
बीते दो जून को मथुरा में हुए खूनी संघर्ष में दो पुलिस अफसरों समेत 29 लोगों की मौत हो गई. आरोप-प्रत्यारोप के बीच सवालों के घेरे में यूपी सरकार भी है. 'आज तक' की खुफिया टीम ने हाल ही एक स्टिंग किया, जिसने मथुरा कांड की हर तह को खोलकर रख दिया. इस ऑपरेशन में इस बात का खुलासा हुआ कि कैसे 280 एकड़ जमीन पर कब्जे का बीज बोया गया और कैसे वो धीरे-धीरे हिंसा का 'रामवृक्ष' बनता चला गया. स्टिंग सामने आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का इस्तीफा मांगा है. यही नहीं इस मामले को लेकर बीजेपी आज दोपहर 3 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करने वाली है.
इसमें कोई शक नहीं कि मथुरा में जो कुछ हुआ, उसमें वहां की कानून-व्यवस्था भी शामिल है. लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हिंसा का कौन जिम्मेदार है? किसकी चूक से मारे गए बहादुर अफसर? किसके संरक्षण के कारण रामवृक्ष यादव जवाहरबाग में अपनी हुकूमत चलाता रहा? इन सारे सवालों के जवाब की तस्दीक वो खुफिया इनपुट करते हैं, जिनके पुख्ता सबूत 'आज तक' के हाथ लगे हैं. यह बताते है कि कैसे एक-दो नहीं, बल्कि 80 बार इनपुट और अलर्ट के बावजूद अखिलेश यादव की सरकार और वहां की पुलिस सोई रही.
सरकार ने इंटेलिजेंस फेल्योर को बताया कारण, लेकिन...
बताया जाता है कि इंटेलिजेंस यूनिट बार-बार सरकार और पुलिस को आगाह करती रही. लगातार इनपुट भेजा गया. जवाहरबाग में तैनात पुलिसकर्मियों को भी इस बात का पूरा इल्म था कि रामवृक्ष मथुरा का कंस बन चुका है. मथुरा को लेकर यह उस सच का खुलासा है, जिसने 29 लोगों की जान गई. बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी हुई. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि ये इंटेलिजेंस का फेल्योर था. तो क्या यही हकीकत है. जी नहीं, हमारी खुफिया टीम ने जब तहखानों में दबा राज खंगाला तो कुछ और ही सच्चाई सामने आई. लोकल इंटेलिजेंस ने तो पल-पल की जानकारी सरकार को दी थी, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.
इंटेलिजेंस के इंस्पेक्टर ने बयान की हकीकत
इंटेलिजेंस विभाग पर आरोप मढ़कर अखिलेश सरकार ने खुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन 'आज तक' की टीम ने पड़ताल की मथुरा की. हमारी मुलाकात इंजेलिजेंस यूनिट के मुखिया मुन्नी लाल गौर से हुई. गौर साहब इंटेलिजेंस यूनिट में बतौर इंस्पेक्टर तैनात हैं. साल 2012 से लगातार इनकी पोस्टिंग मथुरा में ही है, ये समझ लीजिए कि मथुरा के कोने कोने से वाकिफ हैं. वह कहते हैं, 'जैसे-जैसी परिस्थितियां आईं, हमने यूपी सरकार को एक दो बार नहीं बल्कि पूरे 80 बार जवाहरबाग का इनपुट भेजा.'
सबकुछ लिखित रूप से मौजूद
वह कहते हैं, 'हमारी तो लिखा-पढ़ी में है. हमने करीब 80-80 प्रतिवेदन भेजे हैं. डीओ लेटर होते हैं. डीओ नोट्स भेजे हैं. 80 बार करीब 250-300 पन्नों की रिपोर्ट है. हमारी अलग अलग तारीखों को. एक महीने में कभी चार बार भेजे, कभी पांच बार भेजे. जब जब जैसी घटना परिस्थितियां आईं, वैसे मैं लिखता-भेजता रहा. लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया.'
जनवरी 2015 में ही भेज दी थी छह पन्नों की रिपोर्ट
इंस्पेक्टर गौर ने समय-समय पर सरकार और शासन दोनों को चेताया कि मथुरा का जवाहर बाग बारूद के ढेर पर है. इंटेलिजेंस यूनिट के इंस्पेक्टर मुन्नी लाल गौर ने वो रिपोर्ट भी दिखाई, जिसको लखनऊ यानी अखिलेश सरकार को भेजा गया था.
वह कहते हैं, 'यह रिपोर्ट है. डेली की डेली जो भेजी है. सबसे पहले मैंने इनको दिया है अवैध असलहों के संबंध में. टैग लगा है. अवैध असलहों के संबंध में. यह रिपोर्ट इनको 23 जनवरी 2015 को लिखा है, यह 6 पन्नों की है.'
गौर जो बता रहे हैं. समझा रहे हैं. अगर आपको समझ में नहीं आया तो फिर से गौर पर गौर फरमाइए. सरकार और प्रशासन को गौर बार-बार चेताते रहे कि जवाहरबाग में कब्जेधारियों के पास भारी मात्रा में अवैध असलाह है और ये चेतावनी तकरीबन डेढ़ साल पहले ही दे दी गई थी.
कहा था- प्रशासन से लड़ने को तैयार हैं सत्याग्रही
मुन्नी लाल गौर ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा, 'ऐसा सुनने में आया है कि यह लोग अपने साथ अवैध असलहे भी रखे हुए हैं, जिनका समय आने पर प्रयोग करने में नहीं चूकेंगे. वर्तमान में जवाहरबाग में रह रहे सत्याग्रही अत्यधिक उत्तेजित और प्रशासन से लड़ने झगड़ने को तैयार हैं. अगर इनके पास पर्याप्त संख्या में पुलिस बल लेकर कार्रवाई नहीं की गई तो अपर्याप्त पुलिस बल के साथ कोई भी घटना घटित हो सकती है.'
घटना से एक दिन पहले भी किया था आगाह
गौर ने यह रिपोर्ट DM, SSP और गृह सचिव को भी भेजी. यही नहीं, ऐसी 15 रिपोर्ट भेजी गईं, जिसे डीएम ने शासन को भेजा था. इनमें एक रिपोर्ट 10 नवंबर 2014 की भी है. फिर नवंबर 2014 की. 13 जनवरी 2015 की एक रिपोर्ट भी है, जिसमें मारपीट का जिक्र है. इंटेलिजेंस यूनिट के इंस्पेक्टर ने 'आज तक' को यह भी बताया कि खूनी संघर्ष से ठीक एक दिन पहले यानी एक जून को भी सरकार को चेताया गया था.
ये थी एक जून की इंटेलिजेंस की रिपोर्ट
एलआईयू के इंस्पेक्टर मुन्नी लाल गौर ने अपनी 1 जून की रिपोर्ट में लिखा है, 'उल्लेखनीय है कि जवाहरबाग को खाली करवाए जाने को लेकर दिए गए नोटिस और पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई के चलते पड़ावरत सत्याग्रही हतोत्साहित न होने और पुन: एकजुट होकर शक्ति प्रदर्शन करने वाले हैं. साथ ही प्रशासन को भी यह बताना चाह रहे हैं कि वे किसी भी कार्रवाई से कतई सशंकित नहीं हैं. ये दर्शाने के उद्देश्य से सत्याग्रही द्वारा आज महिला, बच्चों को आगे कर मार्च निकाला गया. साथ ही ये भी जानकारी में आया है कि इनके द्वारा छोटे-छोटे ईंट पत्थर के टुकड़े जवाहरबाग के अंदर जगह-जगह एकत्र किए जा रहे हैं. जिनका प्रयोग इनके द्वारा पुलिस कार्रवाई के दौरान किया जा सकता है.'
अब भला कैसी होती है इंटेलिजेंस की जानकारी?
अब सवाल उठता है कि इससे ज्यादा सटीक और खुफिया जानकारी और क्या हो सकती थी. लेकिन इस कदर चेतावनी देने के बाद भी, लखनऊ में बैठी अखिलेश सरकार
के कान पर जू तक नहीं रेंगी. इसके बावजूद भी सरकार अगर ये कहती है कि लोकल लेवल पर इंटेलिजेंस फेल्योर था, इंटेलिजेंस चूक थी तो अब आप खुद भी समझ चुके होंगे कि चूक किससे हुई, और कैसे हुई.
लंबे समय से थी खूनी खेल की तैयारी
यह सब यूं अचानक भी नहीं हुआ था. खूनी खेल की तैयारी तो जवाहरबाग में लंबे वक्त से चल रही थी. खुफिया विभाग ने सरकार को जवाहरबाग की एक-एक हरकत की सूचना बाकायदा लिखत-पढ़त में दे दी थी. मथुरा कांड की हकीकत की तह में जाने के लिए 'आज तक' की एसआईटी टीम पहुंची सब इंस्पेक्टर सुनील कुमार तोमर के पास.
पुलिस तैनात, लेकिन एक्शन का अधिकार नहीं
जवाहरबाग में तैनात सब इंस्पेक्टर सुनील कुमार तोमर ने अपनी आंख से देखा था कि किस तरह महीनों से रामवृक्ष के गुर्गे खुलेआम तमंचे लहराते हुए घूम रहे थे. सब इंस्पेक्टर तोमर कहते हैं, 'मथुरा पुलिस को जवाहरबाग में सिर्फ पहरेदारी की जिम्मेदारी दी गई थी. किसी भी तरह के एक्शन का अधिकार नहीं दिया गया था.' दो जून को खूनी संघर्ष वाले दिन भी सुनील जवाहरबाग में ही थे. वह कहते हैं, 'जवाहर बाग की खरबों रुपये की कीमत की जमीन को रामवृक्ष को लीज पर देने का खेल चल रहा था.'
रामवृक्ष से मिलने आते थे अपराधी और नेता
जवाहरबाग अराजक तत्वों का अड्डा बन चुका था. रामवृक्ष यादव को खादी का संरक्षण मिला हुआ था. अपराधी से लेकर नेता तक उससे मिलने आते थे. 'आज तक' की टीम ने बात की नारायण सिंह से. जिन्हें जवाहरबाग में फल और सब्जी उगाने का ठेका मिला हुआ था. सिंह बताते हैं कि जवाहरबाग अपराधियों का गढ़ बन चुका था और इन्हें संरक्षण दे रहा था रामवृक्ष यादव.
2014 में भी रामवृक्ष के गुर्गों ने की थी पुलिस की पिटाई
मथुरा कांड और जवाहरबाग का पूरा सच जानने की मुहिम में हमारी एसआईटी की टीम पहुंची मथुरा के जिला अस्पताल और मुलाकात हुई कांस्टेबल मनोज यादव से. कांस्टेबल मनोज यादव रामवृक्ष यादव और उसके गुर्गों की क्रूरता के साक्षी रहे हैं. मनोज रोंगटे खड़े कर देने वाला वाकया बयान करते हैं. वह बताते हैं कि जनवरी 2014 में पुलिस टीम रामवृक्ष के अवैध कब्जे की जांच करने जवाहरबाग पहुंची थी. तब रामवृक्ष के गुर्गों ने पुलिस टीम को घेरकर उनकी बुरी तरह पिटाई की थी.
सब इंस्पेक्टर सुनील कुमार, ठेकेदार नारायण सिंह और कांस्टेबल मनोज यादव की बातों से ये साफ है कि जवाहर बाग में रामवृक्ष यादव का रावणराज चलता था. उसकी पहुंच बहुत ऊपर तक थी. रसूखदार लोगों का उसे संरक्षण मिला हुआ था, यही वजह है कि उसे किसी का खौफ नहीं था. जवाहरबाग से ही वो बेखौफ अपराधिक गतिविधियां चलाता था. पुलिस ने जब जब उसके अवैध कब्जे पर कार्रवाई की सोची, तब तब पुलिस को मुंह की खानी पड़ी और 2 जून की आखिरी लड़ाई में दो जांबाज अफसरों समेत 29 लोगों की जान चली गई.