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पाकिस्तान से भारत को एटमी खतरा!

पाकिस्तान परमाणु क्षमता वाली सामरिक मिसाइलों की एक नई पीढ़ी विकसित कर रहा है, जिससे भारत और दुनिया के कान खड़े हो गए हैं. भारत ने अमेरिका पर दबाव बनाया है कि वह पाकिस्तान के सामरिक परमाणु हथियारों के विकास कार्यक्रम को रोक दे, लेकिन चीन के बेझिझक समर्थन से इस्लामाबाद को शह मिली है.

राज चेंगप्पा
  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2016,
  • अपडेटेड 9:12 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच ओवल ऑफिस में 7 जून को हुई मुलाकात—दो साल में सातवीं बार—के दौरान रिश्ते काफी मधुर दिख रहे थे, लेकिन वहां मौजूद एक भारतीय अधिकारी की मानें तो कमरे के भीतर पाकिस्तान का प्रेत बैताल की तरह चक्कर काट रहा था. भारत ने हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस को इस बात के लिए राजी किया था कि वह पाकिस्तान को आठ परमाणु सक्षम एफ-16 लड़ाकू विमानों की बिक्री पर सब्सिडी देने से इनकार करके रोक लगा दे.

दुनिया की सबसे खतरनाक रिहाइशी जगह
भारत, अमेरिका और बाकी दुनिया के लिए हालांकि ज्यादा चेताने वाली सूचना यह है कि पाकिस्तान ने नई पीढ़ी की परमाणु क्षमता वाली रणनीतिक मिसाइलें विकसित कर ली हैं, जिसके बारे में एक अमेरिकी अधिकारी का कहना है कि इस घटनाक्रम ने भारतीय उपमहाद्वीप को ''दुनिया की सबसे खतरनाक रिहाइशी जगह बना डाला है." पाकिस्तान ने इन ''रणनीतिक" परमाणु हथियारों को कथित रूप से अपनी आर्टिलरी में शामिल कर लिया है ताकि जंग की किसी हालत में वह आगे बढ़ती भारतीय सेना की टुकड़ी को नेस्तोनाबूद कर सके.

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भारत में कहीं भी हमला कर सकती हैं पाकिस्तानी मिसाइले
इससे पहले भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही ''रणनीतिक" परमाणु हथियारों का एक बड़ा जखीरा विकसित किया था, जो महानगरों की सामान्य आबादी को हमले कर आतंकित करने या सरहद से कुछ दूरी पर अहम सैन्य लक्ष्यों को निशाना बनाने के काम आने वाले हैं. मसलन, अग्नि-5 पांच हजार किलोमीटर दूर के लक्ष्य को भेद सकती है और इसे दक्षिणवर्ती चेन्नै से इस्लामाबाद या चीन पर दागा जा सकता है. पाकिस्तान ने भी गौरी और शाहीन नाम की मिसाइलें विकसित की हैं, जो भारत में कहीं भी हमला कर सकती हैं. इन मिसाइलों की रेंज को अब अंडमान और निकोबार द्वीपों तक विस्तारित कर दिया गया है, जहां भारतीय सेना के तीनों अंगों का अड्डा है. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि परमाणु हथियार को जंग के मैदान में रणनीतिक बढ़त पाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि दुश्मन की बढ़ती टुकडिय़ों को थामा जा सके.

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लाल और सफेद रंग की इस परमाणु क्षमता वाली मिसाइल का नाम नस्र है. यह एक पतले से रॉकेट जैसी है, जिसमें पर लगे हैं और यह 60 किलोमीटर की यात्रा कर सकती है. यह सामान्य तोप के दायरे से कुछ ही ज्यादा की दूरी है. पिछले साल पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की परेड के दौरान इसे प्रदर्शित किया गया था. इसे एक मल्टीबैरल प्रक्षेपण वाहन में रखा गया था, जो एक साथ ऐसी चार मिसाइलें दागने में सक्षम है. परंपरागत हथियारों की मारक क्षमता उनके विस्फोटक बल से आती है लेकिन परमाणु क्षमता वाली मिसाइल अपने विस्फोट की ताकत से ही जान नहीं लेती या शत्रु की टुकड़‍ियों को निष्क्रिय नहीं करती. इससे जो जबरदस्त गर्मी निकलती है और उसके बाद जो विकिरण होते हैं, वह अपंग बना देने वाली बीमारियां पैदा कर सकते हैं और हमले के मिनटों के भीतर भारी संख्या में टुकड़‍ियों को मौत के घाट उतार सकते हैं.

भारत-अमेरिका को चेताने की मंशा
पाकिस्तान में इस पर पिछले पांच साल से काम चल रहा था, लेकिन भारतीय आक्रमण को नाकाम करने के लिए इसकी सामरिक तैनाती की पहली घोषणा विदेश सचिव एजाज अहमद चौधरी ने पिछले साल अक्तूबर में ओबामा के साथ नवाज शरीफ की द्विपक्षीय बैठक से ठीक पहले एक संवाददाता सम्मेलन में की थी. इस घोषणा का वक्त अहम था और यह सीधे तौर पर अमेरिका और भारत दोनों को चेताने की मंशा से किया गया था. कई महीनों से यह अटकल लगाई जा रही थी कि पाकिस्तान ने अमेरिका से वैसी ही परमाणु संधि करने का अनुरोध किया था, जैसी अमेरिका ने भारत के साथ 2005 में की थी. इसके जवाब में अमेरिका ने पलट कर पाकिस्तान को उसके परमाणु कार्यक्रम को समेटने को बाध्य किया, जिसमें सामरिक परमाणु हथियारों के विकास को रोकने समेत फिसाइल मटीरियल कंट्रोल ट्रीटी (एफएमसीटी) और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर दस्तखत करना शामिल था, जो पाकिस्तान की परमाणु क्षमताओं को सीमित कर सकता था.

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शरीफ की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले वॉशिंगटन पोस्ट के डेविड इग्नेशियस ने ''एक कूटनीतिक धमाके" के नाम से इस सूचना के विवरणों को लीक कर दिया तो इस्लामाबाद इन खबरों का खंडन करने लगा. पाकिस्तानी फौज, जो देश के परमाणु जखीरे को नियंत्रित करती है, कथित तौर पर सरकार से खफा थी कि उसने भारत के खिलाफ पाकिस्तान के परमाणु निषेध को कमजोर करने का प्रयास किया है. इसके बाद शरीफ अमेरिका यात्रा के दौरान यह कहने को बाध्य हो गए कि ''अमेरिकी नेतृत्व के साथ अपनी मुलाकात में हम पाकिस्तान के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेंगे." उन्होंने आगे कहा था, ''हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हम 1999 में परमाणु ताकत बने थे, उस वक्त प्रधानमंत्री कौन था." ऐसा कहकर उन्होंने अपने मुल्क को याद दिलाया कि परमाणु परीक्षण उन्हीं के निजाम में किए गए थे.

अजित डोभाल की रणनीति
यह संदेश भारत के लिए भी अहम रहा. उस वक्त दोनों पड़ोसियों के बीच रिश्ते एक नए मोड़ पर आ चुके थे. दोनों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की दिल्ली में होने वाली सुनियोजित बैठक अधर में लटक गई थी और पाकिस्तान में इस बात का भय बढ़ता जा रहा था कि मोदी की ''गरम-नरम" नीति दरअसल उनके सनकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की नई ''आक्रामक रक्षा" नीति की एक आड़ थी. डोभाल हमेशा से मानते रहे हैं कि पाकिस्तान की शह से बार-बार किए जा रहे आतंकी हमलों का जवाब यही हो सकता है कि भारत उसके अहम ठिकानों पर हमला करने की क्षमता विकसित कर ले और ऐसा करने की प्रक्रिया में पूर्णरूपेण युद्ध की स्थिति भी न बनने पाए. जैसा कि एक विशेषज्ञ ने कहा, नस्र का प्रदर्शन करके पाकिस्तान दरअसल ''भारत को चिढ़ा रहा है और डोभाल से कह रहा है कि हिम्मत हो तो आओ!"

जानकारों का मानना है कि भारत को निशाना बनाने वाले आतंकवादी समूहों को पाक फौज का जारी समर्थन दरअसल इन्हीं सामरिक परमाणु हथियारों की तैनाती के चलते है. दिसंबर में पठानकोट और हाल ही में जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले दिखाते हैं कि भारत के खिलाफ हमले अभी बंद नहीं हुए हैं. पाकिस्तानी फौज इस बात को माने बैठी है कि भारत अब उसके ऊपर ''आक्रामक रक्षात्मक" हमला करने से पहले तीन बार सोचेगा. पाकिस्तान अब यह संदेश देना चाह रहा है कि वह किसी भी संघर्ष को काफी तेजी से परमाणु आयाम तक ले जा सकेगा, दुनिया को मुंह चिढ़ाएगा और अहम ताकतों पर यह दबाव बना सकेगा कि वे भारत को रोकें. यही वजह है कि शरीफ एक ओर मोदी की तरफ दोस्ती की मुद्रा बनाते हैं तो वहां की फौज संबंधों की बहाली के खिलाफ जान पड़ती है. 

पाकिस्तान सामरिक परमाणु हथियारों की तैनाती को भारत की नरम-गरम नीति के बहाने सही ठहरा रहा है. भारत वैसे तो आधिकारिक रूप से ऐसी किसी नीति के होने का खंडन करता है, लेकिन इसे सबसे पहले भारतीय फौज ने 1999 में करगिल की जंग के बाद और फिर 2001 में संसद पर हमले के बाद लागू किया था. नीति के जानकारों की शिकायत थी कि पाकिस्तान पर पलटवार करने में भारतीय फौज को तैयारी करने में महीनों लग गए थे. उसके बाद से ही माना जाता है कि भारत ने अचानक हमला करने के लिए अपनी टुकडिय़ों को तैयार करने की एक सक्रिय रणनीति विकसित की है.

पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर नियंत्रण रखने वाली नेशनल कमांड अथॉरिटी (एनसीए) के परामर्शदाता तथा अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल खालिद अहमद किदवई कहते हैं कि ऐसे किसी हमले का जवाब देने के लिए पाकिस्तान को ऐसे सामरिक परमाणु हथियार विकसित करने पड़े हैं, जो अचानक भारत की ओर से हुए किसी हमले की सूरत में उसकी टुकडिय़ों को सरहद पर ही नाकाम कर दें. इस साल मार्च में किदवई ने इस्लामाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ''हमें सामरिक हथियारों को विकसित करने को लेकर कोई खेद नहीं है. वे हमेशा कायम रहेंगे. पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को न तो सीमित करेगा और न ही रोकेगा या किसी बंदिश को स्वीकार करेगा."

किदवई ने ही पाकिस्तान की एनसीए की कार्यकारी इकाई स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिविजन (एसपीडी) के महानिदेशक के बतौर 2002 में उन चार स्थितियों को सूचीबद्ध किया था, जिनमें पाकिस्तान परमाणु हथियारों का प्रयोग कर सकता है. ये चार स्थितियां इस प्रकार थीः अगर भारत पाकिस्तानी भूमि के बड़े हिस्से पर कब्जा कर ले, अगर भारत उसके सशस्त्र बलों के बड़े हिस्से को नष्ट कर दे, अगर वह पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को अवरुद्ध कर दे या फिर अगर भारत वहां सियासी अस्थिरता पैदा कर दे. पाकिस्तान ने पहले परमाणु हमला करने का विकल्प भी अपने पास रखा है. और वह किस सीमा तक परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा, चूंकि यह अस्पष्ट है, इसलिए यह बात भारतीय नेताओं को उलझाए रहती है. इसके उलट भारत ने नो फस्र्ट यूज (एनएफयू) सिद्धांत को अपनाया है, लेकिन अगर आबादी या परिक्षेत्र पर कोई परमाणु, रासायनिक या जैविक हमला होता है तो भारतीय फौज के पास बड़े पैमाने पर इसका जवाब देने का अधिकार जरूर है.

...तो पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाएगा
ईटिंग ग्रासः द मेकिंग ऑफ द पाकिस्तान बम  के लेखक फिरोज हसन खान मानते हैं कि पाकिस्तान की नई निषेध रणनीति जोखिम के आकलन पर निर्भर है. वे कहते हैं, ''सामरिक हथियार बड़े पैमाने पर अनिश्चय पैदा कर देते हैं जिसके चलते भारत परंपरागत तरीकों से जंग पर अकेले निर्भर नहीं रह सकता क्योंकि ऐसे में एक अज्ञात डर बना रहता है." भारत का जवाब यह है कि पाकिस्तान के ''परमाणु दिखावे" को एक छाया युद्ध की संज्ञा देते हुए उसे दंडित किया जाए. एनसीए में भारत के एक उच्चाधिकारी ने इंडिया टुडे  से कहा कि पाकिस्तान अगर सामरिक परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करता है तो ''हम इतना भारी जवाब देंगे कि पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाएगा."

स्टिमसन सेंटर के सह-संस्थापक माइकल क्रेपॉन जैसे अमेरिकी परमाणु विशेषज्ञों की चिंता यह है कि ''दोनों पक्षों में से कोई भी यह नहीं मानता कि दूसरे के द्वारा घोषित परमाणु प्रयोग का सिद्धांत विश्वसनीय है और यह बात अपने आप में खतरनाक अनिश्चय को जन्म देती है." पाकिस्तान आज दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती हुई परमाणु ताकत है और जखीरे के मामले में उसने आज भारत को पीछे छोड़ दिया है. क्रेपॉन कहते हैं कि पाकिस्तान ''पकड़म-पकड़ाई" खेल रहा है. पिछले दशक में उसने चार रिएक्टर निर्मित किए हैं, जहां 25 से 50 किलो हथियार स्तरीय प्लूटोनियम का उत्पादन हो सकता है—यह भारत के मौजूदा उत्पादन का चार गुना है. इसमें अगर उच्च संवर्धित यूरेनियम (एचईयू) के भंडार को जोड़ लिया जाए तो पाकिस्तान हर साल 14 से 27 परमाणु हथियार बना सकता है जबकि भारत की क्षमता अब भी दो से पांच की ही है. कहते हैं कि पाकिस्तान के पास फिलहाल 120 परमाणु बम हैं, जबकि भारत के पास 110 ही हैं.

इसके बावजूद भारत ''विश्वसनीय न्यूनतम निषेध" के सिद्धांत के प्रति वचनबद्ध है. एनसीए के एक पूर्व उच्चाधिकारी कहते हैं, ''सामरिक परमाणु हथियार उतने ही पुराने हैं, जितना रूस और अमेरिका के बीच का शीतयुद्ध. ''टैक्टिकल"  (सामरिक) और ''स्ट्रैटेजिक (रणनीतिक) के बीच का फर्क निरर्थक है क्योंकि मॉस्को और वॉशिंगटन के मुकाबले इस उपमहाद्वीप में दूरियां काफी कम हैं. पाकिस्तान अगर अपने सामरिक परमाणु हथियार से हमला करता है तो हम भी अपना सब कुछ उसका जवाब देने में लगा देंगे."

पाकिस्तान हमेशा संदेह करता है
भारत इस बात का खंडन करता रहा है कि उसके पास सामरिक परमाणु हथियार हैं. हालांकि पाकिस्तान को इस पर संदेह है. अधिकारी बताते हैं कि इस मसले की तीन बार एनसीए ने अपनी बैठकों में समीक्षा की, जिनकी अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री ने की थी और हर बार सशस्त्र बलों का कहना था कि इसका तोड़ विकसित करने की या भारत के नो फर्स्ट यूज सिद्धांत को संशोधित करने की कोई आवश्यकता नहीं है. वे कहते हैं, ''हमने भारत की परमाणु क्षमता को कभी भी अपने हमलावर जखीरे के हिस्से के तौर पर नहीं बरता. हमने इसे सिर्फ रक्षा के उद्देश्य से विकसित किया है ताकि हमारे खिलाफ परमाणु हमले की योजना बनाने वाली ताकत की काट पैदा की जा सके." इसके बजाए भारतीय फौज ने इस किस्म के परमाणु हमले की काट के तहत सैन्य टुकडिय़ों को ऐसे सूट मुहैया कराए हैं, जो इस हमले को झेल सकते हैं. इसके अलावा कुछ दूसरी रणनीतियां भी विकसित की गई हैं.

भारत ने अपने परमाणु सफर में कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन इसने पाकिस्तान के सामरिक परमाणु हथियारों का खतरा दर्शाने के लिए, खासकर अमेरिका के समक्ष, हर मौके का इस्तेमाल किया है. भारत के परमाणु कार्यक्रम पर कई पुस्तकें लिख चुके ऐशले टेलिस मानते हैं कि पाकिस्तान की यह सोच गलत है कि उसने सामरिक हथियार विकसित करके भारत को ''शह और मात" दे दी है. वे इस ओर इशारा करते हैं कि अमेरिका में भी ऐसे तमाम सामरिक हथियार हैं लेकिन उसने इन्हें त्याग दिया है क्योंकि ये हथियार जंग में उतने प्रभावी नहीं हैं. टेलिस बताते हैं कि किसी सेना को रोकने के लिए सामरिक हथियार नहीं, बल्कि ''300 से 400 हिरोशिमा पर हमले के आकार वाले हथियारों" की जरूरत होगी. वे कहते हैं कि ऐसी जंग में टिकने के लिए पाकिस्तान के पास पर्याप्त हथियार नहीं हैं.

खतरनाक और समस्याप्रद
अन्य जानकार ऐसे परमाणु हथियारों का जखीरा रखने के अंतर्निहित खतरों की ओर इशारा करते हैं क्योंकि इनके दुरुपयोग और दुर्घटनावश इस्तेमाल की गुंजाइश कई गुना बढ़ जाती है. स्टिमसन सेंटर के जेफ्री डी. मैककॉसलैंड ने पिछले साल एक विस्तृत अध्ययन में इस ओर संकेत किया था कि पाकिस्तान के सैन्य नियोजकों के लिए युद्ध में इस्तेमाल किए जा सकने वाले ऐसे परमाणु हथियार दुःस्वप्न साबित होंगे. उन्होंने ऐसे हथियारों की तैनाती को ''खतरनाक और समस्याप्रद" करार दिया था. अव्वल तो, इसके लिए पहले से सैन्य कमांडरों की तैनाती को किसी अधिकारी की अग्रिम मंजूरी की दरकार होगी, जिससे गलत आकलन और गलत हाथों में इन हथियारों के पड़ जाने का खतरा बढ़ जाता है. दूसरे, लाहौर जैसे बड़े शहर सरहद के करीब हैं, लिहाजा इन हथियारों के इस्तेमाल से तैयार होने वाले रेडियोधर्मी बादलों के पलटकर पाकिस्तान में आ जाने और वहां की आबादी को प्रभावित करने का भी खतरा है.

सवाल उठता है कि ऐसे में पाकिस्तान की प्रतिगामी परमाणु योजनाओं पर भारत और पूरी दुनिया क्या रुख अपनाए? अमेरिका और बाकी ताकतों पर भारत एक सीमा तक ही दबाव डाल सकता है क्योंकि वह खुद अपने वैश्विक नाभिकीय दरजे को लेकर स्पष्ट नहीं है. भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का सदस्य कभी भी बन सकता है और न्यूक्लिर सप्लार्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता भी वह चाह रहा है. ऐसे में परमाणु मामलों की निर्णय-प्रक्रिया में भारत की भी दावेदारी बन जाएगी. इसके बाद वह इन मंचों का इस्तेमाल पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर लगाम कसने के लिए कर सकेगा. भारत के परमाणु कार्यक्रम पर अहम पुस्तक लिखने वाले अमेरिकी जानकार जॉर्ज परकोविच मानते हैं कि ''भारत के लिए पाकिस्तान से जंग लडऩा गलती होगी. उसे इसके बजाय शून्य लागत वाले तरीके विकसित करने होंगे ताकि वह पाकिस्तान पर दबाव बनाकर उसे अलग-थलग कर सके."

ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन में पाकिस्तान के जानकार स्टीफन कोहेन ने पाकिस्तान के लिए नागरिक परमाणु संधि की बात की है ताकि उसकी भूमिका को ''मुख्यधारा" में लाया जा सके. वे भारत के साथ संबंध बहाली और नीतिगत स्थिरता हासिल करने के संदर्भ में पाकिस्तान के लिए इसे पूर्व शर्त मानते हैं. क्रेपॉन का मानना है कि अमेरिका को ऐसा प्रस्ताव तभी रखना चाहिए अगर पाकिस्तान परमाणु मामलों में पहल करते हुए निषेध की मुद्रा अपनाए और अपने सामरिक परमाणु हथियारों में कटौती करे. साथ ही एफएमसीटी वार्ता का हिस्सा बने और सीटीबीटी पर दस्तखत करे. इसके अलावा, भारत की तर्ज पर उसे भी अपने नागरिक और सैन्य ठिकानों को पृथक करना होगा.
पाकिस्तान को मुख्यधारा में लाने के लिए ऐसा प्रस्ताव देने से भारत भय खाता है और मानता है कि उसे कोई भी रियायत देने से पहले इस्लामाबाद को पर्याप्त संयम और जिम्मेदारी का प्रदर्शन करना होगा. भारत दूसरे देशों को लगातार यह याद दिलाता रहता है कि कैसे पाकिस्तान के वैज्ञानिक ए.क्यू. खान ने उत्तरी कोरिया और ईरान समेत कई देशों को पाकिस्तान की गोपनीय परमाणु सूचनाएं मुहैया कराई थीं.

फिरोज हसन खान जैसे पाकिस्तानी विशेषज्ञ एक ज्यादा नरम और मध्यमार्गी नजरिए की पैरवी करते हैं. हाल ही में लिखे एक पर्चे में वे कहते हैं, ''परमाणु हथियार ताकतवर देशों को ज्यादा ताकतवर बनाते हैं. वे कमजोर राज्यों को सुरक्षित नहीं करते. एक कमजोर देश में इनके बनने का मतलब बहुमूल्य कुदरती संसाधनों का दोहन है. परमाणु हथियार पाकिस्तान का अभिन्न अंग हैं और उसे विश्वसनीय परमाणु निषेध की जरूरत नहीं है. इसके बावजूद, पाकिस्तान को वास्तविक सुरक्षा हासिल करने के लिए ऐसी दीर्घकालिक सामाजिक, आर्थिक और व्यवस्थागत समस्याओं पर खुद को केंद्रित करना होगा, जिनका हल परमाणु हथियार नहीं दे सकते." पाकिस्तान के नेता और जनरल इन बातों पर कान दें तो यह यह सुझाव कारगर हो सकता है.

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