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रेटिंगः 4 स्टार
डायरेक्टरः जॉन फेवरू
कलाकारः नील सेठी
एक फूल 1990 के दशक में चड्डी पहने के खिला था और एक फूल 2016 में हॉलीवुड के निर्देशन जॉन फेवरू ने चड्डी पहनकर खिलाया है. इन दोनों के बीच का सफर मॉगली , शेर खान, बघीरा, का और बालू से जुड़ी हमारी यादों को जीने का दौर रहा है. आज जब एक बार फिर से हमारे पसंदीदा किरदार परदे पर साकार हुए हैं तो उन्होंने हमें एक बार फिर उम्र और रोमांच की उस दुनिया की चौखट पर लाकर खड़ा कर दिया जहां हम उम्र और समय के दबाव से परे चले जाते हैं. परदे पर उस दुनिया को देखते हैं जो 1990 के दशक में देखी थी लेकिन इस बार टेक्नोलॉजी अलग है और सारे पात्र इस तरह लगते हैं जैसे वे जिंदा हो चुके हैं. थ्रीडी टेक्नोलॉजी हमें उसके और करीब ले जाती है, इस तरह मॉगली और उसके दोस्त तथा दुश्मनों की दुनिया में हम उतरते जाते हैं, और उसकी जिंदगी के लिए जद्दोजहद के साक्षी बनते हैं.
डिज्नी ने एक मॉगली 1967 में बनाया था, और एक इस बार. वह पूरी एनिमेटेड था, लेकिन इस बार नील सेठी अपनी अनोखे अंदाज से नजर आते हैं. कहानी वही है, इनसान का बच्चा जंगल में आ जाता है. उसे भेड़िये अपने बच्चों की तरह पालते हैं और वह भी उन्हीं की दुनिया का होकर रह जाता है. जहां जगंल में उसे प्यार करने वाले हैं तो वहीं उसके दुश्मनों की कमी भी नहीं है. उसका सबसे बड़ा दुश्मन है, शेर खान. वह उसकी खुशबू से ही दीवाना हो जाता है और उसे अपना शिकार बनाना जाता है. लेकिन बघीरा उसका संरक्षक है और बालू उसका दोस्त. इस तरह एक इनसान के बच्चे की जिंदगी और अपने लोगों के बीच जाने की जद्दोजहद की रोमांच भरी कहानी है.
फिल्म में नील सेठी ने मॉगली का किरदार जबरदस्त ढंग से निभाया है. उसे देखकर वाकई मजा आता है और भाव भी उछालें भरते हैं. फिल्म में आने वाला हर जानवर चाहे वह पैंथर बघीरा हो या बलू भालू या फिर हिप्नोटाइज करने में महारती अजगर सभी कमाल करते हैं और अपने दोस्त होने का एहसास देते हैं. कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि इस कहानी को हमने कई बार पढ़ा है, देखा है और सुना है. जॉन फेवरू ने लाइव एक्शन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल इस ढंग से किया है कि विशालकाय किंग लुई और जादुई का और जंगल का हर पहलू हमारे सामने साकार हो जाता है. लगभग पौने दो घंटे की फिल्म में मॉगली की जंग हमारी जंग बन जाती है, और जब फिल्म खत्म हो जाती है तो ऐसा लगता है कि अभी और देखनी थी. खास बात यह कि फिल्म में जिस तरह से छोटे-छोटे डिटेल्स पिरोए गए हैं, वह इस फिल्म को टेक्नोलॉजी के स्तर पर एक नए मुकाम पर ले जाती है.
'द जंगल बुक' बेशक हर उम्र के लोगों के लिए फिल्म है लेकिन जॉन फेवरू ने इसे बनाते समय अपने मुख्य ऑडियंस यानी बच्चों को ध्यान में पूरी तरह से रखा है. फिल्म को कहीं भी खींचा नहीं है. न ही ज्यादा भावनात्मक बनाने की कोशिश की है. उन्होंने मनोरंजन की डोर को कहीं भी छूटने नहीं दिया है. हॉलीवुड ने फिल्म के इंडियन कनेक्शन को ध्यान में रखते हुए इसे अमेरिका से एक हफ्ते पहले यहां रिलीज किया है. इस तरह रूडयार्ड किपलिंग की किताब पर बनी फिल्म 'द जंगल बुक' मस्ट वॉच है और हर उम्र के लोगों के लिए है. एक बात और, अगर इसे नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा.