
वीआईपी कल्चर को ऊर्जा लाल बत्ती से ज्यादा रसूखदार लोगों की इन-बिल्ट हेकड़ी से मिलती है. मोदी सरकार अपनी ओर से रौब की पहचान मानी जाने वाली लाल बत्ती हटाने के आदेश दे चुकी है. अप्रैल में दिए गए इस आदेश को बराबरी के लिए उठाया गया कदम मानते हुए पूरे देश ने स्वागत किया.
हालात में क्या बदलाव हुआ, ये जानने के लिए इंडिया टुडे ने रियलिटी चेक कराया तो सामने आया कि सत्ताधारी विशिष्ट वर्ग का रौब झाड़ने वाला रवैया अब भी जस का तस है. उनकी अपनी कारों पर बेशक अब लाल बत्ती नहीं चमक रही है लेकिन उनके आगे-पीछे चलने वाली पुलिस एस्कॉर्ट्स के सायरन (हूटर) का शोर ये जताने के लिए जारी है कि वीआईपी का काफिला सड़क से गुजर रहा है.
जांच से सामने आया कि भारी सुरक्षा तामझाम से लैस निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के काफिले को पहले निकल जाने के लिए बाकी ट्रैफिक को अब भी रोक दिया जाता है. ऐसी सूरत में लाल बत्ती पर बहुप्रचारित बैन आंखों का छलावा बन कर रह गया है. बड़ी संख्या में वीआईपी ने, जिनमें कुछ केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं, ने अपने पद का रौब झाड़ने के लिए नए तरीके निकाल लिए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में केंद्रीय राज्य मंत्री पुरुषोत्तम खोडाभाई रुपाला के मोटर काफिले को गुजरते जब देखा गया तो ये खुद ही अपने विशिष्ट दर्जे की गवाही देता दिखा. नर्मदा के दौरे पर पहुंचे मंत्री की कार की छत पर लाल बत्ती नहीं लगी थी लेकिन इसके बावजूद साफ एहसास हो रहा था कि किसी खास-म-खास की सवारी निकल रही है.
वडोदरा में भी ऐसा ही नजारा दिखा जब एक और केंद्रीय राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे. जब मंडाविया से लाल बत्ती के बिना भी 'लाल बत्ती संस्कृति' के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने प्रधानमंत्री की पहल को बड़ा कदम बताया. लगे हाथ उन्होंने अपने साथ चलने वाले तामझाम को जरूरी सुरक्षा बंदोबस्त का हिस्सा बता दिया.
मंडाविया ने कहा, 'मैं भी किसी सामान्य नागरिक की तरह ही चलना चाहता हूं, लेकिन सुरक्षा का सेट-अप अलग है. सरकार जो मुझे सुरक्षा का ब्यौरा देती है उसी के हिसाब से मुझे चलना होता है. इससे ज्यादा और कुछ साथ नहीं होता.'
इंडिया टुडे की जांच टीम ने उत्तर प्रदेश के चंदौली का रुख किया तो वहां राज्य मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह की कार के साथ सायरन की तेज आवाज के साथ पुलिस की जीपें चलती दिखीं. राजेंद्र प्रताप सिंह से जब बात की गई तो भी उनके पीछे एक गार्ड धूप से बचाने के लिए छाया देता खड़ा था.
राजेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, 'मेरी कार पर कोई सायरन या लाल बत्ती नहीं है. लेकिन सिस्टम अपनी जगह है. लोग धूप में खड़े हैं. मेरी ड्यूटी है कि मैं रूक कर उनसे बात करूं. ये सभी सिस्टम का हिस्सा है. इसे दूसरे नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए.'
इलाहाबाद में एक हालिया संगम कार्यक्रम में भी वीआईपी कल्चर अपने पूरे निखार पर दिखा. योगी आदित्यनाथ के मोटर काफिले के साथ कई विधायकों और अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की कारों पर लाल बत्ती की जगह सायरन लगे दिखाई दिए.
मध्य प्रदेश में भी इंडिया टुडे के रियलिटी चेक के दौरान सत्ता और रूतबे का ऐसा ही नजारा देखने को मिला. मध्य प्रदेश के मंत्री गौरी शंकर बिसेन ने कहा, 'सायरन पर कोई बैन नहीं है. अगर सायरन नहीं होंगे तो भीड़ से निकला कैसे जाएगा.'
देवभूमि उत्तराखंड में भी कारों पर सायरन अपवाद की तरह नहीं बल्कि सामान्य प्रचलन की तरह दिखाई दिए. देहरादून में कई जगहों पर ऐसी कारों को देखा गया.
इंडिया टुडे की जांच में पश्चिम बंगाल में लाल बत्ती पर बैन संबंधी केंद्र सरकार के आदेश का खुल्ला उल्लंघन होते दिखा. राज्य में कई रसूखदार लोग लाल बत्ती को अपना विशेषाधिकार मानते हुए इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं लगते.
राज्य मंत्री शांति राम महतो ने अपनी वीआईपी कार से उतरते हुए कहा, 'लाल बत्ती का इस्तेमाल कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. जब तक हमें राज्य सरकार से आदेश नहीं मिलता, हम इसे नहीं हटाएंगे.'