
नोटबंदी के एक महीने बाद भी लोगों को कैश की किल्लत झेलनी पड़ रही है. शादियों से जुड़े व्यापार पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है. शादी एक ऐसा बंधन है जिसमे बंधने के लिए छोटी-छोटी रस्मों को पूरा करना पड़ता है. नगद देने के लिए लिफाफे से लेकर दूल्हे के साफे तक की ज़रूरत एक शादी के घर में होती है. दूल्हे की पगड़ी, मोतीमाला, साफा, कलंगी, मंडा, दूल्हे की तलवार, पूजा थाली. एक ऐसी रस्म भी है, जिसमें दूल्हे को नोटों से लदी माला से सजाया जाता है. व्यापारियों की मानें, तो नोटबंदी की वजह से नोटमाला का बिजनेस बेहद घाटे में चल रहा है.
छुट्टे पैसे नहीं होने से आ रही दिक्कत
'आजतक' की टीम ने दिल्ली के सदर बाज़ार में ऐसी ही एक दुकान का जायजा लिया. हैरानी की बात थी कि शादी का सीजन होने के बावजूद चौखेलाल की दुकान में सन्नाटा पसरा हुआ था. पिछले 35 साल से शादियों में इस्तेमाल होने वाला सामान बेच रहे चौखेलाल ने बताया, 'नोटबंदी की वजह से बहुत दिक्कत हो रही है, लोग सामान खरीदने के लिए 2000 के नोट लेकर आ रहे हैं, लेकिन लौटाने के लिए खुले रुपये नहीं हैं.' ऑनलाइन बैंकिंग के सवाल पर चौखेलाल ने बताया कि वे पढ़े लिखे नहीं हैं और मशीन चलाना नहीं जानते हैं. इस वजह से दुकान में डेबिट कार्ड मशीन नहीं रखी है.
कैश की किल्लत से किराया जुटाना मुश्किल
चौखेलाल के मुताबिक, उन्हें हर महीने दुकान का डेढ़ लाख रुपये किराया देना पड़ता है, लेकिन कैश की किल्लत की वजह से किराया जुटाना भी मुश्किल हो रहा है. चौखेलाल बताते हैं, 'शादी के सीजन में पहले रोजाना 20 हजार की बिक्री हो जाती थी, लेकिन अब दिनभर में 4 हजार की कमाई भी मुश्किल हो रही है.'
बड़े नोट बंद होने से दूल्हे का रौब भी हुआ कम
500 और 1000 के नोट बंद होने से दूल्हे का रौब भी कम हो गया है. नोटमाला में अब 10, 20 या 50 के नोट लगाने की डिमांड बढ़ गई है. चौखेलाल ने बताया कि नोटों की गड्डी भी आसानी से नहीं मिल रही है. 10 के नोट की एक गड्डी पर 90 रुपये और 100 के नोट की गड्डी पर 200 रुपये ज्यादा देने पड़ते हैं. अब डिमांड सिर्फ 10 के नोट की माला बनाने के लिए आती है. 100 और 50 के नोट में माला बनवाने कोई नहीं आता.
जाहिर है नोटबंदी की वजह से लोग शादी के बजट में कटौती कर रहे हैं, लेकिन इस कटौती ने व्यापारियों की जेब जरूर काट ली है. सरकार भले ऑनलाइन बैंकिंग की बात करे, लेकिन इसका प्रचार उतनी मजबूती से नहीं किया गया, जितना जमीनी स्तर पर फ़िलहाल ज़रूरत है.