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पूर्वोत्तर में त्रिकोणीय मुकाबला, बीजेपी-कांग्रेस और लेफ्ट में होगी जंग

त्रिपुरा लेफ्ट का मजबूत किला माना जाता है. पिछले पांच विधानसभा चुनावों से यहां लेफ्ट का कब्जा है. इस बार राज्य का सियासी मिजाज गड़बड़ाया हुआ है. लेफ्ट के इस दुर्ग में बीजेपी सेंधमारी की लिए बेताब है.

पूर्वोत्तर के मेघालय में मतदाता (फाइल फोटो) पूर्वोत्तर के मेघालय में मतदाता (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST

पूर्वोत्तर के नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय के विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान हो चुका है. इन तीनों राज्यों में फरवरी में मतदान होगा. त्रिपुरा लेफ्ट का दुर्ग है, तो मेघालय कांग्रेस का मजबूत किला है. जबकि नगालैंड की सत्ता पर बीजेपी-एनपीपी की साझा सरकार है. ऐसे में पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों में कांग्रेस, लेफ्ट और बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर है.

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त्रिपुरा का सियासी समीकरण

त्रिपुरा लेफ्ट का मजबूत किला माना जाता है. पिछले पांच विधानसभा चुनावों से यहां लेफ्ट का कब्जा है. इस बार राज्य का सियासी मिजाज गड़बड़ाया हुआ है. लेफ्ट के इस दुर्ग में बीजेपी सेंधमारी की लिए बेताब है. हालांकि ये उसके लिए आसान नहीं है. 1978 के बाद से वाम मोर्चा सिर्फ एक बार 1988-93 के दौरान राज्य की सत्ता से दूर रहा है. बाकी सभी विधानसभा चुनाव में लेफ्ट का कब्जा रहा है. 1998  से लगातार त्रिपुरा में 3 बार से सीपीएम के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ही है. उनकी ईमानदारी और सादगी लेफ्ट की जीत का आधार रखती आई है.

त्रिपुरा के 2013 विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 60 सीटों में से वाम मोर्चा ने 50 सीटें जीती थीं, जिनमें से CPM को 49 और CPI को 1 सीट. जबकि कांग्रेस को 10 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था, लेकिन तीन साल के बाद 2016 में कांग्रेस के 6 विधायकों ने ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ज्वाइन कर ली. ये छह विधायक टीएमसी में भी रह नहीं सके और अगस्त 2017 में उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली.

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मेघालय का चुनावी गणित

मेघालय की सत्ता पर आसीन कांग्रेस के लिए अपनी सत्ता बचाए रखने की बड़ी चुनौती है. बीजेपी से लेकर नेशनल पीपुल्स पार्टी सहित अन्य क्षेत्रीय दल पूरी तरह से कमर कसकर चुनावी मुकाबले में उतर चुके हैं. सूबे में कांग्रेस संकट में है, उनके कई विधायकों ने पिछले दिनों पार्टी को अलविदा कहा है. कांग्रेस इसकी भरपाई करने में लगी हुई है.कई दूसरी पार्टियों के नेता कांग्रेस में शामिल किए जा रहे हैं.

देश में बाकी जगहों पर लगातार हार के बाद कांग्रेस के लिए मेघालय की चुनावी जंग जीतना बहुत अहम है. ऐसे में कांग्रेस मेघालय को लेकर किसी तरह की रिस्क नहीं लेना चाहती. मेघालय में दशकों से कांग्रेस की सियासी मौजूदगी उसे यहां मजबूत बनाए हुए है, लेकिन पिछले दिनों कुछ विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहा तो एनसीपी सहित कुछ अन्य पार्टी के विधायकों ने पार्टी का दामन भी थामा है.

राज्य की बाजी जीतना बीजेपी के लिए काफी कठिन है. दरअसल राज्य में 60 फीसदी आबादी ईसाई समुदाय की है. बीजेपी की हिंदुत्व छवि और बीफ पाबंदी उसकी राह में सबसे बड़ी बाधा हैं.

मेघालय में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में इनमें से कांग्रेस ने 29 पर जीत दर्ज की थी, तो वहीं यूडीपी ने 8,  निर्दलीय ने 13, एनसीपी ने 2 और अन्य ने 8  सीटें जीती थीं.

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नगालैंड का सियासी मिजाज

नगालैंड की सत्ता पर नगा पीपुल फ्रंट और बीजेपी गठबंधन की साझा सरकार है. राज्य की सत्ता से कांग्रेस को 2003 में बेदखल करके नगा पीपुल फ्रंट ने यहां कब्जा किया था, उसके बाद से लगातार सत्ता में वो बनी हुई है. बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी सीटों को बढ़ाने की है. इसके अलावा अपनी सहयोगी पार्टी एनपीपी के साथ सत्ता में बहुमत के साथ वापसी करना भी एक चैलेंज है. जबकि कांग्रेस 14 साल बाद सत्ता में वापसी के लिए हाथ पांव मार रही है.

नगालैंड में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं. पिछले 2013 के विधानसभा चुनाव में नगा पीपुल फ्रंट ने 45 सीटें जीती थीं. इसके अलावा 4 बीजेपी और 11 सीटें अन्य के खाते में हैं.

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