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इंसानी लालच से हार रही कुदरत, सूखती जा रही है नैनी झील

नैनी झील और नैनीताल शहर को अगर बचाया जाना है तो कठोर कदम उठाना निहायत जरूरी है. इनमें मानसून खत्म होते ही पानी की राशनिंग करना भी एक उपाय है. ऐसा पहले से ही किया जाता तो नैनी झील का जलस्तर इतना नहीं गिरता.

नैनी झील नैनी झील
खुशदीप सहगल
  • नैनीताल,
  • 29 मई 2017,
  • अपडेटेड 10:37 PM IST

नैनीताल की नैनी झील का आकर्षण ही ऐसा है कि सैलानी खुद-ब-खुद यहां खिंचे चले आते हैं. जो यहां एक बार आता है वो बार-बार आना चाहता है. अब ये बात दूसरी है कि नैनी झील खुद वजूद की लड़ाई लड़ रही है. नैनी झील सूखने के कगार पर पहुंच गई है. गर्मियों में नैनीताल शहर में पानी की सप्लाई का एकमात्र स्रोत मानी जाने वाली नैनी झील का जलस्तर सामान्य से 18 फीट नीचे गिर गया है. ये नैनी झील और नैनीताल दोनों के लिए खतरे की घंटी है. नैनी झील की ऐसी हालत से विशेषज्ञों की चिंता बढ़ गई है. भू-वैज्ञानिक इस झील की उम्र सिर्फ 25 वर्ष आंक रहे हैं. इसके बावजूद इंसान का लालच कम होने का नाम नहीं ले रहा.

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पर्यावरणविद नैनी झील की दुर्दशा के लिए इसके आसपास अंधाधुंध निर्माण, पेड़ों के गिरने, जल क्षेत्र को कंक्रीट से पाटने और आबोहवा में बदलाव को जिम्मेदार ठहराते हैं. झील के तीन और स्थित पहाड़ियों के हरे-भरे जंगल पिछली आधी शताब्दी में सीमेंट की इमारतों में तब्दील हो गए हैं. नैनी झील के सूखने की सबसे बड़ी वजह इसकी सहायक झील 'सूखा ताल' का मकानों से ढक जाना है. नैनी झील को साल भर में 40% पानी सूखा ताल से ही मिलता था. लेकिन सूखताल के महत्व को नजरअंदाज किए जाने से ये वाकई अपने नाम के अनुरूप ही नैनी झील के लिए सूख गया है.

सूखाताल एक वेटलैंड है. जिसकी खासियत बारिश के दिनों में भर जाने और बाकी दिनों में दलदलीय रहने की है. यहां से रिस-रिस कर पानी नैनी झील में पहुंचता था. लेकिन अब सूखाताल मकानों से ढके होने के साथ ही सरकारी विभागों का डंपयार्ड अधिक नजर आता है.

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उन्नीसवीं शताब्दी में नैनी झील के जलागम क्षेत्र में 321 जल स्रोतों के मिलने के सबूत बताए जाते हैं. यहां से पानी नैनी झील में पहुंचता था. लेकिन कंक्रीट के जंगल हर तरफ उग आने से ज्यादातर जल स्रोत सूख गए हैं. माना जाता है कि अब 10 फीसदी जल स्रोत भी नहीं बचे हैं. अंग्रेजों के विकसित नाले झील में पानी की जगह अब मलबा लाने का काम करते हैं.

नैनी झील का जलस्तर नीचे गिरने की एक वजह बीते दो साल से सर्दियों के मौसम में होने वाली बारिश का ना होना भी है. जलस्तर लगातार गिरने से झील में टीले बन गए हैं. लोक निर्माण विभाग (PWD) झील से गाद (सिल्ट) निकलवाने का काम कर रहा है. लेकिन जिस तरह झील को रीचार्ज करने वाले प्राकृतिक स्रोत सूखते जा रहे हैं, अगर उनके संरक्षण के लिए कोई पहल नहीं होती तो नैनी झील के हालात नहीं सुधारे जा सकते. साथ ही जिस तरह नैनीताल की आबादी हर दिन बढ़ रही है, टूरिस्ट का दबाव है, उस स्थिति में पूरे शहर के लिए पानी का अकेला स्रोत नैनी झील और कितने साल तक वजूद बनाए रख सकता है.

नैनी झील और नैनीताल शहर को अगर बचाया जाना है तो कठोर कदम उठाना निहायत जरूरी है. इनमें मानसून खत्म होते ही पानी की राशनिंग करना भी एक उपाय है. ऐसा पहले से ही किया जाता तो नैनी झील का जलस्तर इतना नहीं गिरता.

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नैनी झील की खूबसरती नैनीताल को दूसरे हिल स्टेशन्स से अलग बनाती है. नैनी झील आज खुद खतरे में है तो नैनीताल के वजूद पर भी सवालिया निशान लगना तय है.

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