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जनता दरबार की आस में दिल्ली सचिवालय में धक्का खाते रहे लोग

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक जून से सरकारी दफ्तरों के दरवाजे आम लोगों के लिए खोलने का ऐलान किया, लेकिन एक जून को अपनी शिकायतें लेकर लोग दर-दर भटकते रहे. खासतौर पर सरकार के हेडक्वार्टर यानी सचिवालय में तो सरकारी स्टाफ ही इस आदेश से अनजान दिखा.

दिल्ली सचिवालय दिल्ली सचिवालय
कपिल शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2017,
  • अपडेटेड 12:28 AM IST

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक जून से सरकारी दफ्तरों के दरवाजे आम लोगों के लिए खोलने का ऐलान किया, लेकिन एक जून को अपनी शिकायतें लेकर लोग दर-दर भटकते रहे. खासतौर पर सरकार के हेडक्वार्टर यानी सचिवालय में तो सरकारी स्टाफ ही इस आदेश से अनजान दिखा. सचिवालय में अपनी शिकायतें लेकर पहुंचे लोग अफसरों से मिल नहीं पाए, क्योंकि न तो उनका पहले से वक्त तय था और न ही अफसर आम लोगों से मिलने के लिए तैयार थे.

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सीएम अरविंद केजरीवाल ने अखबारों में इश्तहारों के ज़रिए ये कहा कहा था कि एक जून से सोमवार से शुक्रवार तक हर वर्किंग डे पर सुबह 10 से 11 बजे तक सभी सरकार दफ्तरों के दरवाजे आम लोगों के लिए खुले रहें. अफसरों से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री सब बिना किसी पूर्व अपाइंटमेट के आम लोगों से मिलेंगे और उनकी समस्याएं सुनेंगे.

अखबारों में इश्तहार तो आ गए, लेकिन जिन अफसरों को लोगों से मिलना था और जिस सरकारी मुलाजिमों को ये सुनिश्चित करना था कि दफ्तर के दर पर आम जनता को अफसरों तक पहुंचने में कोई दिक्कत न हो, वही राह का रोड़ा बन गए. इनके मुताबिक उनके पास अखबारी इश्तहार के अलावा कोई सरकारी आदेश नहीं है, जिसमें लिखा हो कि सचिवालय में आम लोगों की एंट्री बिना किसी अपाइंटमेंट के होगी.

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सचिवालय में जब हमारी टीम पहुंची, तो यहां आम दिनों की तरह ही व्यवस्था लागू थी, यानी जिसे सचिवालय के भीतर किसी अफसर या मंत्री से मिलना है, तो उसे अपाइंटमेंट लेना होगा. रिसेप्शन पर बैठे कर्मचारी से संबंधित अफसर के कार्यालय में स्टाफ से बात करानी होगी और इसके बाद पास बनाने की औपचारिकता पूरी करनी होगी, मिलने आने का मकसद बताना होगा. इसके बाद अगर अफसर मिलना चाहेगा, तो ही मिलने वाला सचिवालय के अंदर जा पाएगा.

हालांकि सचिवालय प्रशासन से जुड़े लोगों की दलील थी कि आम लोगों को अपनी शिकायतें लेकर सचिवालय आने की ज़रूरत ही नहीं है, क्योंकि वो इन शिकायतों को अपने स्थानीय दफ्तरों में दर्ज करा सकते हैं, लेकिन दलील इसलिए सिरे नहीं चढ़ती, क्योंकि केजरीवाल के ऐलान में ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई थी.

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