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याकूब को फांसी नहीं दे पाने का अफसोस, गुस्से में पवन जल्लाद

मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की दया याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के बाद उसकी फांसी होनी तय हो गई है. नागपुर सेंट्रल जेल में उसको गुरुवार सुबह 7 बजे फांसी दी जाएगी.

मेरठ का पवन जल्लाद याकूब को फांसी पर लटकाना चाहता था. मेरठ का पवन जल्लाद याकूब को फांसी पर लटकाना चाहता था.
मुकेश कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 29 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 7:58 AM IST

नागपुर सेंट्रल जेल में मुंबई सीरियल ब्लास्ट के गुनहगार याकूब मेमन को सुबह 6:30 बजे फांसी दे दी गई. उससे पहले याकूब के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में नई अर्जी देकर मांग की थी कि उसकी फांसी की सजा पर 14 दिनों की रोक लगाई जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नई याचिका खारिज कर दिया. याकूब को फांसी किसी जल्लाद ने नहीं दिया, बल्कि जेल सुपरिटेंडेंट योगेश देसाई ने उसे फांसी का फंदा पहनाया. इस बात से मेरठ का जल्लाद पवन बहुत दुखी है.

aajtak.in से पवन जल्लाद ने गुस्से भरे लहजे में कहा कि उसकी उम्मीद टूट गई है. वह अपने हाथों से याकूब को फांसी पर लटकाना चाहता था. लेकिन उसकी ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी. इसके लिए वह एक हफ्ते से जोर-शोर से तैयारी कर रहा था. उसने नागपुर जेल प्रशासन और यूपी के डीजीपी को इस बाबत पत्र लिखकर बाकायदा अनुमति मांगी थी. फांसी देने के लिए अनुमति नहीं मिलने से उसे बहुत दुख हुआ है.

पवन के मुताबिक, उसके परिवार की तीन पीढ़ियों से फांसी देने का काम होता रहा है. वह देश की इकलौती जल्लाद फैमिली से है, जहां यह काम पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता चला आ रहा है. परदादा से लेकर पोते तक ने इस पेशे को अब तक कायम रखा है. उसके दादा कल्लू जल्लाद ने दिल्ली की सेंट्रल जेल में रंगा-बिल्ला को फांसी दिया था. कल्लू ने ही इंदिरा गांधी के हत्यारों को भी फांसी दी थी.

दादा से सीखा फांसी देने का गुर
उसके पिता मम्मू सिंह ने देश के विभिन्न जगहों पर 12 अपराधियों को फांसी दिया था. उसके पिता फांसी का फंदा तैयार करने के लिए पूर देश में जाने जाते थे. फांसी के लिए प्लेटफार्म तैयार करने और फंदा बनाने का गुर उसने अपने दादा से सीखा था. उसका कहना है कि वो उन सभी खूंखार अपराधियों को फांसी देना चाहता है, जो देश के खिलाफ काम करते हैं.

तीन हजार मिलती है पगार
पवन जल्लाद का कहना है कि मेरठ जेल से उसे तीन हजार रुपये बतौर सैलरी मिलती है. लेकिन वह भी समय पर नहीं मिल पाती. महंगाई के इस दौर में वह बहुत ही मुश्किल से अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाता है.

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