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जिस दिल्ली से स्वच्छता अभियान की शुरुआत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, उसी दिल्ली की सिविक एजेंसिया इसमें फिसड्डी साबित हुई हैं. दरअसल केंद्र सरकार ने स्वच्छता अभियान के लिए पैसा मुहैया कराया था, लेकिन दिल्ली की दो सिविक एजेंसियां उत्तरी नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम उसका एक रुपये भी खर्च नहीं कर पाईं.
दिल्ली सरकार को ठहराया दोषी
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि अपना देश साफ हो, लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में ही सिविक एजेंसिया इस सपने पर बट्टा लगा रही हैं. दरअसल स्वच्छता अभियान के लिए केंद्र सरकार से मिली मदद का ये एजेंसियां एक रुपये भी खर्च नहीं कर पाई. इन सबके लिए एमसीडी दिल्ली सरकार को दोषी ठहरा रही है क्योंकि उत्तरी नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम के पास पैसे की तंगी है, तो वहीं चौथे वित्त आयोग को लागू करने की मांग दोनों एमसीडी दिल्ली सरकार से कर रही हैं.
आर्थिक तंगी से गुजर रही है एमसीडी
एमसीडी का कहना है कि स्वच्छता अभियान के लिए पैसों में 20 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार देती है, 6 प्रतिशत दिल्ली सरकार और बाकी 74 प्रतिशत पैसा एमसीडी को खर्च करना होता है. एमसीडी केंद्र और दिल्ली सरकार से मिलने वाला पैसा तभी खर्च कर सकती है, जब एमसीडी पहले 74 प्रतिशत पैसा लगाएं और हालात ये हैं कि एमसीडी आर्थिक तंगी से गुजर रही है.
एमसीडी का शेयर कम करने की विनती
अभी तक सरकार की तरफ से उत्तरी नगर निगम को 2015-16 में स्वच्छता अभियान के लिए 46.28 करोड़ दिए हैं, जबकि पूर्वी दिल्ली नगर निगम को 2015-16 के लिए 42 करोड़ रुपये मिले हैं, लेकिन वो खर्च नहीं कर पाई हैं. एमसीडी ने केंद्र सरकार से एमसीडी का शेयर कम करने की विनती की, फिर अगस्त 2016 में ये फैसला किया गया है कि स्वच्छता अभियान के लिए 35 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार, 6 प्रतिशत पैसा दिल्ली सरकार जबकि एमसीडी 59 प्रतिशत पैसा खर्च कर करेगी.
कहां से आएगा पैसा?
इन सबके बाद बड़ा सवाल ये है कि एमसीडी के पास पैसा कहां से आएगा. स्वच्छता अभियान के लिए एमसीडी पैसे की तंगी की वजह से दिल्ली सरकार के पैसे की मांग कर रही है. मोदी सरकार के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर फिलहाल दिल्ली में पैसे पर राजनीति जारी है.