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अमेरिकी रिपोर्ट का दावा, 2018 में आएंगे तबाही मचाने वाले भूकंप, इन जगहों पर खतरा!

रिपोर्ट की मानें तो जिस समय पृथ्वी रोटेशन मोड में आती है तब भूकंप की आशंका ज्यादा रहती है. इस समय टेक्टोनिक प्लेट के रोटेशन का समय है जो बड़ा खतरा साबित हो सकता है.

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मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 02 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 4:21 PM IST

2017 के अलविदा होने के साथ ही 2018 का आगाज़ हो गया है. 2017 में कई ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आईं जिन्होंने दुनिया को झकझोर कर रख दिया. लेकिन 2018 में भी सुकून नहीं मिलने जा रहा है. इस साल भूकंप एक बड़ी प्राकृतिक आपदा का रूप ले सकता है.

अगस्त 2017 में ही एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि नए साल में भूकंप की गति बढ़ेगी. 2018 में 7 लेवल से अधिक के कई झटके दुनिया को हिला सकते हैं. इस रिपोर्ट को यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलराडो ने जारी किया था. रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया था कि भूकंप का लेवल 9.0 तक भी जा सकता है. 2018 में करीब 20 ऐसे भूकंप आ सकते हैं.

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रिपोर्ट की मानें तो जिस समय पृथ्वी रोटेशन मोड में आती है तब भूकंप की आशंका ज्यादा रहती है. इस समय टेक्टोनिक प्लेट के रोटेशन का समय है, जो बड़ा खतरा साबित हो सकता है. अगर रिपोर्ट सही साबित होती है और 7 से 9.0 लेवल तक के भूकंप आते हैं तो उसके बाद हल्के झटकों की भी आशंका बढ़ सकती है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तरह का भूकंप वेस्टर्न अमेरिका, सदर्न यूरोप, मिडिल ईस्ट, दक्षिण अमेरिका समेत अन्य इलाकों को हिला सकता है. न सिर्फ भूकंप, बल्कि ज्वालामुखी भी इस साल दुनिया की मुसीबत बढ़ा सकते हैं. हालांकि, रिपोर्ट में इन बातों की पुष्टि नहीं की गई है.

विज्ञान ऐसा बिल्कुल नहीं कहता है कि भूकंप का पहले से ही पता लगाया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने सिर्फ इस बात का अंदाजा ही लगाया है. नेशनल अर्थक्वेक इंफोर्मेशन सेंटर हर साल करीब 20,000 भूकंप रिकॉर्ड करता है, जिसमें से 100 भूकंप ऐसे होते हैं, जिनसे नुकसान होता है.

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इसलिए आता है भूकंप

धरती चार परतों से बनी है- इनर कोर, आउटर कोर, मेंटल और क्रस्ट. क्रस्ट और ऊपरी मेंटल को लिथोस्फेयर कहा जाता है. लिथोस्फेयर 50 किलोमीटर की मोटी परत होती है. ये परत वर्गों में बंटी है और इन्हें टेक्टोनिकल प्लेट्स कहते हैं. जब इन टेक्टोनिकल प्लेटों में हलचल तेज होती है तो भूकंप आता है. यही नहीं, उल्का के प्रभाव और ज्वालामुखी विस्फोट और माइन टेस्टिंग और न्यूक्लियर टेस्टिंग की वजह से भी भूकंप आते हैं.

ऐसे मापते हैं भूकंप की तीव्रता

भूकंप की तीव्रता और अवधि का पता लगाने के लिए सिस्मोग्राफ का इस्तेमाल किया जाता है. इस यंत्र के जरिए धरती में होने वाली हलचल का ग्राफ बनाया जाता है, जिसे सिस्मोग्राम कहते हैं. इसके आधार पर गणितीय पैमाना (रिक्टर पैमाना)  के जरिए भूकंप की तरंगों की तीव्रता, भूकंप का केंद्र और इससे निकलने वाली ऊर्जा का पता लगाया जाता है.

सिस्मोग्राफ का एक हिस्सा ऐसा होता है, जो भूकंप आने पर भी नहीं हिलता और अन्य हिस्से हिलने लगते हैं. जो हिस्सा नहीं हिलता है, वो भूकंप की तीव्रता को रिकॉर्ड करता रहता है. इसी के आधार पर सिस्मोग्राम तैयार होता है, जो भूकंप की सटीक जानकारी हासिल करने में मदद करता है.

इसको मापने वाले रिक्टर स्केल का विकास अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर ने साल 1935 में किया था. रिक्टर स्केल पर प्रत्येक अगली इकाई पिछली इकाई की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्रता रखती है. इस स्केल पर 2.0 या 3.0 की तीव्रता का भूकंप हल्का होता है, जबकि 6.2 या इससे ज्यादा की तीव्रता का मतलब शक्तिशाली भूकंप होता है.

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