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए छोटी उम्र में ही वानर सेना बना ली थी. वह इसके माध्यम से झंडा जुलूस, विरोध प्रदर्शन के साथ-साथ कांग्रेसी नेताओं के संवेदनशीन प्रकाशनों और प्रतिबंधित सामग्रियों का परिसंचरण करने का काम करती थीं.
2. पहले पढ़ाई और बाद में लड़ाई...
इंदिरा को जानने वालों का मानना है कि इंदिरा हमेशा से ही खुद को बड़ी भूमिकाओं के लिए तैयार कर रही थीं. उन्होंने शांति निकेतन के साथ-साथ ऑक्सफोर्ड और सोमरविल्ले कॉलेज में पढ़ाई की. हालांकि वह वहां भी भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत भारतीय लीग की सदस्या बन कर काम करती रहीं.
3. कभी गूंगी गु़ड़िया तो बाद में दुर्गा...
जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधान मंत्री बने. उनके आकस्मिक मृत्यु के बाद इंदिरा ने देश की बागडोर संभाली. उन दिनों वह काफी कम बोला करती थीं. विपक्ष की राजनीति करने वाले मोरारजी देसाई और डॉ लोहिया ने उन्हें गूंगी गुड़िया तक कहा. हालांकि भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूरण भूमिका अदा करने पर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विपक्षी नेताओं ने उन्हें दुर्गा कह कर संबोधित किया.
4. देश को रखा हमेशा आगे...
इंदिरा को देश हमेशा एक ऐसी नेत्री के तौर पर याद करता है जिनके लिए देश पहले है. हालांकि इस क्रम में उन पर कई आरोप भी लगते हैं कि उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग किया. चुनाव में कदाचार किया लेकिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स जैसे फैसलों के लिए देश हमेशा उनका शुक्रगुजार रहेगा.
5. फैसले लेने में हमेशा आगे...
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि वह गजब की राजनेता थीं. चाहे देश में आपातकाल लगाने का निर्णय हो या फिर पंजाब में अलगाववादियों पर किए जाने वाले हमले. एक बार निर्णय करने के बाद वह पीछे नहीं हटती थीं. उनकी मौत के पीछे उनका अलगाववादियों से निपटने का निर्णय भी अहम कारक माना जाता है.