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नीतीश के बदल रहे तेवर, क्या छोड़ेंगे मोदी का साथ? 7 मुद्दों पर JDU-BJP में आर-पार

NDA में अपने सहयोगियों को साधने में जुटी बीजेपी के लिए जेडीयू के ऐसे बयान चिंता बढ़ा सकते हैं. सिर्फ सीट ही नहीं बल्कि कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर बीते दिनों जेडीयू और बीजेपी खुलकर आमने-सामने आए हैं...

नीतीश फिर छोड़ेंगे मोदी का साथ? नीतीश फिर छोड़ेंगे मोदी का साथ?
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2018,
  • अपडेटेड 2:31 PM IST

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों ने अपने दांव चलने शुरू कर दिए हैं. एक ओर विपक्ष महागठबंधन को लेकर आगे बढ़ रहा है तो वहीं अब एनडीए में भी सीटों को लेकर खींचतान शुरू हो गई है. सीटों को लेकर सबसे ज्यादा बयानबाजी बिहार में जेडीयू की तरफ से जारी है. पिछले कुछ दिनों में JDU ने अपनी आंखे तरेरी हैं, जिसके बाद बीजेपी बैकफुट पर है. जेडीयू की तरफ से पहले ही ऐलान कर दिया गया है कि वह कम से कम 25 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और राज्य में बड़ी पार्टी वही होगी.

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NDA में अपने सहयोगियों को साधने में जुटी बीजेपी के लिए जेडीयू के ऐसे बयान चिंता बढ़ा सकते हैं. सिर्फ सीट ही नहीं बल्कि कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर बीते दिनों जेडीयू और बीजेपी खुलकर आमने-सामने आए हैं...

1. नोटबंदी

विरोध में रहने के बावजूद भी नीतीश कुमार ने 2016-17 में नोटबंदी का जबरदस्त समर्थन किया था. उन्होंने हर बार इस फैसले को सही ठहराया. लेकिन कुछ दिनों पहले ही उन्होंने इसके नतीजों पर सवाल उठा दिए और जबकि इस समय में वह एनडीए में हैं.

एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि बैंकों की भूमिका के कारण नोटबंदी का लाभ जितना लोगों को मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिल पाया. नोटबंदी पर अचानक बदले नीतीश के सुरों ने विरोधियों को एक नया मुद्दा थमा दिया था.

2. सड़क

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और बिहार सरकार बीते दिनों से आंकड़ों को लेकर एकदूसरे पर हमलावर है. हाल ही में गडकरी ने कहा था कि बिहार में उनके करीब 2 लाख रुपए के प्रोजेक्ट राज्य सरकार की लापरवाही की वजह से अटके हुए हैं. जिसपर नीतीश सरकार की ओर से प्रेस रिलीज़ जारी कर पलटवार किया गया था.

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बिहार पथ निर्माण विभाग की ओर से जारी प्रेस रिलीज में साफ किया गया कि बिहार में सिर्फ 54 हजार 700 करोड़ रुपये की ही सड़क परियोजना पर काम चल रहा है. इस परियोजना की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 के चुनाव के दौरान विशेष पैकेज के तौर पर की थी.

3. गंगा

गंगा सफाई का मुद्दा 2014 में बीजेपी के लिए एक बड़ा मुद्दा था. इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक माना जाता रहा है, लेकिन अभी तक इसमें कोई बड़े रिजल्ट देखने को नहीं मिले हैं. इसी पर नीतीश कुमार ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधा था.

नीतीश ने केंद्र सरकार की नमामि गंगे परियोजना को फेल करार दिया.  मुख्यमंत्री ने कहा कि गंगा की न तो निर्मलता बची है और न ही अविरलता. पूरी तैयारी के साथ आए नीतीश कुमार ने नमामि गंगा परियोजना की हवा निकाल दी. उन्होंने कहा कि केंद्र गलत आंकड़े पेश कर रही है. बता दें कि इस समय गंगा का काम नितिन गडकरी ही संभाल रहे हैं, इसे एक तरह से नीतीश का गडकरी पर पलटवार समझा गया था. 

4. फसल बीमा

किसानों के मुद्दे पर घिरी मोदी सरकार लगातार कहती रही है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के कारण करोड़ों किसानों को लाभ मिला है. लेकिन बिहार सरकार ने इसे सिरे से खारिज किया था. नीतीश सरकार की ओर से कहा गया कि फसल बीमा योजना का लाभ किसानों को उतना भी नहीं मिल पाता है, जितना बीमा कंपनियों को राज्य एवं केंद्र सरकार से प्रीमियम के रूप में मिलता है.

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खरीफ और रबी फसलों के लिए बीमा कंपनियों को 400- 400 करोड़ रुपये प्रीमियम के रूप में केंद्र एवं राज्य सरकार देती है और किसानों को सिर्फ 150 करोड़ का ही लाभ मिल पाता है. पीएम फसल बीमा योजना को खारिज करते हुए नीतीश सरकार ने राज्य स्तर पर अपनी बीमा योजना लॉन्च की थी.

5. विशेष दर्जा

नीतीश कुमार पिछले काफी समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग बुलंद करते आए हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश ने जिस तरह इस मुद्दे को मोदी सरकार के खिलाफ भुनाया तो नीतीश की ओर से भी मांग तेज कर दी गई. उन्होंने नीति आयोग की बैठक में एक बार फिर से अपने सूबे को विशेष राज्य का दर्जा देने का मामला उठाया.

इस दौरान उन्होंने कई सुझाव भी दिए और कहा कि मिड डे मील स्कीम से विद्यालय अब भोजशाला बनकर रह गए हैं. लिहाजा यह बेहतर होगा कि पोषाहार के लिए बच्चों को राशि उपलब्ध कराई जाए, ताकि विद्यालयों में पढ़ने का माहौल बन सके.

6. क्राइम-करप्शन-कम्युनलिज्म

बीते दिनों बिहार में रामनवमी के बाद जिस तरह माहौल बिगड़ा था और सांप्रदायिक घटनाएं तेजी से बढ़ी थी. उसके कारण नीतीश कुमार एक बार फिर सभी के निशाने पर थे. इस पर ही नीतीश ने अपने मन की बात कही थी.

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नीतीश बोले कि उनकी सरकार 'थ्री सी’ के फॉर्मूले पर चल रही है. उन्होंने कहा, 'काम करते जाइए, काम की प्रतिबद्धता है और हम काम करते रहेंगे. हम कभी भी क्राइम (अपराध), करप्शन (भ्रष्टाचार) और कम्युनलिज्म (सांप्रदायिकता) से समझौता नहीं करेंगे.' साफ है कि इसके जरिए नीतीश बीजेपी को संदेश देना चाहते थे, जोकीहाट-अररिया चुनाव में जिस तरह से सांप्रदायिक का मुद्दा उठा था. उसी पर ये नीतीश का संदेश था.

7. कौन बनेगा बड़ा भाई?

जेडीयू की ओर से कहा गया कि वह पहले के फॉर्मूले पर चलेगी और 25 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेगी क्योंकि अब हालात 2014 के जैसे नहीं हैं. लेकिन बीजेपी ने इस पर पलटवार किया.

बीजेपी के प्रदेश महासचिव राजेंद्र सिंह ने दावा किया था कि पार्टी उन सभी 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी जिन पर पिछले लोकसभा चुनावों में उसे जीत हासिल हुई थी. जिसपर एक बार तो सुशील मोदी की ओर से कहा गया कि नीतीश ही बिहार में बड़ा चेहरा होंगे.

जवाब में जेडीयू की ओर से बीजेपी को चुनौती दी गई कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वसनीय और स्वीकार्य चेहरे के बगैर ही वह सभी 40 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़कर दिखाए.

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