
सुप्रीम कोर्ट में 7 न्यायधीशों की संवैधानिक बेंच में हिंदुत्व धर्म है या जीवन शैली के अलावा जनप्रतिनिधि कानून की धारा 98 और 99 पर भी बहस हुई. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में करप्ट प्रैक्टिस के मुद्दे पर तमाम सवाल किए. इस दौरान धार्मिक भाषण का चुनाव में इस्तेमाल पर भी कोर्ट में कई सवाल किए गए. मामले में कहा गया क़ि कैंडिडेट की सहमति हो तो ये करप्ट प्रैक्टिस होगी.
जनप्रतिनिधि कानून की धारा 98 और 99 पर तीन कैटेगरी को करप्ट प्रैक्टिस बताया गया-
1. कैंडिडेट के खिलाफ करप्ट प्रैक्टिस हो सकता है.
2. अगर कैंडिडेट का एजेंट धार्मिक भाषण का इस्तेमाल करता है तो वो भी करप्ट प्रैक्टिस होगा.
3. किसी तीसरे व्यक्ति ने कैंडिडेट के कंसेंट से भाषण में इस्तेमाल करप्ट प्रैक्टिस होगा.
कोर्ट को इन तीन पहलुओं पर क़ानून की स्थिति साफ़ करनी है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान bjp कैंडिडेट की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पुराने जजमेंट का हवाला दिया और कहा कि मसले को उस आलोक में देखना होगा. कांग्रेस कैंडिडेट के वकील ने कहा कि संवैधानिक बेंच को हिंदुत्व का मामला जन प्रतिनिधित्व कानून और संविधान के तहत देखना चाहिए. कोर्ट को कोई और फैसला देखने की जरुरत नहीं है. इस मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी.
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट चुनावी लाभ के लिए धर्म का दुरुपयोग करने को भ्रष्ट क्रियाकलाप बताने वाले चुनावी कानून पर साधिकार घोषणा वाले दो दशक पुराने हिन्दुत्व संबंधी अपने फैसले पर फिर से विचार कर रहा है. मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति एसए बोब्दे, न्यायमूर्ति एके गोयल, न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की सात न्यायाधीशों वाली पीठ इस मामले में सुनवाई शुरु की.
तीन चुनावी याचिकाएं हैं लंबित
फरवरी 2014 में शीर्ष अदालत ने यह मामला सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा था. यह मुद्दा महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 1995 के इसके फैसले पर सवाल उठाये गए थे और कहा गया था कि हिन्दुत्व, हिन्दूवाद के नाम पर वोट किसी उम्मीदवार को पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं करता और तब से शीर्ष अदालत में तीन चुनावी याचिकाएं इस विषय पर लंबित हैं.
मनोहर जोशी बनाम एनबी पाटिल मामला
शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 1995 में व्यवस्था दी थी कि 'हिन्दुत्व, हिन्दूवाद उपमहाद्वीप में लोगों की जीवनशैली है और यह मनोवृत्ति है.' यह फैसला मनोहर जोशी बनाम एनबी पाटिल मामले में सुनाया गया, जिसे न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने लिखा था. जिसमें पाया गया कि जोशी का बयान (महाराष्ट्र में पहला हिन्दू राज्य स्थापित होगा) धर्म के आधार पर अपील के लायक नहीं है. यह टिप्पणी जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123 की उपधारा तीन में बताए गए भ्रष्ट क्रियाकलापों के दायरे के संबंध में सवालों से निपटते हुए की गई थी.
30 जनवरी 2014 को इस कानून की धारा 123 की उपधारा तीन की व्याख्या का मुद्दा पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामने आया था, जिसने इसे जांच के लिए सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजा. सात न्यायाधीशों की पीठ बीजेपी नेता अभिराम सिंह द्वारा 1992 में दायर अपील पर गौर करेगी, जिनका बंबई उच्च न्यायालय ने (1991) महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचन निरस्त कर दिया गया था.