
मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड इलाका इक्कीसवीं सदी में भी जातिवाद और छूआछूत के अभिशाप से मुक्त नहीं हुआ है. पिछड़े इलाके में इस कुरीति के खिलाफ वहां एक महिला थानेदार ने शानदार मिसाल कायम की है. वहां दलितों ने एक नवरात्र पंडाल सजाया, लेकिन पूजा के लिए कोई पुजारी वहां नहीं पहुंचा. ऐसे में महिला थानेदार ने खुद पंडित के स्थान पर पूजा कराई.
दमोह जिले के पटेरा ब्लॉक के कोटा गांव में दलित समुदाय के लोगों ने नवरात्रि के दौरान देवी पूजा के लिए पंडाल बनाया. पंडाल में स्थापना के लिए वे देवी की प्रतिमा भी ले आए. लेकिन प्रतिमा स्थापना का वक्त आया तो दलितों के पंडाल में पूजा के लिए कोई पुजारी नहीं पहुंचा.
मौके पर इलाके की थानेदार अंजलि उदेनिया पहुंची तो पहले उन्होंने पुजारी को बुलवाया. रात बहुत होती जा रही थी, पुजारी के आने में देर होने पर अंजलि ने वर्दी में खुद ही कलश स्थापित करने का फैसला किया. अंजलि ने कहा कि वो ब्राह्मण समाज से हैं और खुद उन्हें विधि विधान से पूजा पाठ आता है. अंजलि की इस पहल ने सभी के चेहरों पर खुशी ला दी.
महिला थानेदार को पूजा करते देख एक पंडित आगे आए. लेकिन तब तक अंजलि पूजा के लिए बैठ चुकी थीं. अंजलि के मुताबिक उन्होंने बीच में पूजा छोड़ना सही नहीं समझा और पंडित के निर्देशानुसार प्रतिमा की स्थापना की.
इस घटना की खबर फैली तो इलाके में जो पूजा पाठ कराते हैं वो सफाई देने लगे कि अन्य जगहों पर पूजन में व्यस्त होने की वजह से वे यहां नहीं पहुंच सके. साथ ही उन्होंने छूआछूत जैसी किसी बात से भी इनकार किया.
वहीं गांव के ही रहने वाले कृपाल ने कहा कि वे देवी की प्रतिमा की स्थापना के लिए पुजारी को बुलाने गए थे लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि हम स्थापना नहीं करेंगे.
महिला थानेदार में सामाजिक समरसता का अनूठा उदाहरण पेश किया. हालांकि उन्होंने इस घटना पर समय की कमी का तर्क देकर जातिगत भेदभाव जैसी किसी बात पर पर्दा डालने का भी प्रयास किया. जो भी हो अंजलि उदेनिया ने पुलिस की ड्यूटी निभाने के साथ सामाजिक कुरीति को तोड़ने के लिए जो किया, उसकी जितनी भी तारीफ की जाए, कम है.