
साइरस मिस्त्री को हटाए जाने के बाद टाटा संस के नए चेयरमैन की जारी खोज में कई नाम सामने आए हैं. इनमें पेप्सी की सीईओ इंद्रा नूयी, वोडाफोन ग्रुप के पूर्व प्रमुख अरुण सरीन और टाटा रिटेल यूनिट ट्रेंट के चेयरमैन नोएल टाटा के नाम शामिल हैं. कुछ और भी ऐसे कैंडिडेट हैं जो टाटा संस के चेयरमैन की रेस में हैं. इनमें टीसीएस के सीईओ नटराजन चंद्रशेखरन, उनसे पहले टीसीएस प्रमुख रहे एस रामादुरई और जगुआर लैंड रोवर के प्रमुख रॉफ स्पेट शामिल हैं.
रतन टाटा की अगुवाई में पांच सदस्यों का पैनल टाटा संस के नए चेयरमैन की तलाश में जुटा है. लेकिन जितने में भी संभावित उम्मीदवारों के नाम सामने आए हैं, उनमें चंद्रशेखर का पलड़ा सबसे भारी दिखाई देता है. 53 साल के चंद्रशेखरन बिजनेस जगत में चंद्रा के नाम से मशहूर हैं. चंद्रशेखरन ग्रुप की सबसे मूल्यवान कंपनी की अगुवाई कर रहे हैं. टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों के प्रमुखों में रॉफ स्पेट ही एकमात्र ऐसे उम्मीदवार हैं जो चंद्रशेखरन को इस रेस में टक्कर दे सकते हैं. टीसीएस और जगुआर लैंड रोवर दोनों ही कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं और ग्रुप में इनका प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा है.
हालांकि अभी चंद्रशेखरन के नाम का ऐलान नए चेयरमैन के तौर पर नहीं किया गया है लेकिन चंद्रशेखरन की तुलना मिस्त्री से किया जाना जरूरी है जिन्हें पिछले दिनों टाटा संस के चेयरमैन पद से एकाएक हटा दिया गया था. आइए, देखते हैं किस तरह मिस्त्री की तुलना में चंद्रशेखरन टाटा संस के बेहतर चेयरमैन साबित हो सकते हैं.
चंद्रशेखरन 2009 से टीसीएस के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. इससे पहले वो टीसीएस के सीओओ और एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहे हैं. 2009 में जब आईटी इंडस्ट्री संकट के दौर से गुजर रही थी, उस वक्त चंद्रशेखरन ने अपने कुशल नेतृत्व के बूते कंपनी को न सिर्फ वैश्विक आर्थिक मंदी से बचाया बल्कि कंपनी ने ग्रोथ टारगेट पूरा किया और बुलंदियों तक पहुंची.
इस तरह कठिनाइयों से जूझने के स्किल में चंद्रशेखरन मिस्त्री पर भारी पड़ते दिखाई देते हैं. मिस्त्री के 4 साल के कार्यकाल में इंडस्ट्री पर इस तरह का कोई संकट नहीं आया. मिस्त्री ने अपना पूरा फोकस सिर्फ कमाई वाली कंपनियों पर रखा और ग्रुप के भीतर तालमेल बिठाकर चलने में कामयाब नहीं हो सके.
2. विजन:
साइरस मिस्त्री में 'विजन की कमी' है. इस वजह से मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाया भी गया. चंद्रशेखरन की इमेज एक 'विजनरी' सीईओ के तौर पर रही है. चंद्रशेखरन के काम करने के तरीके से साफ है कि वो ग्रुप के नैतिक मूल्यों का खयाल रखते हुए काम करते हैं. लेकिन मिस्त्री इस कसौटी पर खरे नहीं उतरे.
3. अनुभव:
साइरस मिस्त्री की उम्र 48 साल है. जबकि चंद्रशेखरन 53 साल के हैं. ऐसे में अनुभव के लिहाज से भी चंद्रशेखरन मिस्त्री से बेहतर उम्मीदवार हो सकते हैं. चार साल पहले टाटा संस के चेयरमैन बने मिस्त्री ग्रुप के सबसे युवा चेयरमैन थे वहीं, चंद्रशेखरन टाटा ग्रुप के सबसे युवा सीईओ में से एक हैं. साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप में जो कुछ भी मिला उसमें उनकी विरासत का भी बड़ा योगदान है. लेकिन चंद्रशेखरन ग्रुप में अपने काम के बूते आगे बढ़े और अपनी पहचाई बनाई.
हालांकि मिस्त्री और चंद्रशेखरन दोनों का ही जुड़ाव टाटा ग्रुप से रहा है लेकिन चंद्रशेखरन का ट्रैक रिकॉर्ड मिस्त्री की तुलना में बेहतर रहा है. 2012 में टाटा संस का चेयरमैन बनाए जाने से पहले मिस्त्री 2006 में टाटा ग्रुप से पहले बार जुड़े. मिस्त्री ने टाटा एल्क्सी और टाटा पावर के साथ काम किया लेकिन इनके नेतृत्व में इन कंपनियों ने कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं किया. वहीं, 1987 में टीसीएस से जुड़े चंद्रशेखरन अपने काम के बूते आज इन बुलंदियों तक पहुंचे हैं.
दिलचस्प यह भी है कि मिस्त्री भले ही ग्रुप के चेयरमैन थे लेकिन चंद्रशेखरन की तनख्वाह उनसे कहीं ज्यादा थी.
5. स्वीकार्यता:
मिस्त्री का जन्म वैसे तो मुंबई के पारसी परिवार में हुआ है लेकिन उनकी नागरिकता आयरलैंड की है. साइरस मिस्त्री के पैरेंट्स की जड़ें भी भारत में हैं लेकिन इनकी नागरिकता आयरलैंड की है. हालांकि मिस्त्री भारत के स्थायी नागरिक की श्रेणी में आते हैं. इनकी पढ़ाई लिखाई भी बाहर के देशों में हुई है.
वहीं, भारतीय मूल के चंद्रशेखरन का जन्म तमिलनाडु में हुआ और इनकी पढ़ाई लिखाई भी भारत में हुई. करीब 30 सालों से टाटा ग्रुप से जुड़े रहे चंद्रशेखरन की टाटा ग्रुप में स्वीकार्यकता मिस्त्री की तुलना में बेहतर है. कहा जा रहा है कि साइरस मिस्त्री को ग्रुप में 'बाहरी' के तौर पर भी देखा जाता था. इसके अलावा चंद्रशेखरन ने ग्रुप के लोगों का भरोसा जिस स्तर तक जीता है, मिस्त्री इस तरह का भरोसा नहीं जीत पाए थे.