
सादा खाना, सादा जीवन, उच्च विचार...अब इस मंत्र को अपनाना है तो सादा खाने में खिचड़ी से बेहतर और क्या हो सकता है. भारतीय खान-पान में शाकाहारी व्यंजनों में अहम स्थान रखने वाली खिचड़ी इन दिनों सोशल मीडिया पर छाई हुई है. खिचड़ी को भारत के सुपरफूड के तौर पर पेश किए जाने को लेकर चर्चा भी खूब हो रही है.
क्या सचमुच खिचड़ी इतनी सर्वगुण संपन्न है कि उसे सुपर फूड कहां जा सकता है? हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण की मानें तो सचमुच खिचड़ी में गुण कूट- कूट कर भरे हैं. आचार्य के मुताबिक यह खुशी की बात है कि देर से ही सही लेकिन खिचड़ी को उसका सम्मान मिलने जा रहा है.
आचार्य कहते हैं कि खिचड़ी सही मायने में भारत का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि यह हमारे देश की तरह ‘अनेकता में एकता’को दिखाती है. खिचड़ी किसी न किसी रूप में भारत के हर राज्य में खाई जाती है, लेकिन हर जगह उसका स्वाद उसका रंग रूप और उसको बनाने का तरीका अलग अलग होता है. खिचड़ी की सबसे बड़ी खासियत भी यही है कि उसमें अपनी पसंद के अनुसार से मनचाहा बदलाव किया जा सकता है. खिचड़ी बनाने के तरीके में तमाम बदलाव करने के बाद भी इसके बुनियादी गुण और स्वाद दोनों बने रहते है.
आचार्य बाल कृष्ण के मुताबिक आयुर्वेद के हिसाब से भी खिचड़ी बेहद उत्तम आहार मानी गई है. यह पचाने में आसान होती है. स्वास्थ्य ठीक ना होने पर हल्के खाने के तौर पर खिचड़ी के सेवन की ही सलाह दी जाती है. शिशु भी जब अन्न खाना शुरु करते हैं तो खिचड़ी ही उनके मुंह लगाई जाती है.
खिचड़ी को पकाने में चावल, छिलके वाली दाल, बहुत हल्के मसाले और सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है. इसे पकाना भी बहुत आसान है. बनाने की इसी आसानी के कारण ‘खिचड़ी पकाना’एक मुहावरे के तौर पर भी इस्तेमाल होता है. आचार्य कहते हैं कि खिचड़ी को जो पहचान और सम्मान अब मिल रहा है, वो बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था. चलिए देर आयद, दुरुस्त आयद.