
त्योहारों का सीजन चल रहा है और खरीदारी न की जाए ऐसा कहीं हो सकता है. खासकर महिलाओं को तो इन मौका खूब इंतजार होता है.
शहर की भीड़भाड़ से अलग गांव और कस्बों में भी महिलाओं को शॉपिंग करना खूब पसंद आता है.
ऐसा ही मेला लगता है सुल्तानपुर पट्टी में जहां पर पुरुषों की नो एंट्री होती है. मीना बाजार उत्तराखंड का एकमात्र ऐसा मेला है, जहां महिलाएं ही दुकानदार होती हैं और खरीदार भी.
1930 में हुई थी इस मेले की शुरुआत
समाजसेवी ईश्वर दास ने सुल्तानपुर पट्टी में विजयदशमी पर्व के बाद इस महिला मेले का आयोजन शुरू किया था. 1930 से शुरू हुई ईश्वर दास की इस पहल को रामलीला कमेटी आज भी पूरा करती आ रही है.
पुरुषों को मेले में जाने की अनुमति नहीं
विजय दशमी के दो दिन बाद लगने वाले इस मेले में पुरुषों का आना वर्जित है. मेले में पुरुषों का हस्तपेक्ष न हो इसके लिए रामलीला आयोजन समिति के अलावा पुलिस कर्मी भी मौजूद रहते हैं.
बदलने लगा है मीना बाजार का रूप
पहले यह मेला सिर्फ महिलाओं के लिए ही था लेकिन अब इस मेले में पुरुषों को भी दुकान लगाने की इजाजत दी जाने लगी है. इसके अलावा छोटे बच्चों को भी महिला दुकानदार मदद के लिए रख सकती हैं. यहां पर आप सुंदर मेहंदी के डिजाइन भी अपनी हथेलियों पर लगवा सकती हैं.
महिलाओं के साथ आए पुरुषों के बैठने की है पूरी व्यवस्था
मेले में महिलाओं के साथ पहुंचे पुरुषों को अलग बैठाने के लिए रामलीला समिति के कार्यालय में व्यवस्था की गई. इसी के साथ माइक से बार-बार केवल महिलाओं के ही मेले में घूमने और पुरुषों को बाहर रहने का अनुरोध किया जाता रहता है.