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कश्मीर मुद्दे पर केंद्र और राज्य के सुर अलग-अलग

2017 में 24 आम लोग और सुरक्षा बल के जवान मारे गए. ये आंकड़ा 2007 के बाद सबसे ज्यादा था.

कश्मीर पर महबूबा मुफ्ती का नरम रुख कश्मीर पर महबूबा मुफ्ती का नरम रुख
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 20 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 2:32 PM IST

12 फरवरी को कश्मीर को लेकर राज्य और केंद्र के दो बयान आए. इन दोनों बयानों के सुर अलग-अलग थे. पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख और राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने दिल्ली से अपील की ''पाकिस्तान से बातचीत शुरू करनी चाहिए."

उन्होंने कहा अगर हमें खून खराबे को रोकना है तो पाकिस्तान से बातचीत करनी जरूरी है. लेकिन महबूबा को क्या खबर थी कि जिस समय वे यह बयान दे रहीं थीं उसी समय आतंकी हमला भी हो जाएगा.

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इधर महबूबा मरहम लगाने की कोशिश कर रही थीं तो उधर आतंकी हमले से बौखलाई रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने पाकिस्तान को चेतावनी दी, 'उन्होंने कहा, ये गुस्ताखी महंगी पड़ेगी. पाकिस्तान को इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा'. यानी जब महबूबा नरमी बरत रहीं थीं तभी दिल्ली से इस मसले पर और सख्ती बरती जा रही थी.

2017 में 24 आम लोग और सुरक्षा बल के जवान मारे गए. ये आंकड़ा 2007 के बाद सबसे ज्यादा था. 2018 की शुरुआत ही जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी हमले से हुई. 1 जनवरी को जैश आतंकियों ने भारी सुरक्षा इंतजामों वाले दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले के लेटपोरा स्थित केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के कैंप पर फिदायीन हमला किया.

इसमें पांच जवान शहीद हो गए. पुलिस के मुताबिक, यह हमला 26 दिसंबर को जैश के ''डिविजनल कमांडर" और दक्षिण कश्मीर में जैश के मुख्य भर्तीकर्ता नूर मोहम्मद तांत्रे के सुरक्षाबलों द्वारा मारे जाने का बदला लेने के लिए हुआ था.

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6 जनवरी की सुबह एक आइईडी ब्लास्ट हुआ, जिसमें जम्मू-कश्मीर पुलिस के चार जवान मारे गए. हुर्रियत की हड़ताल के मद्देनजर सोपोर के गोल मार्केट में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए इन जवानों की ड्यूटी लगाई गई थी.

6 फरवरी को श्रीनगर केंद्रीय कारागार में बंद कैदियों को मेडिकल चेकअप के लिए लेकर आई पुलिस पार्टी पर हमला हुआ जिसमें पुलिस के दो जवान शहीद हो गए.

यह हमला लश्कर के आतंकी नवीद जट्ट ऊर्फ अबू हंजुला को छुड़ाने के लिए हुआ था. श्रीनगर के प्रमुख अस्पताल श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) अस्पताल परिसर के भीतर यह इस तरह का पहला हमला था.

पत्थरबाजी के मुकदमें वापस लेने का फैसला

3 फरवरी को महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा में बताया कि उनकी सरकार ने सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी के आरोपी 9,730 युवाओं से आपराधिक मुकदमे वापस लेने का फैसला किया है. ये मुकदमे 2008 से लेकर अब तक के हैं. इनमें 4,074 युवा ऐसे थे, जिन्होंने पहली बार यह अपराध किया था.

बहरहाल, पत्थरबाजों को दी गई इस आम माफी को केंद्र के कश्मीर में तैनात विशेष प्रतिनिधि दिनेश्वर शर्मा की सिफारिश के रूप में देखा जा रहा है. शर्मा की पिछले अक्तूबर में ही नियुक्ति हुई है. उनकी नियुक्ति से घाटी में एक आस जगी थी. लेकिन दिक्कत यह है कि वार्ताकार शर्मा के पास अब भी कोई स्पष्ट आदेश नहीं है.

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2017 में आतंकी संगठन में शामिल हुए सबसे ज्यादा घाटी के युवा

राज्य सरकार की नरमी के बावजूद आतंकवाद में कोई कमी नहीं आई है. 6 फरवरी को महबूबा ने विधानसभा में बताया कि 2017 में 126 कश्मीरी युवा हिज्बुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों में शामिल हो गए. यानी स्थानीय युवाओं के आतंकी संगठनों से जुडऩे के आंकड़े में 2017 में 44 फीसदी का इजाफा हुआ है और यह पिछले सात साल में सर्वाधिक है.

राज्य ने शुरू की पुनर्वास नीति

राज्य सरकार केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के प्रोत्साहन पर हथियार डालने वाले युवाओं के पुनर्वास के लिए एक नई ''समर्पण नीति" पर काम कर रही है लेकिन यह नीति आतंकवाद की राह पर चले गए युवाओं को लुभा नहीं पा रही.

सरकार की पुनर्वास नीति 2014 के तहत आत्मसमर्पण पर 1.5 लाख रु. का फिक्सड डिपोजिट, समर्पित हथियार के एवज में नकद रकम और तीन साल तक 2,000 रु. का मासिक वजीफा दिया जाता है. 2015 से 2017 के बीच 12 आतंकियों ने आत्मसर्मपण किया लेकिन उनमें से एक व्यक्ति भी इस सरकारी योजना के लाभ का दावा करने नहीं आया.

जहां केंद्र के सख्त रवैए का कोई खास असर नहीं हो रहा है, वहीं पीडीपी की अगुआई वाली राज्य सरकार की पुचकारने वाली नीति भी बेअसर साबित हो रही है. 2015 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली महबूबा द्वारा सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी के आरोपी हजारों कश्मीरी युवाओं को बिना शर्त आम माफी देने की घोषणा संभवतः सरकार द्वारा मरहम लगाने की अब तक की सबसे बड़ा कोशिश है.

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