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क्यों खुले में करते हैं दिल्ली वाले ये 'गंदे काम'?

नॉर्थ दिल्ली में आबादी के हिसाब से यदि पब्लिक टॉयलेट्स की संख्या देखी जाए तो वो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. उत्तरी दिल्ली में लगभग 1800 पब्लिक टॉयलेट्स हैं जो कि नाकाफी है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
रवीश पाल सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 30 मई 2017,
  • अपडेटेड 9:44 PM IST

दिल्ली में एक शख्स की सिर्फ इसलिए पीट-पीट कर हत्या कर दी गई क्योंकि उसने कुछ लोगों को खुले में पेशाब करने से रोका था. जाहिर सी बात है कि हत्यारों का ये कृत्य बेहद ही निंदनीय है लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि आखिर दिल्ली इतनी बेशर्म क्यों हैं? क्यों बार-बार बताने के बावजूद दिल्ली वाले खुले में पेशाब करते हैं. जब इसकी पड़ताल की तो दो बातें निकल कर सामने आईं.

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पहली वजह: लोगों की मानसिकता बदलना जरूरी
दरअसल इसके पीछे की एक बड़ी वजह है लोगों की मानसिकता. पेशाब आने पर लोगों को जहां जगह मिलती है वो वहीं गाड़ी रोक देते हैं. कोई भी इस बात की जहमत नहीं उठाता कि वो थोड़ा इंतजार करे और आगे आने वाले किसी सार्वजनिक शौचालय का इतेमाल करें.

दूसरी वजह: पब्लिक टॉयलेट्स की कमी
इस मामले में सिर्फ लोगों की मानसिकता को ही दोष नहीं दिया जा सकता बल्कि इसमें एक बड़ी विफलता सिविक एजेंसियों की भी है. दिल्ली में पब्लिक टॉयलेट्स की कमी है तो वहीं दूसरी तरफ ज्यादातर पब्लिक टॉयलेट्स ऐसे हैं जो कि इतने गन्दे हैं कि लोग चाहकर भी उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते. पब्लिक टॉयलेट्स का रखरखाव भी ठीक नहीं है. जिसके कारण उनकी हालत और खराब होती जा रही है.

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एमसीडी का तर्क
नार्थ दिल्ली की मेयर प्रीति अग्रवाल का कहना है कि लोगों की मानसिकता को बदलना बेहद जरूरी है. मेयर ने कहा कि यही दिल्ली है जहां लोग दिल्ली मेट्रो को तो साफ रखते हैं लेकिन बाहर निकलते ही गंदगी फैलाते हैं. मेयर ने कहा कि लोगों को ये स्वीकार करना होगा कि पूरी दिल्ली उनका घर है और घर को उनको साफ रखना है.

वहीं नार्थ एमसीडी में नेता विपक्ष राकेश कुमार का कहना है कि नॉर्थ दिल्ली में आबादी के हिसाब से यदि पब्लिक टॉयलेट्स की संख्या देखी जाए तो वो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. उत्तरी दिल्ली में लगभग 1800 पब्लिक टॉयलेट्स हैं जो कि नाकाफी है.

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