
एक समय था जब लोग तपती गर्मी के बाद सर्दियों का इंतजार करते थे, चढ़ती सर्दी में धुंध और गुनगुनी धूप में लोग बाहर निकल कर गरम-गरम चाय की चुस्की का आनंद उठाने के बहाने ढूंढते थे और एक समय अब है जब नवंबर के दूसरे हफ्ते में लोगो का बाहर निकल कर खाना-पीना तो दूर सांस लेना तक दुश्वार हो गया है. कारण है बढ़ता प्रदूषण और उसको रोकने में सरकार और प्रशासन की नाकामी और आम जनता में जागरूकता का अभाव. हर दिन दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. हालात खतरे की घंटी बजा रहे हैं और आम जनता त्राहिमाम् कर रही है.
दूषित हवा में सांस लेने से बचने के लिए लोग इस मौसम में दिल्ली-एनसीआर से पलायन करने को मजबूर हैं. जो अफोर्ड कर सकते हैं वो वीकेंड या लंबी छुट्टियां लेकर पहाड़ों का रुख कर रहे हैं जहां प्रदूषण नहीं है. पर चौंकाने वाली बात ये है कि ज्यादातर युवा देश छोड़ कर विदेशों में बसने का मन बना चुके हैं.
गुरुग्राम में विप्रो जैसी बड़ी कंपनी में अच्छे पद पर कार्यत इंदरप्रीत का कहना है, "यहां की सबसे बड़ी समस्या ये है कि हम इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने में जुटे हैं पर पर्यावरण की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा. हमारे नेताओं और प्रतिनिधियों की सबसे बड़ी कमी है कि वो आम जनता के बारे में सोचते ही नहीं हैं. ऐसे में क्या करना यहां रह कर."
इंदरप्रीत की तरह ही दिल्ली में टेक महिंद्रा में टीम लीड वरुण भी जल्द से जल्द अपने परिवार के साथ विदेश में बसने की जुगत में है. उनका कहना है, "हमारे देश में लाइफ की वैल्यू नहीं है. यहां सबसे सस्ती आम आदमी की जान है जिसके बारे में कोई सोंचने वाला नहीं. मैं विदेश इसलिए जा रहा हूं क्योंकि वहां करप्शन के बावजूद नेताओं में जनता का खौफ है और वो उनके नागरिकों की जरूरतों को सबसे ऊपर रखते हैं ना कि अपने स्वार्थ को. खुद देख लीजिए क्या हाल बना दिया है देश की राजधानी का और आगे भी हालत बदतर ही होंगे."
लोगो के विदेशों में सेटल होने की टेंडेंसी तो हमेशा से ही रही है पर इन दिनों आंकड़े बताते हैं कि किसी विदेशी शहर में परमानेंट रेसीडेंसी की चाहत रखने वाले लोगो की संख्या में इजाफा हुआ है. और जो ऐसा नहीं कर पा रहे है वो वीकेंड या लंबी छुट्टी लेकर अपने परिवार के साथ दूर जा रहे हैं.
ट्रेवल ट्रायंगल के आकाश का कहना है, "निराशा होती है, मैं ट्रेवल एजेंसी का हिस्सा हो कर ये देख रहा हूं कि लोग बाहर घूमने के बजाय दूषित हवा से बचने के लिए जा रहे हैं. किसी भी ट्रेवल एजेंसी के लिए ये सबसे मुनाफे का समय है पर एक नागरिक होने के नाते मैं मायूस हूं अपने देश के सिस्टम से."
इन सब के बीच मध्यमवर्गीय या उससे नीचे के परिवार मजबूरन दिल्ली-एनसीआर की दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. और जरा ऐसे परिवारों की सोचिए जिनके पास ना तो गाड़ी है और ना ही एसी या फ्रिज है वो प्रदूषण फैलाने वाली किसी भी लग्जरी का हिस्सा नहीं हैं पर फिर भी सबसे ज्यादा नुकसान उन्हीं को उठाना पड़ रहा है क्योंकि ना तो वो फैमिली ट्रिप अफोर्ड कर सकते हैं ना ही मास्क खरीदना. ऐसे में सभी मायूस चेहरों से यही पूछ रहे हैं हम जाएं तो जाएं कहां?