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कोलंबिया के राष्ट्रपति जुआन मैनुअल सैंटोस को मिला नोबेल शांति पुरस्कार

साल 2016 के बहुप्रतिक्षित नोबेल शांति पुरस्कार हुए घोषित. कोलंबिया के राष्ट्रपति Juan Manuel Santos को मिला यह पुरस्कार....

Nobel Peace Prize @016 Nobel Peace Prize @016
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 5:38 PM IST

दुनिया में वैसे तो न जाने कितने ही पुरस्कार दिए जाते हैं लेकिन फिल्मी दुनिया में ऑस्कर और वास्तविक दुनिया में शांति के नोबेल पुरस्कार की चर्चा लंबे समय तक बनी रहती है. हम अपनी चाय की चुस्कियों पर शांति का नोबेल मिलने और न मिलने को लेकर बहस-मुबाहिसा करते रहते हैं. जैसे गांधी को नोबेल क्यों नहीं दिया गया और किन वजहों से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को शांति का नोबेल दे दिया गया.

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साल 2016 के शांति नोबेल पुरस्कार घोषित हो चुके हैं और यह बहुप्रतीक्षित पुरस्कार कोलंबिया के नेता और राष्ट्रपति Juan Manuel Santos को मिला है. राष्ट्रपति सैंटोस को कोलंबिया शांति समझौता के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया. कोलंबिया में लगभग 52 साल के संघर्ष के बाद शांति समझौता हुआ. हालांकि पिछले रविवार को देश की जनता ने इस समझौता ठुकरा दिया था. नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में पुरस्कार की घोषणा की गई. पुरस्कार 10 दिसंबर को दिए जाएंगे. हालांकि कोलंबिया के राष्ट्रपति को इस बात की सूचना पहले से नहीं थी कि इससे खबर के लीक हो जाने का डर था.

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साल 2016 में शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए 376 उम्मीदवार थे  जो कि खुद में एक रिकॉर्ड है. इनमें से 228 व्यक्ति थे तो वहीं 148 संगठन. इससे पहले यह रिकॉर्ड 278 दावेदारों का था जो 2014 में बना था. इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार जीतने के लिए पोप फ्रांसिस और सीरिया में काम कर रहे व्हाइट हेलमेट क्लियर फेवरेट थे.

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2016 के नोबेल शांति पुरस्कारों की रेस में भारत के श्रीश्री रविशंकर, अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प, रूसी मानवाधिकार कार्यकर्ता स्वेतलाना गनुश्किना, सीरिया के युद्धग्रस्त इलाकों में सफेद हेलमेट पहन कर राहत कार्यों को अंजाम देने वाला ग्रुप व्हाइट हेलमेट और दिल्ली में 2013 में एशियन साइकिलिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेने वाली अफगानिस्तान की महिला साइकिलिंग टीम भी शामिल थी.

यहां हम आपको बताते चलें कि पिछले वर्ष (2015) में शांति का नोबेल पुरस्कार ट्यूनिशिया के राष्ट्रीय डायलॉग क्वार्टेट समूह को दिया गया था. यह समूह अपने देश में लोकतंत्र की बहाली को लेकर प्रयासरत था और इस वजह से उसे पूरी दुनिया में खासी सराहना मिली थी.

ऐसे समय में जब हमारी पूरी दुनिया युद्ध और तबाही के मंजर देख रही है. जहां एक देश दूसरे देश पर हमले करने के लिए तैयार हैं. जाहिर है कि शांति ही एक मात्र उपाय है. हम गहरे अवसाद, संताप और दर्द से उबरने के बाद शांति ही तो चाहते हैं.

वैसे तो इस पुरस्कार को जीतने वालों की औसत उम्र 61 है कि इस पुरस्कार को पाने वाले अधिकांश लोग 50, 60 या 70 वर्ष के उम्रदराज लोग रहे हैं. इस पुरस्कार को सबसे कम उम्र में पाने वाली लड़की मलाला रही है. मलाला को यह पुरस्कार महज 17 साल की उम्र में मिल गया था. भारत के कैलाश सत्यार्थी भी मलाला के साथ साझे रूप से इस पुरस्कार को पा चुके हैं.

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