
भारत में मोदी सरकार के आने के बाद से पिछले 4 साल में पाकिस्तान के प्रति भारत की विदेश नीति में काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. अब मामला जैसे को तैसा वाला है यानी पाकिस्तान अगर आतंक का रास्ता नहीं छोड़ता है तो उससे किसी प्रकार की वार्ता नहीं होगी.
भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अब शांति के नाम पर 'कबूतर उड़ाने' वाली नीति कतई नहीं अपनाई जाएगी. आइए जानते हैं मोदी सरकार के वो पांच कदम जिनसे पाकिस्तान देश-दुनिया में अलग-थलग पड़ गया और उसे आतंकी देश का तमगा मिल गया. अब इमरान सरकार की मजबूरी है कि वह आतंक का रास्ता छोड़े और वार्ता के लिए तैयार हो.
पाकिस्तान के खिलाफ ट्रंप प्रशासन
अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने बुधवार को अहम आतंक रोधी कदमों के लिए भारत की तारीफ की और कहा कि पाकिस्तानी दहशतगर्द समूह भारत में अपने हमले जारी रखे हुए हैं.
अमेरिकी विदेश विभाग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘कंट्री रिपोर्ट ऑन टेररिज्म’ बुधवार को जारी की. इसमें कहा गया है कि भारतीय नेतृत्व ने घरेलू स्तर पर आतंकी हमलों को रोकने और अमेरिका व समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर आतंक के आकाओं को इंसाफ के कठघरे में लाने का संकल्प जताया है.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘भारत लगातार हमले झेलता रहा, पाकिस्तानी आतंकी संगठनों की ओर से और आदिवासी और माओवादियों की तरफ से भी. भारतीय अधिकारियों ने पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से होने वाले हमलों का जिम्मेदार ठहराया.’
इस रिपोर्ट को भारत की मोदी सरकार को बड़ी जीत मान सकते हैं क्योंकि इससे दुनिया में पाकिस्तान के खिलाफ साफ संदेश देने की कोशिश की गई है. अमेरिकी की ओर से ऐसी रिपोर्ट पहले कभी जारी नहीं हुई जिसमें पाकिस्तान को सीधा आतंक का जिम्मेदार माना गया. इस रिपोर्ट के बाद पाकिस्तान को मिलने वाले अमेरिकी मदद पर जरूर असर पड़ेगा और पाकिस्तान आतंकवाद के वित्त पोषण वाली नीति पर गंभीरता से सोचेगा.
हिज्बुल पर अमेरिकी प्रतिबंध
भारत की कोशिशों के बाद अमेरिका ने हिज्बुल मुजाहिदीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित किया. इसके पीछे पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई में चल रही भारत सरकार की मुकम्मल तैयारी थी. भारत सरकार की सलाह पर हिज्बुल की अमेरिका में सारी संपत्ति सील कर दी गई. साथ ही इस समूह के साथ किसी भी तरह की लेनदेन पर भी रोक लगा दी गई. यह भारत के लिए बड़ी जीत थी क्योंकि कश्मीर में दहशतगर्दी के लिए यह संगठन सबसे ज्यादा जिम्मेदार है.
आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने की भारत की कोशिशों के लिए इसे बड़ी कामयाबी माना गया. कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने में जुटे पाकिस्तान के लिए अमेरिका का यह फैसला किसी बड़े झटके से कम नहीं था. इस फैसले के बाद अमेरिका के अधिकार क्षेत्र में आने वाली हिज्बुल की संपत्तियों और उनसे जुड़े उसके कामकाज पर रोक लग गई. इसके साथ ही अमेरिका का कोई भी व्यक्ति इस समूह के साथ किसी तरह का लेनदेन नहीं कर सकेगा.
मोदी सरकार के इस कदम के बाद कश्मीर के बारे में अक्सर खुलेआम जहर उगलने वाला मसूद अजहर अब धीरे-धीरे गुमनामी में खोता जा रहा है. उसकी एक-एक हरकतों पर अमेरिका और भारत की खुफिया एजेंसियों की नजरें हैं. भारत सरकार के इस कदम से दुनिया में पाकिस्तान की कलई खुली कि कैसे वह मसूद अजहर जैसे दहशतगर्दों को पालता-पोसता रहा है.
यूएन में 'टेररिस्तान'
मोदी सरकार की अगुआई में पिछले साल 22 सितंबर को ऐसा पहली बार हुआ जब संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में पाकिस्तान को सरेआम 'टेररिस्तान' की संज्ञा दी गई. इतने तल्ख शब्दों में यूएन में पहले कभी पाकिस्तान को लताड़ नहीं पड़ी.
दरअसल, पिछले साल सितंबर में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी के झूठ पर भारत ने पलटवार किया. भारत ने कहा कि पाकिस्तान आतंकियों का गढ़ है और दुनिया को मानवाधिकार पर पाकिस्तान के ज्ञान की जरूरत नहीं है. पाकिस्तान अपनी ही जमीन पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करता रहा है. भारत ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए जम्मू कश्मीर हमारा अभिन्न हिस्सा है.
यूएन में भारत की प्रथम सचिव ईनम गंभीर ने पाकिस्तान को 'टेररिस्तान' करार देते हुए कहा कि वह लगातार आतंकियों को पनाह देता रहा है. यह देश आज पूरी तरह आतंक को पैदा कर रहा है. यह असाधारण है कि एक देश जो ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर को पनाह देता है, पीड़ित होने का दिखावा कर रहा है.
सार्क में अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान
याद करिए ठीक दो साल पहले इसी महीने की घटना को. मामला सार्क सम्मेलन का था जो पाकिस्तान में आयोजित होना था. इस्लामाबाद में होने जा रहे सार्क सम्मेलन का भारत ने इस बात पर बहिष्कार कर दिया कि जो देश आतंक का पर्याय बना हो, वहां सम्मेलन का कोई औचित्य नहीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिखर सम्मेलन में शिरकत नहीं करने का फैसला लिया था. भारत के इस मजबूत कदम के पीछे उरी में आतंकी हमले का मुद्दा कारण था. तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर ने 18 सितंबर को हुए उरी हमले पर पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित को दूसरा डिमार्श जारी किया था और आतंकी हमले में ‘सीमा पार के आतंककियों’ का हाथ होने का सबूत दिया था.
उरी में हमले के बाद मोदी सरकार जानती थी कि आर-पार की सीधी लड़ाई मुमकिन नहीं है, इसलिए कुछ तरकीब ऐसी निकालनी थी जिससे पाकिस्तान पूरी दुनिया में बेनकाब हो. भारत ने सार्क के चार अन्य सदस्य देशों के साथ इस बैठक में शरीक नहीं होने का फैसला किया. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सम्मेलन में सार्क नेताओं की भागीदारी को लेकर उनका स्वागत करने की आशा कर रहे थे. सम्मेलन को सफल बनाने के लिए सारी तैयारियां हो गई थीं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति ने पाकिस्तान को सार्क में भी अलग-अलग कर दिया.
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन-जिन देशों का दौरा किया, वहां उन्होंने पाकिस्तान की सच्चाई बताई कि वह आतंकवाद को कैसे बढ़ावा देता है. सार्क देशों के साथ भी ऐसा ही हुआ और कई देश मोदी के समर्थन में आए और इस्लामाबाद सम्मेलन में शरीक नहीं हुए.
गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और भारत
अभी हाल में कांग्रेस नेता और पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान गए थे. मौका था इमरान खान की ताजपोशी का. सिद्धू उधर से संदेश लेकर आए कि पाकिस्तान प्रसिद्ध गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का रास्ता खोलना चाहता है ताकि भारत के सिख श्रद्धालु दर्शन कर सकें. चूंकि मामला विदेश मंत्रालय का था, इसलिए सिद्धू का इसमें पड़ने का कोई तुक नहीं था. हालांकि पाकिस्तान के इस कथित पहल की बात उठी लेकिन ऐन वक्त पर विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह के खुलासे से पाकिस्तान की असलियत सामने आ गई. जनरल वीके सिंह ने कहा कि पाकिस्तान से इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी वीके सिंह की बात दोहराई.
भारत की इस दो टूक बात से पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश गया कि विदेश मामले हमेशा विदेश मंत्रालय के स्तर पर ही सुलझाए जाएंगे न कि किसी नेता के निजी दौरे से. पाकिस्तान में बनी इमरान खान की नई सरकार ने गुरुद्वारा करतापुर साहिब के नाम पर बातचीत की जो अनौपचारिक दौर शुरू करने की कोशिश की, भारत सरकार ने उसपर ब्रेक लगाया और बताया कि भारत की नीति में कोई रद्दोबदल तबतक नहीं होगी जबतक पाकिस्तान दहशतगर्दी का रास्ता न छोड़े.