रेटिंगः 4 स्टार
डायरेक्टरः टॉम मैकार्थी
कलाकारः मार्क रूफैलो, माइकेल कीटन, रेचल मैकएडम्स और लाइव श्राइबर
धर्म और उसकी आड़ में गलत काम करने वालों के खिलाफ आरोप लगाना किसी भी देश में आसान नहीं है, फिर वह चाहे भारत हो या अमेरिका. दाल में कुछ काला हो तो उससे नजरें फेरकर रहना भी तो आसान नहीं. खास तौर पर अगर बात जर्नलिज्म जैसे पेशे से जुड़े लोगों की हो. बस इसी तरह की कहानी को हॉलीवुड की फिल्म 'स्पॉटलाइट' में भी पेश किया गया है. कुछ जर्नलिस्ट हैं और उनका इरादा सिर्फ सच को सामने लाने का है. धर्म और उसके ठेकेदारों का पर्दाफाश करने की बात है, बिल्कुल जिस तरह से पिछले दिनों
आसाराम या और कई बाबाओं के कारनामे सामने आए थे.
अक्सर ऐसे मौके कम आते हैं, जब न्यूजरूम के अंदर का ड्रामा बाहर आ सके और पता चल सके कि एक स्टोरी को किस तरह से तैयार किया जाता है और किस तरह से तथ्यों से गुजरकर उसे पाठकों तक पहुंचाने लायक बनाया जाता है. 'स्पॉटलाइट' ऐसी ही फिल्म है जिसमें रोमन कैथोलिक पादरियों के हाथों बोस्टन में हुए
बच्चों के यौन शोषण मामलों की पड़ताल की गई है.
फिल्म में 2001 की कहानी दिखाई गई है जब द बोस्टन ग्लोब में नए समाचार संपादक मार्टी बैरन को रखा जाता है. यहां उसकी मुलाकात इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग करने वाली टीम 'स्पॉटलाइट' से होती है. इसके बाद 'स्पॉटलाइट' की टीम इन मामलों की पड़ताल करती है. जैसे-जैसे परतें खुलती जाती हैं
चौंकाने वाले तथ्य सामने आने लगते हैं.
नतीजतन, बोस्टन में बच्चों का यौन शोषण करने वाले 80 पादरियों का पर्दाफाश होता है और यह काम इस टीम ने 600 आर्टिकल लिखकर किया. इसके बाद पूरी दुनिया भर में इस तरह के मामले सामने आए. उसके इस बेहतरीन काम की वजह से ही द बोस्टन ग्लोब को 2003 के पब्लिक सर्विस के लिए
पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया था.
फिल्म में मार्क रूफैलो, माइकेल कीटन, रेचल मैकएडम्स और लाइव श्राइबर ने शानदार काम किया है. इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म को लेकर एक बेहतरीन फिल्म है और यह ऑस्कर पुरस्कार में छह श्रेणियों में नॉमिनेट है. पत्रकारों के लिए मस्टवॉच फिल्म है.