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समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 को बहाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में कोर्ट नहीं बल्कि देश की संसद ही तय कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जी एस सिंघवी बोले कि ये मसला देश के करोड़ो लोगों से जुड़ा है, जिनका प्रतिनिधित्व संसद में बैठे जनप्रतिनिधि करते हैं.अगर उन्हें लगता है कि धारा 377 गलत है, तो वह संविधान संशोधन कर इसमें बदलाव ला सकते हैं.
जस्टिस सिंघवी आज ही रियाटर हो रहे हैं. यह उनका आखिरी बड़ा फैसला माना जा रहा है. उनके सामने दलील रखी थी कि इस तरह के फैसले देश की संस्कृति के खिलाफ हैं. याचिका दायर करने वाले बीजेपी नेता बीपी सिंघल के वकील ने आज तक को बताया कि उन्होंने डेढ़ महीने की बहस में भारतीय जीवन मूल्यों की बात उठाई और कहा कि संविधान में नैतिकता के लिए कोई अलग से प्रावधान नहीं है.
सिर्फ दिल्ली में ही हटी थी छूट
इस दौरान बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले की वैधानिकता के दायरे पर भी विचार किया. वकील के मुताबिक दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद धारा 377 सिर्फ दिल्ली में ही हटी थी और यहीं पर समलैंगिकता अपराध नहीं थी. देश के बाकी हिस्सों में यह धारा अभी भी कायम थी.
क्या बोले चर्च के प्रतिनिधि
इस फैसले पर चर्च का प्रतिनिधित्व करने वाले फादर डॉमिनिक बोले कि एक तरह से हमारे लिए ये ठीक ही है. हमें डर था कि इससे एचआईवी एड्स के केस बढ़ेंगे और अपराध बढ़ेंगे. चर्च हमेशा से समलैंगिक संबंध के विरोध में रहे हैं, लेकिन हम उन्हें क्रिमिनल नहीं मानते हैं.
दोपहर में ही शुरू होगा फैसले पर विरोध प्रदर्शन
वॉयसेज अगेंस्ट आर्टिकल 377 नाम की संस्था से जुड़ी दीप्ति ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराश हैं. उन्होंने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट के चार साल पहले आए फैसले के बाद हमें देश में मानवाधिकारों को लेकर नई उम्मीद दिखी थी.आगे की रणनीति पर बात करते हुए दीप्ति ने कहा कि हम संसद-सड़क और न्यायालय तीनों मोर्चों पर लड़ाई लड़ेंगे.
क्या है धारा 377?
ब्रिटिश राज में बनाया हुआ यह कानून अप्राकृतिक यौन संबंध को गैर कानूनी ठहराता है. इस धारा के तहत किसी भी व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) के साथ अप्राकृतिक यौन संबध बनाने पर या किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर उम्र कैद या 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है.