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Movie Review: शुद्ध देशी औरतों की अनकही कहानी है Parched

बॉलीवुड शायद एक बात भूल चुका है, गांव अभी जिंदा हैं. वहां भी लोग रहते हैं. वहां भी औरते हैं. उनकी भी जिदंगी है और आइटी रेवोल्यूशन के दौर में भी उनकी समस्याएं कुछ वैसी ही हैं जैसी कुछ दशक पहले थीं. ऐसी ही कहानियों को लेकर आई है 'पार्च्ड'. आइए जानते हैं कैसी है फिल्म...

'पार्च्ड' 'पार्च्ड'
नरेंद्र सैनी/पूजा बजाज
  • नई दिल्ली,
  • 23 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

रेटिंगः 4 स्टार
डायरेक्टरः लीना यादव
कलाकारः राधिका आप्टे, सुरवीन चावला, तनिष्ठा चटर्जी और आदिल हुसैन

बॉलीवुड शायद एक बात भूल चुका है, गांव अभी जिंदा हैं. वहां भी लोग रहते हैं. वहां भी औरते हैं. उनकी भी जिदंगी है और आइटी रेवोल्यूशन के दौर में भी उनकी समस्याएं कुछ वैसी ही हैं जैसी कुछ दशक पहले थीं. गांव में मोबाइल आ गया है, डिश की इच्छा घर कर गई है. लेकिन औरतों के लिए कुछ नहीं बदला है. वही समाज है. वही पुरुषवादी नजरिया है. लीना यादव की 'पार्च्ड' हमें उसी दुनिया में लेकर जाती है जिसे आधुनिक सिनेमा ने दि‍खाना बंद कर दिया है. जहां औरतें अपने ढंग से प्रतिकार करती हैं, मस्ती करती हैं और उनमें अपने ढंग से जीवन जीने की हसरत कूट-कूटकर भरी हुई है.
 
ये कहानी रानी (तनिष्ठा), लज्जो (राधिका) और बिजली (सुरवीन) की है. रानी विधवा है, और उसे अपने जवाब बेटे की शादी करनी है. रानी विधवा है और उसका एक बेटा है. जिसकी शादी वह ऐसी लड़की से कर देती है जो उसकी कसौटी पर खूबसूरत नहीं है. लज्जो का पति उसे बांझ मानता है और उसे लगता है कि सिर्फ कमी औरत में ही हो सकती है. उधर, बिजली एक नाचने वाली है और जिस्मफरोशी से जीवन चलाती है. उसके नखरों और ढलती उम्र की वजह से उसका मालिक उसका रिप्लेसमेंट ले आता है. फिल्म में इन्हीं तीन औरतों की कहानी है. इसमें मोबाइल प्रेमी भी है तो औरतों के जीवन को ढर्रे पर लाने का प्रयास करता एक शख्स भी.
 
कहानी में हर वह पहलू है जो एक अच्छे सिनेमा में होना चाहिए. खास यह कि तीनों औरतें परिस्थितियों की शिकार हैं लेकिन जब तीनों साथ होती हैं तो वह मस्ती का कोई पल हाथ से गुजरने नहीं देतीं. यही नहीं, वह बाप-बेटे की गाली भी ईजाद कर लेती हैं. इस तरह की बातें इस फिल्म की खूबरसूरती भी है.
 
एक्टिंग की बात करें तो तीनों ने ही कमाल का समां बांधा है. तीनों के किरदारों की खासियत देसीपन है. खालिस देसी औरतें. लेकिन उनकी सोच आधुनिक है. सुरवीन ने जिस तरह जिंदादिल बिजली का रोल निभाया है वह लंबे समय तक याद रहने वाला है. उन्होंने दिखाया है कि अगर रोल मजबूती से लिखा जाए तो कोई कलाकार बड़ा या छोटा नहीं होता. तनिष्ठा चटर्जी को तो जैसे जानदार रोल करने की आदत ही पड़ चुकी है. राधिका आप्टे भी कमाल की हैं, और उनके देहाती डायलॉग डिलीवरी तो वाकई कमाल है. लेकिन सब पर सुरवीन भारी पड़ी हैं.
 
फिल्म कहीं भी लेक्चर देती नहीं लगती है और प्योर मनोरंजक फिल्म की तरह दौड़ती है. औरतों का आपस का हंसी-ठट्ठा फिल्म के कनेक्शन को और मजबूत करता है. जब हिंदी सिनेमा मजबूत कहानियों के मामले में सूखा झेल रहा है, उस दौर में पार्च्ड उम्मीद की बूंद की तरह है.

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