
अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया को जब आम आदमी पार्टी के नेता आशीष खेतान ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की माफी वाला पत्र सौंपा तो उन्हें गंगा नहाने जैसा सुकून मिला, क्योंकि चुनाव के दौरान लगाए गए नशे से जुड़े आरोपों से उन पर गहरे सवालिया निशान लग गए थे.
मजीठिया ने केजरीवाल की माफी को 'बड़ी बात' बताया क्योंकि सत्ता में रहते किसी ने पहले कभी माफी नहीं मांगी थी. लेकिन हमेशा विरोधियों के निशाने पर रहने वाले केजरीवाल के लिए यह उलटबांसी जैसी लगती है.
हुआ भी वही. केजरीवाल पर फौरन दूसरी पार्टियों के नेताओं ने गलतबयानी के तंज कसे. मगर केजरीवाल और आम आदमी पार्टी यहीं नहीं रुकी. माफीनामे का अभियान चल पड़ा. 3 अप्रैल तक केजरीवाल समेत अन्य आप नेता केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल तथा उनके पुत्र अमित सिब्बल और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से माफी मांग चुके थे. डीडीसीए मानहानि के केस में जेटली से केजरीवाल, संजय सिंह, आशुतोष, राघव चड्ढा और दीपक वाजपेयी ने लिखित माफी मांगी है. लेकिन इसमें आरोपी कुमार विश्वास ने केस लडऩे का फैसला किया है.
अब यह सवाल हर किसी के जेहन में है कि अलग किस्म की राजनीति करने के लिए बनी आम आदमी पार्टी ने किस रणनीति के तहत माफीनामों की झड़ी लगा दी है. पड़ताल में यह कोई पेचीदा नहीं बल्कि शुद्ध नफा-नुक्सान का मामला निकला.
आप विधायक अमानतुल्ला खान ने इंडिया टुडे से कहा, ''तंत्र ऐसा है कि कोर्ट केस मं बहुत पैसा और वक्त बर्बाद होता है. इसलिए हमने माफी मांगकर मामला निपटाने का फैसला किया. इसका राजनैतिक नफा-नुक्सान नहीं सोचा गया. लेकिन जनता में इसकी अच्छी प्रतिक्रिया है. लोग कह रहे हैं झंझट से निकल गए, अच्छा हुआ.''
इस वक्त केजरीवाल पर 33 मुकदमे देशभर में चल रहे हैं जिनमें कुछेक में फैसले की घड़ी भी नजदीक आ रही है. जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, जन प्रतिनिधि दोषी ठहराए जाने पर छह साल के लिए चुनाव नहीं लड़ पाएगा और सदस्यता भी तत्काल चली जाएगी. जाहिर है, आप नेताओं को मुकदमा लडऩे की कीमत भी चुकानी पड़ सकती थी, जो पार्टी के भविष्य के लिए विध्वंसक हो सकती थी.
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज कहते हैं, ''यह लीगल सेल की रणनीति है, जिसके तहत शीर्ष नेतृत्व के ऊपर सभी केसों को सुलह के जरिए निपटाया जा रहा है. दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि हम अहं की लड़ाई लडऩे नहीं आए हैं. जनता ने हमें चुनकर भेजा है काम करने के लिए, न कि मुकदमे लडऩे के लिए.
हालांकि आप को इसकी कुछ राजनैतिक कीमत चुकानी पड़ रही है. मजीठिया के मामले में संजय सिंह केस लडऩे पर अड़े हुए हैं. पंजाब के विधायक माफी का खुलकर विरोध कर रहे हैं. विपक्षी दलों के आरोपों ने तो आप की नाक में दम कर दिया है.
बहरहाल, इस पर जनता का फैसला आने में वक्त लगेगा लेकिन एक सबक जरूर मिलता है कि अनर्गल और कही-सुनी बातों को अपना बयान बनाना खुद को गहरी मुसीबत में फंसाने जैसा होता है.
आप नेताओं को मुकदमा लड़ने की कीमत भी चुकानी पड़ सकती है, जो पार्टी के लिए विध्वसंक हो सकती है.
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