
मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2019 में बीजेपी से टकराने के लिए विपक्ष के बीच महागठबंधन की आवाज़ें यूपी चुनाव के बाद तेज़ हो चली हैं. हालांकि उसमें कई अड़चनें दिख रही हैं. आखिर जहां दो विपक्षी दल अरसे से आमने-सामने रहे हों, वो एक पाले में आकर चुनाव लड़ने पर कैसे तैयार होंगे. फिर चाहे बंगाल में ममता-लेफ्ट हों, तमिलनाडु में द्रमुक-अन्नाद्रमुक हों, यूपी में सपा-बसपा हों या फिर ओडिसा में बीजेडी-कांग्रेस.
दरअसल, सभी मानते हैं कि ऐसे में चुनाव लड़ना भले ही टेढ़ी खीर हो, लेकिन जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के सामने इकट्ठा होकर किसी एक उम्मीदवार पर सहमति बनाना तुलनात्मक रूप से आसान है. इसे भविष्य में महागठबंधन बनने की संभावना से भी जोड़ कर देखा जा रहा है.
गौरतलब है कि इसी सिलसिले में अब बैठकों के दौर शुरू हो चुके हैं. लेफ्ट ने कांग्रेस के साथ बात करके इसकी पहल शुरू भी कर दी है. लेकिन सबको साथ लाने के लिए एक ऐसे नाम की तलाश है, जिस पर सभी की सहमति बन जाए. खासकर उन दलों की जो अपने-अपने राज्यों में आमने-सामने हैं. नाम ऐसा हो जिसका समर्थन करने पर परस्पर विरोधी सियासी दलों को एक साथ वोट करने में सियासी खतरा ना महसूस हो.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, शरद पवार, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, करुणानिधि, नवीन पटनायक जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों से राय मशविरा का दौर जल्दी शुरू होने वाला है, जिससे बाद में कोई बिखराव ना होने पाए. विवाद ना हो इसलिए कोई नाम हवा में नहीं उछाला जा रहा, कोशिश है कि, ऐसा नाम सामने आए जिस पर सभी सहमत हों.
हालांकि, विपक्षी सूत्रों का कहना है कि, डर इस बात का जरूर है कि, सीबीआई, ईडी सरीखी तमाम केंद्रीय एजेंसियों के ज़रिए जरूर विपक्षी एकता को पिछले दरवाजे से तोड़ने की भरसक कोशिश होगी, जिससे निपटना भी एक बड़ी चुनौती होगा.
आपको बता दें विपक्ष पहले बीजेपी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जान लेने के मूड में है, जिससे वो खुद ऐसा उम्मीदवार लाये, जिसका इस्तेमाल वो एनडीए में फ़ूट डालने में कर सके. याद होगा सरकार में रहते कैसे यूपीए ने शिवसेना और जेडीयू को राष्ट्रपति चुनाव में अपने पाले में किया था. लेकिन विपक्ष को याद रखना होगा कि, अब सत्ता में एनडीए है और विपक्ष बिखरा हुआ है, इसलिए सेंधमारी विपक्ष में ज़्यादा संभव है.
ऐसे सबसे पहले तो राष्ट्रपति पद के लिए उस नाम का सामने आना जरूरी है, जिसके पीछे सभी विपक्षी मज़बूती से खड़े हो जाएं. अगर ऐसा हुआ तो उसके बाद तैयार रहिए एक और दिलचस्प राष्ट्रपति चुनाव के लिए.