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कश्मीर पर पहले से अलग है मोदी सरकार की नीति, ये हुए 5 बदलाव

कश्मीर घाटी में विरोध-प्रदर्शन तेज हुए हैं, तो नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की कोशिशें भी बढ़ी हैं, लेकिन इस बार माहौल कुछ बदला-बदला सा है. मोदी सरकार अपनी लाइन स्पष्ट कर चुकी है. अलगाववादियों से कोई बात नहीं होगी. पत्थरबाजों से सख्ती से निपटा जाएगा और घुसपैठ में मददगार पाकिस्तान सैन्य चौकियों पर सख्ती से प्रहार भी जारी रहेगा.

नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 25 मई 2017,
  • अपडेटेड 11:51 AM IST

कश्मीर घाटी में विरोध-प्रदर्शन तेज हुए हैं, तो नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की कोशिशें भी बढ़ी हैं, लेकिन इस बार माहौल कुछ बदला-बदला सा है. मोदी सरकार अपनी लाइन स्पष्ट कर चुकी है. अलगाववादियों से कोई बात नहीं होगी. पत्थरबाजों से सख्ती से निपटा जाएगा और घुसपैठ में मददगार पाकिस्तान सैन्य चौकियों पर सख्ती से प्रहार भी जारी रहेगा. इस बीच, कश्मीर में सियासी बयानबाजी के बीच बुधवार को रक्षामंत्री ने साफ ऐलान किया कि युद्ध जैसे क्षेत्र में सेना को फैसले लेने की पूरी छूट है. इससे साफ दिखता है कि कश्मीर पर मोदी सरकार की नीति पहले की सरकारों से साफ अलग है.

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आखिर क्या अंतर आया है?

1. बॉर्डर पर सेना को खुली छूट
दिल्ली में मंगलवार को इंडियन आर्मी ने ऐलान किया कि नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ में मददगार पाकिस्तान की सैन्य चौकियों पर नौगाम और नौशेरा में कार्रवाई की गई है. इसी के साथ ये ऐलान भी किया गया कि आगे भी घुसपैठ रोकने के लिए पाकिस्तानी मदद को ध्वस्त किया जाता रहेगा. पहली बार सेना ने कार्रवाई का वीडियो जारी किया. ये भारत की सैन्य कूटनीति का बदलता हुआ स्वरूप है. पहले एलओसी पर कार्रवाई को लेकर कोई ऐलान नहीं किया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. पिछले साल सर्जिकल स्ट्राइक का खुला ऐलान और अब पाकिस्तानी बंकरों को ध्वस्त करने का वीडियो जारी कर भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की परोक्ष युद्ध वाली नीति अब नहीं चलने वाली.

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2. पत्थरबाजों से निपटने में सेना को एक्शन की आजादी
घाटी में पाकिस्तान की शह पर पत्थरबाजी के खिलाफ एक्शन लिया जा रहा है. पाकिस्तान से पत्थरबाजों को मिल रहे पैसे को रोकने के लिए तमाम एजेंसियां एक्शन ले रही हैं. पत्थरबाज को जीप के बोनट पर बांधने वाले मेजर गोगोई को सम्मान देने जैसे कदमों से घाटी में सख्त संदेश जाएगा. कश्मीर में सक्रिय आतंकी तत्वों को घेरने के लिए 15 साल बाद सेना ने फिर 'कासो' अभियान शुरू किया है. शोपियां, त्राल समेत आतंकवादियों की सक्रियता वाले इलाकों में घेरकर बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाकर और कुलगाम के जंगलों में आतंकी ठिकानों को नष्ट कर सेना ने साफ कर दिया है कि अब आतंकवाद को ठिकाना मिलने नहीं दिया जाएगा. सेना को इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से खुली छूट मिली हुई है.

3. अलगाववादियों पर एक्शन
पाकिस्तान की फंडिंग से घाटी में पत्थरबाजी कराने की अलगाववादियों की रणनीति का इंडिया टुडे/आजतक पर खुलासा होने के बाद कई अलगाववादी नेता एनआईए की जांच के दायरे में आ गए हैं. एनआईए अलगाववादी नेताओें से पूछताछ कर रही है और केंद्र ने कड़े कदम उठाने का ऐलान किया है.

4. देशविरोधी तत्वों से बात नहीं कर स्पष्ट संदेश
इसके साथ ही सरकार ने साफ कर दिया है कि देश के खिलाफ काम कर रहे किसी भी संगठन से बातचीत नहीं की जाएगी. कश्मीर के अलगाववादी संगठनों के लिए ये साफ संदेश है. इससे पहले पाकिस्तानी उच्चायुक्त के डिनर में अलगाववादी नेताओं को न्योता देने के मामले पर भी मोदी सरकार ने साफ विरोध कर पाकिस्तान को कश्मीर मामले में हस्तक्षेप से दूर रहने का संदेश दे दिया था.

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5. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुखर भारत
कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण की पाकिस्तान की कोशिशों को भारत जहां विफल करता आ रहा है, वहीं आतकंवाद फैलाने की उसकी साजिशों को बेनकाब करने की रणनीति को लेकर भी हाल के दिनों में भारत मुखर हुआ है. यही कारण है कि हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब दौरे के दौरान नवाज शरीफ की मौजूदगी में भारत को आतंकवाद से पीड़ित देश बताया और पाकिस्तान जैसे आतंकवाद के मददगार देशों को सीधी चेतावनी दी. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर पिछले साल खुला हमला बोला. अमेरिकी सीनेट ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बार माना है कि पाकिस्तान की ओर से आतंकी तत्वों को मिल रहे मदद के कारण भारत अब सबक सिखाने की कार्रवाई करने की तैयारी में है.

मनमोहन सरकार की नीति से क्या अलग?
मोदी सरकार की कश्मीर नीति के विरोध में कांग्रेस ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में एक वर्किंग ग्रुप बनाया है. कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार के तीन साल में कश्मीर में शांति के लिए मनमोहन सरकार के प्रयास भी बेकार हो गए. कांग्रेस का कहना है कि मनमोहन सिंह की सरकार ने कश्मीर में समाज के विभिन्न तबकों से बातचीत कर हालात सुधारने की कोशिश की थी, लेकिन मोदी सरकार लोगों से कट गई है.

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अटल से अलग कैसे नीति?
हाल में जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती दिल्ली आकर पीएम मोदी से मिली थीं. महबूबा मुफ्ती ने अटल नीति के अनुसार कश्मीर मामले के हल का अनुरोध किया था. पीएम मोदी ने साफ कर दिया था कि घाटी में माहौल ठीक होने तक बातचीत संभव नहीं. प्रदानमंत्री रहते अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर मुद्दे के हल के लिए जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत का नारा दिया था.

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