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मुरली मनोहर जोशी ने ठीक ही कहा, आज अटल बोलते भी तो क्या बोलते?

जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन किसानों की मौत पर बुला लिया था संसद का विशेष सत्र.

अटल बिहारी वाजपेयी अटल बिहारी वाजपेयी
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 13 जून 2018,
  • अपडेटेड 5:08 PM IST

किसानों की मौत आज आम बात है. कहीं आत्महत्या तो कहीं सदमें से किसान मर रहे हैं. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति ने पिछले महीने की 31 तारीख को राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा और उनसे मांग की कि किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए विशेष सत्र बुलाना चाहिए.

जैसा की आज के राजनीतिक माहौल में होना था, वही हुआ. इस मुद्दे पर आगे कोई चर्चा नहीं हुई.   

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किसान संघर्ष समिति के बैनर तले जो लोग राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे थे उनमें महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता और विधायक विधायक राजू सेठी भी शामिल थे. उन्होंने बताया महामहिम से हमने किसानों की समस्याएं सुनने के लिए एक विशेष सत्र बुलाना चाहिए.

उन्होंने कहा हमने तर्क रखा कि जब जीएसटी को लेकर आधी रात को विशेष सत्र बुलाया जा सकता है तो फिर किसानों के लिए क्यों नहीं बुलाया जा सकता?

लेकिन महामहिम को सौंपे गए ज्ञापन में एक बात और लिखी थी जिसका जिक्र इस समय ज्यादा जरूरी है. वह यह कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 11 दिसंबर 2003 को बस्ती जिले के मण्डरवा गांव में हुई मौत के बाद कृषि और किसानों के संकट पर चर्चा करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया था.

दरअसल जब कल जब मुरली मनोहर जोशी फिलहाल अस्वस्थ चल रहे अटल बिहारी वाजपेयी को देखकर लौटे तो उन्होंने एक बात कही, '' शायद प्रकृति ने उन्हें इसलिए चुप करा दिया है क्योंकि आज की राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए वह क्या कहते? अटल जी का अपनी बात कहने का अलग अन्दाज था. वो बड़ी से बड़ी बात को बड़े सहज रूप से कहने की क्षमता रखते थे.''

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उन्होंने यह बात पत्रकारों के अटल जी की सेहत के बारे में पूछे जाने पर कही. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि अटल जी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम हो गई है.

इसलिए उनसे किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा है. अस्पताल के कमरे के दरवाजे में लगी खिड़की के जरिए उन्हें देखा जा सकता है.

मुरली मनोहर जोशी का दुख जायज है, क्योंकि जब राहुल गांधी 6 जून को मंदसौर गोलीकांड में मारे गए किसानों को श्रृद्धांजलि देने पहुंचे तो इसे एक सियासी तबके ने राजनीति करार दिया.

और याद किया गया कि किस तरह 1998 में कांग्रेस के दिग्गज नेता और उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सोयाबीन किसानों पर गोलियां चलवाईं थीं.

दिग्विजय राज हो या शिव 'राज' किसानों के हिस्से हक नहीं गोलियां ही आती हैं. मुरली मनोहर जोशी की यह टिप्पणी एक सवाल जरूर पैदा करती है, क्या बेहद वाकपटु और गंभीर से गंभीर बात को सहजता से कहने में सक्षम अटल बिहारी वाजपेयी अगर आज सेहतमंद होते तो क्या कुछ कह पाने में सक्षम होते?

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