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पीएम मोदी बोले- आगे चुनौतियां कम नहीं, जैव विविधता को रखें सुरक्षित

राजधानी में पहली अंतरराष्ट्रीय कृषि जैव विविधता कांग्रेस को संबोधित करते हुए मोदी ने अनुसंधान और आनुवांशिक संसाधनों के उचित प्रबंधन पर जोर दिया.

पीएम मोदी पीएम मोदी
अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 06 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:37 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ पौधे और पशु प्रजातियों के विलुप्त होने पर चिंता जताते हुए कहा कि कृषि जैव विविधता के संरक्षण के वैश्विक कानूनों को इस तरह से सुसंगत बनाने की जरूरत है कि इससे विकासशील देशों की वृद्धि के रास्ते में अड़चन न आने पाए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल सतत विकास की कीमत पर नहीं होना चाहिए.

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राजधानी में पहली अंतरराष्ट्रीय कृषि जैव विविधता कांग्रेस को संबोधित करते हुए मोदी ने अनुसंधान और आनुवांशिक संसाधनों के उचित प्रबंधन पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जेनेटिक संसाधनों के लिए अस्तित्व का संकट और बढ़ेगा. ऐसे में जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, निजी निकायाों के संसाधनों को ‘एकजुट’ करने और दुनियाभर के वैज्ञानिक विशेषज्ञों के बीच विचारों को साझा करने की जरूरत होगी.

प्रधानमंत्री ने कहा, 'दुनियाभर में करोड़ों लोग भुखमरी, कुपोषण और गरीबी से संघर्ष कर रहे हैं. इस मुद्दे को सुलझाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी बेहद महत्वपूर्ण है. इनका समाधान ढूंढते समय हमें जैव विविधता के संरक्षण और सतत विकास को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.' उन्होंने कहा कि कृषि में प्रौद्योगिकी के नकारात्मक प्रभाव का आकलन करने की जरूरत है. इसके लिए उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कीटनाशकों के इस्तेमाल से मधुमक्खियों के माध्यम से परागण प्रक्रिया प्रभावित होती है. उन्होंने इसी संदर्भ में विनोदपूर्ण ढंग से कहा कि प्रौद्योगिकी की नकारात्मक असर यह है कि मोबाइल फोन आने के बाद आज लोगों को अपने टेलीफोन नंबर भी याद नहीं रहते.

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कृषि पारिस्थिति तंत्र में कीटनाशकों को एक प्रमुख चिंता बताते हुए मोदी ने कहा, 'कीटनाशक के इस्तेमाल से न केवल प्रकोप मचाने वाले कीट मरते हैं, बल्कि ऐसे कीट भी समाप्त हो जाते हैं तो समूचे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जरूरी हैं. ऐसे में विज्ञान के आडिट विकास की जरूरत है. आडिट के अभाव में दुनिया को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.' इसके अलावा प्रधानमंत्री ने गरीबी, कुपोषण और भुखमरी का वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के जरिये समाधान ढूंढने के प्रयासों के बीच स्वस्थ तरीके से विकास और जैव विविधता संरक्षण के मुद्दों की अनदेखी करने के नुकसान के प्रति भी आगाह किया.

उन्होंने कहा, 'हमें देखना होगा कि कैसे कृषि जैव विविधता से संबंधित विभिन्न कानूनों को इस तरीके से सुसंगत बनाया जाए कि ये कृषि और किसानों के विकास में आड़े न आएं.' प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि लोगों ने विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया है. ऐसे में में आने वाले दिनों में चुनौतियां बढ़ेंगी. मौजूदा परिदृश्य में वैश्विक खाद्य, पोषण, स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा हासिल करने के लिए कृषि जैव विविधता पर विचार विमर्श और अनुसंधान बेहद जरूरी है.

मोदी ने प्रतिदिन 50 से 150 प्रजातियों के विलुप्त होने पर चिंता जताते हुए कहा कि आने वाले समय में आठ में एक पक्षियों तथा चार में से एक पशु खतरे में होगा. उन्होंने कहा कि जैव विविधता संरक्षण पर बजाय नियमों और नियमनों के व्यक्तिगत स्तर पर ध्यान देने की जरूरत है. प्रधानमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या प्रकृति के असंतुलन की वजह से है. मोदी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के जोखिमों की वजह से हमने 2 अक्तूबर को पेरिस संधि का अनुमोदन किया। भारत इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहा है.

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प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र कृषि जैव विविधता के संरक्षण के लिए भिन्न तरीके अपना रहा है। मोदी ने कहा कि यह उचित होगा कि हम इस तरह के सभी व्यवहार के रिकॉर्ड के लिए रजिस्टर तैयार करें और उसके बाद शोध कर यह पता लगाएं कि किस तरह के व्यवहार को प्रोत्साहन देने की जरूरत है. जैव विविधता में भारत की संपन्नता का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि देश में पौधों की 47,000 और पशुओं की 89,000 प्रजातियां हैं. इसके अलावा देश में 8,100 किलोमीटर का तटीय क्षेत्र है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत जेनेटिक संसाधनों का संरक्षण करने में सफल रहा है, क्योंकि हमारे पूर्वजों ने कृषि उत्पादों का हमारी संस्कृति का हिस्सा बनाया था. इस संबंध में उन्होंने कई उदाहरण दिए. उन्होंने कहा कि देश कई प्रजातियों या किस्मों मसलन दक्षिण भारत में ‘कोनामणि चावल किस्म, असम में अग्निबोरा, गुजरात में भालिया गेहूं आदि शामिल हैं. उन्होंने कहा कि भारत ने अन्य देशों कृषि जैव विविधता में मदद दी है. उन्होंने कहा कि हरियाणा की ‘मुर्रा’ भैंस और गुजरात की जाफराबादी अब अंतरराष्ट्रीय प्रजातियां बन गई हैं.

मोदी ने मत्स्य क्रांति का आह्वान करते हुए वैज्ञानिकों का आह्वान किया वे सिर्फ मत्स्यपालन पर ही नहीं समुद्री वनस्पतियों की खेती पर भी ध्यान केंद्रित करें. मोदी ने इस बात को रेखांकित किया भारत जैव विविधता में धनी है. उन्होंने कहा कि वैश्विक जैव विविधता में भारत का हिस्सा 6.5 प्रतिशत का है. भारत सिर्फ ढाई प्रतिशत भूमि संसाधनों के जरिये दुनिया भर में 17-18 प्रतिशत मानव और पशु आबादी का पेट भरता है. उन्होंने कहा कि हमारा देश कृषि आधारित है. 50 फीसदी से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है. हमारा सिद्धान्त प्राकृतिक संसाधनों को बचाना तथा विकास पर ध्यान केंद्रित करने का है. दुनियाभर में विकास कार्यक्रम इसी सिद्धान्त पर आधारित हैं.

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