
जघन्य अपराधों में 16 से 18 साल के किशोरों के खिलाफ वयस्क कानूनों के तहत मुकदमा चलाने का प्रावधान करने वाले एक अहम विधेयक को लोकसभा ने अपनी मंजूरी दे दी.
सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि उसने यह तय करने के लिए काफी संतुलन कायम किया है कि निर्दोष बच्चों के साथ अन्याय नहीं हो. ‘किशोर न्याय: बालकों की देखरेख और संरक्षण: विधेयक 2014’ को सरकार द्वारा उपबंध 7 को हटाए जाने पर सहमत होने के बाद मंजूरी दी गई.
उपबंध 7 के मुताबिक, ‘कोई भी व्यक्ति जिसने 16 से 18 साल की उम्र में किसी जघन्य अपराध या गंभीर अपराध को अंजाम दिया है, और वह 21 साल की उम्र पूरी करने के बाद पकड़ा जाता है, तो इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत उस पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा.'
सरकार की ओर से इस विधेयक में कम से कम 42 संशोधन पेश किए गए और उन सभी को स्वीकार कर लिया गया, जबकि कांग्रेस के शशि थरूर और आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन समेत विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए सभी संशोधनों को नामंजूर कर दिया गया.
विपक्षी सदस्यों ने उम्र सीमा को घटाए जाने का विरोध करते हुए नए कानून के दुरुपयोग और इसके तहत बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन की आशंका जताई, जो 2012 में निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले में 16 वर्षीय एक किशोर के शामिल होने को देखते हुए लाया गया था.
हालांकि महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि उन्होंने ‘बाल हितैषी’ रुख अपनाने और पीड़ितों के प्रति न्याय तथा बच्चों के अधिकारों के बीच ‘पूर्ण संतुलन’ बनाने के प्रयास किए हैं. उन्होंने कहा कि नये कानून की मंशा एक ‘‘प्रतिरोधक’’ के रूप में यह सुनिश्चित करने की है कि किशोर अपराधों से बचें और अपनी जिंदगी खराब न न करें.
नए कानून की जरूरत को न्यायोचित ठहराते हुए मेनका गांधी ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2013 में करीब 28 हजार किशोरों ने विभिन्न अपराध किए और इनमें से 3887 ने कथित रूप से जघन्य अपराधों को अंजाम दिया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश का जिक्र किया, जहां शीर्ष अदालत ने जघन्य अपराधों में शामिल किशोरों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर कानून की समीक्षा की पैरवी की थी.
मेनका गांधी ने विपक्षी सदस्यों के इन विचारों को खारिज कर दिया कि 16 साल की उम्र वयस्क कानूनों के तहत मुकदमा चलाने के लिए बहुत कम है और अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्रों के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्रों के अनुसार ऐसे अपराधों के लिए उम्र की परिभाषा देश विशेष की आर्थिक, सामाजिक तथा अन्य मौजूदा परिस्थितियों पर निर्भर करती है. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में यह उम्र दस साल, जबकि अर्जेटीना में 16 साल और फ्रांस में 17 साल है.
मेनका गांधी ने कहा कि प्रस्तावित कानून का एक अन्य पॉजिटिव पहलू दत्तक देखभाल है, जहां परिवार किसी बच्चे की देखभाल और उसे शिक्षित करने के लिए बिना उसे गोद लिए उसकी जिम्मेदारी स्वीकार कर सकते हैं. इसके लिए धनराशि सरकार द्वारा मुहैया करायी जाएगी.
इनपुट: भाषा