
मैसूर में दशहरे के पर्व की शुरुआत से ठीक पहले हर ओर परंपरागत डॉल्स दिखने लगी हैं. हाल ही में रामसंस कला प्रतिष्ठान ने 'बांबे माने' नाम से डाॅल्स प्रदर्शनी आरंभ कर दी है.
इसमें 3 हजार से ज्यादा डाॅल्स को रखा गया है. प्रदर्शनी में पहली बार अलग-अलग प्रजाति की गाय जैसे देओनी, अमृत महल, कांग्यम आदि दिखेंगी. इसके लिए जो डॉल्स बनाई जाती हैं उन्हें कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के कलाकार बनाते हैं.
सालाना त्योहार की तैयारी
यह सारी तैयारी वहां मनाए जाने वाले सालाना डॉल त्योहार के लिए हो रही है. यह त्योहार हर साल नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है. जिसमें लोग किसी न किसी थीम पर अपने घर में डॉल्स सजाते हैं.
क्यों है खास
यूं तो देश भर में दशहरा मनाया जाता है लेकिन मैसूर का दशहरा दुनिया भर में मशहूर है. इसका एक कारण है यहां हर साल इस मौके पर खूब सारी डॉल्स बनाई जाती हैं. इन्हें बांबे हब्बा या गोलू या कोलू (कन्नड़) या बोम्माला कोलुवु (तेलुगु) या बोम्मई कोलु (तमिल) कहा जाता है. इस त्योहार को नवरात्रों में 10 दिन तक मनाया जाता है.
कैसे मनाया जाता है त्योहार
इस दौरान हर घर में डॉल्स की प्रदर्शनी लगाई जाती है. इन डॉल्स को 7, 9 या 11 के ऑड नंबर में लगाया जाता है. इन्हें सफेद कपड़े से ढककर रखा जाता है. नवरात्र के दौरान इन गुडि़यों की पूजा की जाती है.