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'ऑपरेशन ब्लैक क्रो' ने बढ़ाई IS चीफ बगदादी की मुश्किलें

बगदादी की सल्तनत की ये वो हकीकत है जिसे दरअसल एक टीवी सीरीज की शक्ल दी गई है. ब्लैक क्रो यानी काला कौव्वा नाम के इस शो की कहानी उस यजीदी महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे आतंक की सल्तनत में जबरन रहने के लिए मजबूर किया जाता है.

पूरी दुनिया में इस TV सीरीज की चर्चा हो रही है पूरी दुनिया में इस TV सीरीज की चर्चा हो रही है
सुप्रतिम बनर्जी
  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2017,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

वो जो आतंक का आका है, वो जो दहशत का दूसरा नाम है, वो जो इंसानियत का दुश्मन है, उसके झंडे का रंग भी काला है. उसके कारनामे भी काले हैं. उसका जेहन भी काला है और अब अपने गुर्गों की जान बचाने के लिए उसने तरीका भी काला अपनाया है. औरतों के काले बुर्कों में चेहरा छिपाकर उसके आतंकी इराक के मोसुल में अपनी जान बचा रहे हैं. काले बुर्के की पूरी कहानी आपको दिखाएं. उससे पहले देखिए वो ऑपरेशन ब्लैक क्रो, जो बगदादी की काली करतूतों पर पड़े पर्दे को बेपर्दा कर देगा.

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जो हकीकत बगदादी ने दुनिया से छुपाई. जो कैमरे की पकड़ में भी न आई. वो जो आतंक का असली चेहरा है. वो काले स्याह पर्दे के पीछे छिपा है. आज उसे अपनी आंखों से देखिए. देखिए आतंक की सल्तनत में कैसे कहर बरपाता है बगदादी. कैसे अच्छे भले इंसान और पूरी की पूरी इंसानियत को पलभर में गोलियों से भून देते हैं उसके आतंकी. उसकी इस दहशत के पीछे कौन है. हैवानियत की वजह क्या है. आतंक के पीछे किसका है शैतानी दिमाग. तमाम के तमाम सवालों का जवाब है ये वीडियो. जिसमें दहशत भी है, लाचारगी भी, बेबसी है, जिंदगी से जंग भी है और मौत भी. करीब ढाई मिनट के इस वीडियो को बहुत गौर से देखिए. इसे देखेंगे तो ही जानेंगे कि जितना हम आईएसआईएस को जानते हैं, वो उससे कहीं ज़्यादा खतरनाक और खूंखार है.

 

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मासूम बच्चों के हाथों में बंदूक
इस वीडियो में मांओं से बिछड़ते उनके बच्चे हैं, जिनके हाथों में खिलौनों की जगह बंदूक है. गड्ढों में लाशों का ढेर है और उन गड्ढों को भरता बुलडोज़र है. मौत तो मौत ज़िंदगी भी जानवरों से बदतर है और पूरा का पूरा शहर जैसे एक बियाबान है. बगदादी की सल्तनत की ये वो हकीकत है जिसे दरअसल एक टीवी सीरीज की शक्ल दी गई है. ब्लैक क्रो यानी काला कौव्वा नाम के इस शो की कहानी उस यजीदी महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे आतंक की सल्तनत में जबरन रहने के लिए मजबूर किया जाता है. दरअसल ये पूरी की पूरी कहानी एक यजीदी महिला की आपबीती के जरिए आईएसआईएस की सच्चाई को बयान करती है. मगर अब इसी फिल्म में यजीदी महिला का किरदार निभाने वाली कुवैती कलाकार मोना शद्दाद की जिंदगी के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं बगदादी के आतंकी.

कुवैती आर्टिस्ट को मिल रही हैं धमकी
सुबह-शाम मोना शद्दाद को मारने और उसे धमकाने की कोशिश की जा रही है. किरदार को निभाने से पहले और अब किरदार को निभाते वक़्त शद्दाद को रोजाना धमकी भरे फोन आ रहे हैं. क्योंकि जिस तरह ब्लैक क्रो नाम के इस शो के जरिए बगदादी के चेहरे से नकाब उतरता जा रहा है, उससे उसे अपनी पोल खुलने का डर सता रहा है. इतना ही नहीं, इस पूरे शो में दिखाया गया है कि कैसे इस्लाम के नाम पर मुसलमानों को धोखा देकर बगदादी अपनी सल्तनत कायम कर रहा है. जबकि हकीकत तो ये है कि वो खुद इस्लाम के नाम पर एक बदनुमा दाग है, जो युवाओं को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है. एक तरफा प्रोपेगैंडा वीडियो जारी कर बगदादी अब तक दुनिया के हजारों-लाखों युवाओं को गुमराह कर चुका है.

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शो के जरिए युवाओं को सही राह दिखाने का काम
मगर अब बारी है उनके जैसे लोगों को गुमराही से निकालकर सीधी राह दिखाने की. जो काम इस शो के जरिए किया जा रहा है. इसलिए बगदादी की पूरी कोशिश अब इस बात पर है कि इस शो को जल्दी से जल्दी बंद करवाया जाए. और अगर ऐसा न हो सके तो शो में काम करने वाले कलाकारों को ही मार डाला जाए. जिन वीडियोज़ को बनाकर बगदादी ने अपनी ताकत बढ़ाई, अपनी सल्तनत बढ़ाई, अपनी दहशत कायम की, दुनिया भर में नौजवानों को गुमराह किया और सेनाओं को मात दी.. अब उसी वीडियो से हार गया है बगदादी. ब्लैक क्रो नाम की इस टीवी सीरीज से वो इतना घबराया हुआ है कि अब इसमें काम करने वाले कलाकारों को जान से मार देना चाहता है. जानते हैं क्यों, क्योंकि वो नहीं चाहता कि मजहब के नाम पर लोगों को जिस तरह वो बरगला रहा है, वो काली सच्चाई दुनिया के सामने आए.

बगदादी की पोल खोलने वाली है ये टीवी सीरीज
बगदादी की पोल खोलने वाली ये टीवी सीरीज ब्लैक क्रो मिडिल ईस्ट ब्रॉडकास्टिंग सेंटर यानी एमबीसी के जरिए अरब के तमाम मुल्कों और उत्तरी अफ्रीकी देशों में दिखाई जा रही है. जिसका मकसद है मजहब के नाम बगदादी के छलावे से लोगों को बचाना. इस टीवी सीरीज के डॉयरेक्टर अली जबर के मुताबिक, लोगों के जेहन से आईएसआईएस को निकालना इतना आसान नहीं है. क्योंकि अब सिर्फ एक संगठन नहीं है बल्कि अब ये एक विचारधारा है. और अब किसी के विचारों को बम से नहीं मार सकते. आपको आतंकी विचारों से लड़ने के लिए उससे भी दमदार विचारों की जरूरत पड़ती है.. आईएसआईएस हमारे समाज में बहुत लंबे समय से चल रही विचार शून्यता और गलत धार्मिक शिक्षाओं की वजह से बाहर आया है.

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डॉयरेक्टर के लिए सिरदर्द बनी ये सीरीज
डॉयरेक्टर अली जबर के ये विचार और उनकी ये टीवी सीरीज उनके और उनके यूनिट के लिए सिरदर्द बने हुए हैं. खासकर आईएसआईएस के चंगुल में फंसी महिला का किरदार निभाने वाली कुवैती आर्टिस्ट मोना शद्दाद के लिए, जिन्हें इस किरदार को निभाने के लिए सुबह-शाम धमकी भरे फोन आ रहे हैं. मोना कहती है कि, 'हां ये सच है कि मुझे धमकियां मिल रही हैं लेकिन मैं डरी हुई बिलकुल भी नहीं हूं. अगर आप ये सवाल कुछ साल पहले पूछते तो मैं कहती कि हां मैं डरी हुई हैं. मगर अब मैं किसी से नहीं डरती. क्योंकि मेरा खुदा मेरी हिफाज़त कर रहा है. जो रोल मैं प्ले कर रही हूं वो बहुत अहम है. क्योंकि इस किरदार से मैं दुनिया को ये बता सकूंगीं कि कितनी आसानी से आतंकी लोगों का ब्रेनवॉश कर देते हैं. और कैसे उन्हें लगता है कि वो अच्छे मकसद के लिए आतंकियों के साथ जुड़ रहे हैं, जो कि बस एक छलावा है.'

हर ओर इस टीवी सीरीज की चर्चा
आईएसआईएस पर बनी इस टीवी सीरीज की चर्चा आज पूरी दुनिया में है. मगर इस टीवी सीरीज को शूट करने के दौरान लगातार हमले की आशंका से पूरे के पूरे क्रू मेंबर खौफ में रहे. हालांकि 10 मिलियन डॉलर की लागत से बनी इस फिल्म को लेबनान में शूट करने दौरान भारी सुरक्षा मिली हुई थी. अपनी हार को करीब देख कर आईएस के आतंकवादी अब सिर्फ बुर्का पहनकर ही अपनी जान नहीं बचा रहे हैं बल्कि आम लोगों को भी अपनी ढाल बना रहे हैं. इराकी सेना के मुकाबले वो इन आम लोगों को आगे करके उनके पीछे से भागने की कोशिश कर रहे हैं. मगर कुछ ही आतंकी इसमें कामयाब हुए हैं. ज़्यादातर को या तो सेना ने मार गिराया या गिरफ्तार कर लिया गया. आईएसआईएस के खात्मे के लिए मोसुल में उसकी हार बेहद जरूरी है.

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जून 2014 में मोसुल पर किया था कब्जा
आईएस के खात्मे के लिए मोसुल शहर की आजादी बेहद जरूरी है. दरअसल जून, 2014 में मोसुल पर कब्जा करने के बाद बगदादी ने इसे न सिर्फ अपने आतंक के साम्राज्य की राजधानी बनाया बल्कि यहीं से उसने खुद की खिलाफत का ऐलान भी किया. इसलिए अगर मोसुल में बगदादी की शिकस्त होती है तो जाहिर तौर पर इसका मतलब है इराक से इस्लामिक स्टेट का खात्मा. इतना ही नहीं, मोसुल में तेल का अकूत भंडार है. अगर ये शहर हाथ से जाता है तो आईएस की कमाई का एक बड़ा जरिया बंद हो जाएगा. इसके बाद इराक के महज 10 फीसदी हिस्से पर ही आईएस का प्रभाव रह जाएगा. पेंटागन के मुताबिक, इराकी सेना अपने तय लक्ष्य से आगे चल रही है. हालांकि ये भी अंदेशा जताया जा रहा है कि आतंकियों से मोसुल को खाली कराने की ये जंग लंबी खिंच सकती है.

किसी भी हद तक जा सकते हैं आतंकी
इसके संकेत भी मिल रहे हैं. आतंकी इराकी सेना को मोसुल में दाखिल होने से रोकने के लिए जवाबी कार्रवाई में किसी भी हद तक जा रहे हैं. सेना के टैंकों को निशाना बनाने के अलावा आतंकी शहर के अंदर तेल फैलाकर उसमें आग लगा रहे हैं, जिससे पूरे शहर में धुएं का जबरदस्त गुबार उठ रहा है और इसी गुबार की आड़ में वो खुद के लिए भागने का रास्ता तैयार कर रहे हैं. एक तरफ जहां मोसुल का ये महायुद्ध प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है, वहीं शहर में रहने वाले 15 लाख लोगों की सुरक्षा को लेकर भी फिक्र बढ़ने लगी है. अंदेशा है कि आतंकी अपनी जान बचाने के लिए आम लोगों का ढाल की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. लिहाजा ऐसे हालात से निपटने के लिए इराकी सेना ने मोसुल शहर पर काफी तादाद में पर्चे गिराए हैं. जिसमें आम लोगों को नसीहत दी जा रही है कि लड़ाई के दौरान अपनी सुरक्षा के लिए उन्हें क्या करना है.

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तीन लाख लोग छोड़ चुके हैं घर
संयुक्त राष्ट्र को अंदेशा है कि मोसुल में लड़ाई के चलते यहां से करीब एक लाख इराकियों को जान बचाने के लिए सीरिया या तुर्की भागना पड़ सकता है. इराक में आतंकियों के खौफ से करीब तीन लाख से ज़्यादा लोग पहले से ही अपने-अपने घरों को छोड़कर जा चुके हैं. लिहाजा दोबारा ऐसे हालात पैदा होने की स्थिति में शरणार्थियों की मदद के इंतजाम अभी से शुरू कर दिए गए हैं. मोसुल को आतंकियों के चंगुल से रिहा कराने के लिए शुरु हुए इस ऑपरेशन की तैयारी करीब एक महीने से चल रही थी. अभी इराकी फौज मोसुल तक पहुंची भी नहीं है मगर अभी से ही आतंकी बौखलाए नजर आ रहे हैं. जानकार मान रहे हैं कि इराक में इस्लामिक स्टेट के पूरी तरह खात्मे की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. क्योंकि इराक का यही शहर अभी भी आईएस का गढ़ है. बाकी इलाकों से तो उसके पैर कब के उखड़ चुके हैं. सीरिया में भी सिर्फ रक्का शहर में ही इस्लामिक स्टेट का कब्जा रह गया है. ऐसे में मोसुल की हार बगदादी की अब तक की सबसे बडी शिकस्त होगी.

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